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सुनिए शिक्षा मंत्री: बघौला सरकारी स्कूल में बच्चे ज्ञान के लिए दांव पर लगा रहे हैं जान

हरियाणा सरकार हमेशा से दावा करती आई है कि उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में अनगिनत सुधार किए हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने सरकारी स्कूल की जमीनी हकीकत देखी, लेकिन सरकारे दावे हमारी रिपोर्ट में झूठे साबित हुए. देखिए कैसे ?

सुनिए शिक्षा मंत्री
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Published : Nov 19, 2019, 10:58 PM IST

फरीदाबाद: कहा जाता है कि अगर आपको किसी देश का भविष्य जानना है तो आप उस देश के स्कूलों का हाल देख लें. अगर आप गांव बघौला के राजकीय उच्च विद्यालय को देखेंगे तो निश्चित तौर पर यही कहेंगे कि भारत का भविष्य खतरे में है और छोटे-छोटे बच्चों को ये खतरा खुद स्कूल की इमारत से है. आलम ये है कि पलवल के इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के सर पर हर समय किसी हादसे का संकट खड़ा रहता है.

टूटे पिलर, जर्जर छत...
इस सकूल की लगभग सारी इमारत जर्जर हो चुकी है. स्कूल की हर दीवार में दरारें आ चुकी हैं. ऐसा कोई गाटर नहीं बचा है जिसमें दरार ना आई हो और ज्यादातर गाटरों से सीमेंट और मसाला अलग होकर झड़ चुका है और सपोर्ट में केवल खाली सरिए ही दिखाई पड़ते हैं. स्कूलों की ऐसी जर्जर हालते में ही 307 बच्चे रोजाना शिक्षा ग्रहण करते हैं.

बघौला सरकारी स्कूल की बदहाल हालत, देखें स्पेशल रिपोर्ट

धूप में बैठने को मजबूर छोटे-छोटे बच्चे
स्कूल में खतरे की आशंका को देखते हुए इस स्कूल में अधिकांश बच्चों का समय क्लास रूम के बाहर ही बीतता है. बच्चों को ज्यादातर क्लास के बाहर ग्राउंड में बैठाकर पढ़ाया जाता है. बारिश के मौसम में ये परिस्थितियां और भी खराब हो जाती हैं. बारिश के मौसम में जहां एक तरफ कमजोर सपोर्ट के कारण छत के गिरने का खतरा रहता है. वहीं स्कूल के मैदान से पानी इकट्ठा होकर स्कूल के कमरों में भर जाता है.

ये भी पढ़ें- लागत से भी कम रेट पर धान की फसल बेचने को मजबूर किसान, अन्नदाता का बुरा हाल

स्कूल के इस हालात के बारे में स्कूल में आने वाली छात्राओं ने बताया कि स्कूल की इमारत अधिकांश तौर पर जर्जर हो चुकी है और खुद उनके सामने कई बड़े हादसे होने से टले हैं. अपने साथ हुए हादसे का जिक्र करते हुए 2 छात्राओं ने बताया कि जब वो कमरे से बाहर ग्राउंड की तरफ निकल रहे थे तो बारिश के मौसम में अचानक छत से लेंटर का एक टुकड़ा आकर उनके पास गिर पड़ा. गनीमत रही कि उनको किसी तरह की चोट इसमें नहीं आई.

ज्ञान के लिए दांव पर जान!
छात्राओं ने ईटीवी भारत हरियाणा की टीम को एक और बड़ी परेशानी बताई जिसके हमारी चिंता उनके भविष्य को लेकर और बढ़ गई. दरअसल, स्कूल के ठीक सामने से दिल्ली-आगरा हाइवे गुजरता है और बच्चे अपनी जान को दांव पर लगाकर हाइवे क्रॉस करते हैं. उन्होंने कहा कि अगर एक फुटओवर ब्रिज इस हाइवे पर होता तो उनको स्कूल आने जाने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती.

