पंचकूला: कोरोना संकट के इस दौर में 'प्लाज्मा थेरेपी' नाम खासा चर्चित हुआ है. एक तरफ जहां विश्व कोरोना का इलाज ढूंढने में लगा है, तो वहीं दूसरी तरफ प्लाज्मा थेरेपी एक उम्मीद के रूप में सामने आ रही है. कुछ मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया है. इसके बेहतर रिजल्ट देखने को मिले हैं.
फिलहाल प्लाज्मा थेरेपी को एक रेस्क्यू ट्रीटमेंट के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि प्लाज्मा क्या है, प्लाज्मा थेरेपी क्या है, कोरोना से ठीक हुए मरीज कैसे प्लाज्मा दिया जाता है और कोरोना वायरस मरीज को ठीक करने के लिए कैसे इसका इस्तेमाल किया जाता है.
1 साल तक स्टोर किया जा सकता है प्लाज्मा
पंचकूला नागरिक अस्पताल की डॉक्टर ने इसके बारे में विस्तार से समझाया. उन्होंने कहा कि जो कोविड-19 मरीज ठीक हो गए हैं. उनके अंदर से प्लाज्मा लिया जाता है. जिसे कनवेलेसेंट प्लाज्मा बोला जाता है. इस प्लाज्मा को माइनस 40 डिग्री पर डीप फ्रीजर में रखा जाता है. इस प्लाज्मा को एक साल तक स्टोर करके रखा जा सकता है और एक आदमी के प्लाज्मा से दो कोरोना मरीजों को ठीक किया जा सकता है.
कोरोना को हराने के लिए फिलहाल सबसे कारगर चीज प्लाज्मा थेरेपी है. इसके मद्देनजर पंचकूला के नागरिक अस्पताल ब्लड बैंक में प्लाज्मा सेंटर शुरू किया गया है. डॉक्टर सरोज ने बताया कि अभी तक यहां 3 डोनर्स को रजिस्टर्ड किया जा चुका है. जिसमें से एक डोनर से प्लाज्मा लिया जा चुका है. हर मंगलवार और शुक्रवार को प्लाज्मा डोनर्स को बुलाया जाएगा.
यहां जानें प्लाज्मा की पहेली
कोरोना से ठीक हुए मरीज के प्लाज्मा और आम इंसान के प्लाज्मा में फर्क ये होता है कि जब मरीज कोरोना से ठीक हो जाता है उसमें एंटीबॉडी बनते हैं. यही एंटीबॉडी दूसरे कोरोना संक्रमित के काम आते हैं, जो वायरस को नष्ट करते हैं. जब कोरोना संक्रमित रहे शख्स से ब्लड लिया जाता है तो मशीन से फिल्टर कर ब्लड से प्लाज्मा, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स को अलग कर लिया जाता है. रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स उसी व्यक्ति के शरीर में वापस डाल दिया जाता है, जिसने प्लाज्मा दान किया और प्लाज्मा स्टोर कर लिया जाता है.
कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव हुआ कोई मरीज जब प्लाज्मा डोनेट करने आता है तो उसे पूरी प्रकिया के बारे में समझाया जाता है. प्लाज्मा डोनेट करने के लिए मरीज की सहमति ली जाती है. डोनर को बताया जाता है कि आप जनहित में ऐसा कर रहे हैं ताकि दूसरे दूसरे लोगों की जान बचाई जा सके. डोनर का नाम, पता, फोन नंबर समेत सभी जानकारी ली जाती हैं. इसके बाद चेक लिस्ट के आधार पर डोनर की मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है.
देखी जाती है मेडिकल हिस्ट्री
चेक लिस्ट में वो तमाम मापदंड होते हैं, जिन्हें पूरा करने वाला शख्स ही प्लाज्मा डोनेट कर सकता है या कर सकती है. इसके तहत डोनर की मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है.
- ये देखा जाता है कि क्या उसे कभी पीलिया तो नहीं रहा
- कोई लंबी बीमारी तो नहीं रही
- शुगर की इंसुलिन तो नहीं ले रहे हैं
- थायरॉइड, किडनी या हार्ट की समस्या तो नहीं है
- ये भी पूछा जाता है कि कोई सर्जरी तो नहीं हुई है
- कैंसर का इलाज तो नहीं हुआ है.
अगर किसी डोनर की मेडिकल हिस्ट्री में इनमें से कोई भी समस्या पाई जाती है तो उन्हें प्लाज्मा डोनेट करने के लिए मना कर दिया जाता है. लेकिन जो शख्स चेक लिस्ट के हिसाब से मेडिकली फिट पाया जाता है तो उसके साथ प्लाज्मा डोनेट करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ा जाता है. प्लाज्मा डोनेट करने के लिए 18-60 साल के बीच उम्र होना, 50 किलो से ज्यादा वजन होना, प्रेग्नेंसी न होना भी जरूरी है.
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चेक लिस्ट में फिट पाने के बाद डोनर की पल्स देखी जाती है, ब्लड प्रेशर चेक किया जाता है, पूरा एग्जामिन किया जाता है. खून की मात्रा चेक की जाती है. डोनर में हीमोग्लोबिन की मात्रा 12 से ज्यादा होना जरूरी होता है. इसके साथ ही ट्राई डॉट टेस्ट भी किया जाता है ताकि ये पता चल सके कि डोनर HIV या हेपेटाइटिस से तो पीड़ित नहीं है. इस तरह के जब सभी बेसिक टेस्ट सही पाए जाते हैं तो फिर डोनर से प्लाज्मा लिया जाता है और इस प्रक्रिया में करीब 30 मिनट लगते हैं.
ब्लड डोनेट के वक्त जैसे शरीर से खून लिया जाता है, ठीक उसी तरह ही ये पूरी प्रक्रिया होती है. जब ब्लड ले लिया जाता है तो उसमें से प्लाज्मा अलग कर लिया जाता है और रेड ब्लड सेल्स व प्लेटलेट्स वापस डोनर की बॉडी में चढ़ा दिया जाता है.
एंटीबॉडी है जरूरी
जब कोई इंसान कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं जो वायरस से लड़ते हैं. ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आम तौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनते हैं. अमूमन ठीक होने के दो हफ्ते के अंदर ही एंटीबॉडी बन जाते हैं. कुछ मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद महीनों तक भी एंटीबॉडी नहीं बनते हैं. कोरोना से ठीक हुए जिन मरीजों के शरीर में एंटीबॉडी काफी वक्त बाद बनते हैं उनके प्लाज्मा की गुणवत्ता कम होती है, इसलिए आमतौर पर उनके प्लाज्मा का उपयोग कम ही किया जाता है.