पंचकूला: विद्या हीन नर पशु समान, इसका अर्थ है कि अगर ज्ञान नहीं है तो हम में और पशुओं में कोई अंतर नहीं है. ये श्लोक हमें सिखाता है कि पढ़ाई-लिखाई कितनी जरूरी है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है दुर्गम स्थानों पर रहने वाले लोगों के लिए शिक्षा की व्यवस्था क्या होती है. उन क्षेत्रों में नन्हें-मुन्ने बच्चों की पढ़ाई कैसे होती है, और कोरोना काल के इस दौर में बच्चों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा.
पहाड़ों को पार कर पढ़ने आते हैं बच्चे
चलिए हम आपको लिए चलते हैं. हरियाणा के पंचकूला जिले में स्थित मोरनी क्षेत्र में. ये है मोरनी का कोटी गांव. इस गांव से महज 5 किलोमीटर दूर हिमाचल सीमा है. लॉकडाउन लगने के बाद इस क्षेत्र में भी स्कूल नहीं खुले हैं, लेकिन लॉकडाउन से पहले यहां हिमाचल के सिरमौर जिले से भी पहाड़ों को पार कर बच्चे पैदल पढ़ने आते थे.
फिलहाल कोरोना संक्रमण के चलते बच्चों को घर से ऑनलाइन माध्यम से पढ़ने के लिए बोला गया है, लेकिन मोरनी क्षेत्र में रहने वाले बच्चों के सामने कई परेशानियां है. शहर से दूरदराज इस क्षेत्र में बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करें. तो कैसे करें?
सोनू सूद ने की मदद से बच्चों ने की पढ़ाई शुरू
इस क्षेत्र में ज्यादातर लोग मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं, लॉकडाउन की वजह से इन लोगों का गुजर-बसर कर पाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में बच्चों के पास मोबाइल, लैपटॉप जैसे डिवाइस कल्पना भर है. कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर इस क्षेत्र के बच्चों की हालात जानने के बाद अभिनेता सोनू सूद ने मदद की और उन्हें स्मार्टफोन मुहैया करवाया.
नेटवर्क की समस्या पढ़ाई में बनती है बाधा- प्रिंसिपल
स्कूल के प्रिंसिपल पवन जैन का कहना है कि आज बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन तो पहुंच गया है, लेकिन उनकी मुसीबतें कम नहीं हुई है. इस क्षेत्र में नेटवर्क मिल पाना सबसे बड़ी समस्या है. जिसकी वजह से यूट्यूब पर पढ़ना बच्चों के लिए संभव नहीं हो पाता.
शिक्षकों को भी होती है परेशानियां
कोटी गांव के स्कूल के टीचर राजेश लोहान बच्चों को पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हैं. उनका भी कहना है कि इंटीरियर इलाका होने के चलते बच्चों और टीचर्स को कई प्रकार की दिक्कत है. स्कूल में स्टाफ की भी कमी है. वहीं टीचर्स को इतने दुर्गम स्थानों पर नौकरी करने के बदले में सैलरी समान्य अध्यापकों के जितनी ही मिलती है.
मौजूदा सरकार सबका साथ-सबका विकास का दावा करती है. लेकिन मोरनी के इस गांव के हालात देख कर लगता है कि यहां के लोगों को ना हुक्मरानों का साथ मिला है. ना ही विकास हुआ है. स्कूल के नाम पर महज खानापूर्ती ही की गई है. आज कोरोना काल में परिस्थितियां विपरीत हैं. ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा की घोषणा करने के बाद शिक्षा विभाग को विशेष योजना बनाने की जरूरत थी, लेकिन सरकार की अनदेखी. आज यहां के छात्र भुगत रहे हैं.