फरीदाबाद: कहा जाता है कि अगर आपको किसी देश का भविष्य जानना है तो आप उस देश के स्कूलों का हाल देख लें. अगर आप गांव बघौला के राजकीय उच्च विद्यालय को देखेंगे तो निश्चित तौर पर यही कहेंगे कि भारत का भविष्य खतरे में है और छोटे-छोटे बच्चों को ये खतरा खुद स्कूल की इमारत से है. आलम ये है कि पलवल के इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के सर पर हर समय किसी हादसे का संकट खड़ा रहता है.
टूटे पिलर, जर्जर छत...
इस सकूल की लगभग सारी इमारत जर्जर हो चुकी है. स्कूल की हर दीवार में दरारें आ चुकी हैं. ऐसा कोई गाटर नहीं बचा है जिसमें दरार ना आई हो और ज्यादातर गाटरों से सीमेंट और मसाला अलग होकर झड़ चुका है और सपोर्ट में केवल खाली सरिए ही दिखाई पड़ते हैं. स्कूलों की ऐसी जर्जर हालते में ही 307 बच्चे रोजाना शिक्षा ग्रहण करते हैं.
धूप में बैठने को मजबूर छोटे-छोटे बच्चे
स्कूल में खतरे की आशंका को देखते हुए इस स्कूल में अधिकांश बच्चों का समय क्लास रूम के बाहर ही बीतता है. बच्चों को ज्यादातर क्लास के बाहर ग्राउंड में बैठाकर पढ़ाया जाता है. बारिश के मौसम में ये परिस्थितियां और भी खराब हो जाती हैं. बारिश के मौसम में जहां एक तरफ कमजोर सपोर्ट के कारण छत के गिरने का खतरा रहता है. वहीं स्कूल के मैदान से पानी इकट्ठा होकर स्कूल के कमरों में भर जाता है.
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स्कूल के इस हालात के बारे में स्कूल में आने वाली छात्राओं ने बताया कि स्कूल की इमारत अधिकांश तौर पर जर्जर हो चुकी है और खुद उनके सामने कई बड़े हादसे होने से टले हैं. अपने साथ हुए हादसे का जिक्र करते हुए 2 छात्राओं ने बताया कि जब वो कमरे से बाहर ग्राउंड की तरफ निकल रहे थे तो बारिश के मौसम में अचानक छत से लेंटर का एक टुकड़ा आकर उनके पास गिर पड़ा. गनीमत रही कि उनको किसी तरह की चोट इसमें नहीं आई.
ज्ञान के लिए दांव पर जान!
छात्राओं ने ईटीवी भारत हरियाणा की टीम को एक और बड़ी परेशानी बताई जिसके हमारी चिंता उनके भविष्य को लेकर और बढ़ गई. दरअसल, स्कूल के ठीक सामने से दिल्ली-आगरा हाइवे गुजरता है और बच्चे अपनी जान को दांव पर लगाकर हाइवे क्रॉस करते हैं. उन्होंने कहा कि अगर एक फुटओवर ब्रिज इस हाइवे पर होता तो उनको स्कूल आने जाने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती.
'कंडम इमारत में पढ़ते हैं बच्चे'
इस बारे में गांव के सरपंच रविदत्त से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर स्कूल की इमारत कंडम घोषित हो चुकी है और खुद शिक्षा विभाग ने इसको कंडम घोषित किया है, लेकिन उसके बाद भी बच्चों को उसी इमारत के अंदर बिठाकर पढ़ाया जाता है. उन्होंने कहा कि वो इस मामले को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से मिल भी चुके हैं और कई बार उन्होंने इस मामले को उठाया है लेकिन ना तो किसी राजनेता ने इस मामले की तरफ ध्यान दिया है ना ही शिक्षा विभाग ने अभी तक इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है.
जिला शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी हुई समाप्त !
इस मामले को लेकर जब जिला शिक्षा अधिकारी अशोक बघेल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ग्रामीणों का पत्र उनको मिला था और उस पत्र को उन्होंने अपने ऊपर के अधिकारियों को भेज दिया है और जल्द ही स्कूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने की बात कही जा रही है. उन्होंने माना कि निश्चित तौर से बच्चों को खतरा है, क्योंकि स्कूल की इमारत की हालत भी ठीक नहीं है और हाईवे पर भी बच्चों को काफी खतरा उठाना पड़ता है.
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