'कंडम इमारत में पढ़ते हैं बच्चे'
इस बारे में गांव के सरपंच रविदत्त से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर स्कूल की इमारत कंडम घोषित हो चुकी है और खुद शिक्षा विभाग ने इसको कंडम घोषित किया है, लेकिन उसके बाद भी बच्चों को उसी इमारत के अंदर बिठाकर पढ़ाया जाता है. उन्होंने कहा कि वो इस मामले को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से मिल भी चुके हैं और कई बार उन्होंने इस मामले को उठाया है लेकिन ना तो किसी राजनेता ने इस मामले की तरफ ध्यान दिया है ना ही शिक्षा विभाग ने अभी तक इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है.

जिला शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी हुई समाप्त !
इस मामले को लेकर जब जिला शिक्षा अधिकारी अशोक बघेल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ग्रामीणों का पत्र उनको मिला था और उस पत्र को उन्होंने अपने ऊपर के अधिकारियों को भेज दिया है और जल्द ही स्कूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने की बात कही जा रही है. उन्होंने माना कि निश्चित तौर से बच्चों को खतरा है, क्योंकि स्कूल की इमारत की हालत भी ठीक नहीं है और हाईवे पर भी बच्चों को काफी खतरा उठाना पड़ता है.

ये भी पढ़ें- भारत का 'मिनी क्यूबा' भिवानी, जहां हर घर में पैदा होता है बॉक्सर

फरीदाबाद: कहा जाता है कि अगर आपको किसी देश का भविष्य जानना है तो आप उस देश के स्कूलों का हाल देख लें. अगर आप गांव बघौला के राजकीय उच्च विद्यालय को देखेंगे तो निश्चित तौर पर यही कहेंगे कि भारत का भविष्य खतरे में है और छोटे-छोटे बच्चों को ये खतरा खुद स्कूल की इमारत से है. आलम ये है कि पलवल के इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के सर पर हर समय किसी हादसे का संकट खड़ा रहता है.

टूटे पिलर, जर्जर छत...
इस सकूल की लगभग सारी इमारत जर्जर हो चुकी है. स्कूल की हर दीवार में दरारें आ चुकी हैं. ऐसा कोई गाटर नहीं बचा है जिसमें दरार ना आई हो और ज्यादातर गाटरों से सीमेंट और मसाला अलग होकर झड़ चुका है और सपोर्ट में केवल खाली सरिए ही दिखाई पड़ते हैं. स्कूलों की ऐसी जर्जर हालते में ही 307 बच्चे रोजाना शिक्षा ग्रहण करते हैं.

बघौला सरकारी स्कूल की बदहाल हालत, देखें स्पेशल रिपोर्ट

धूप में बैठने को मजबूर छोटे-छोटे बच्चे
स्कूल में खतरे की आशंका को देखते हुए इस स्कूल में अधिकांश बच्चों का समय क्लास रूम के बाहर ही बीतता है. बच्चों को ज्यादातर क्लास के बाहर ग्राउंड में बैठाकर पढ़ाया जाता है. बारिश के मौसम में ये परिस्थितियां और भी खराब हो जाती हैं. बारिश के मौसम में जहां एक तरफ कमजोर सपोर्ट के कारण छत के गिरने का खतरा रहता है. वहीं स्कूल के मैदान से पानी इकट्ठा होकर स्कूल के कमरों में भर जाता है.

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स्कूल के इस हालात के बारे में स्कूल में आने वाली छात्राओं ने बताया कि स्कूल की इमारत अधिकांश तौर पर जर्जर हो चुकी है और खुद उनके सामने कई बड़े हादसे होने से टले हैं. अपने साथ हुए हादसे का जिक्र करते हुए 2 छात्राओं ने बताया कि जब वो कमरे से बाहर ग्राउंड की तरफ निकल रहे थे तो बारिश के मौसम में अचानक छत से लेंटर का एक टुकड़ा आकर उनके पास गिर पड़ा. गनीमत रही कि उनको किसी तरह की चोट इसमें नहीं आई.

ज्ञान के लिए दांव पर जान!
छात्राओं ने ईटीवी भारत हरियाणा की टीम को एक और बड़ी परेशानी बताई जिसके हमारी चिंता उनके भविष्य को लेकर और बढ़ गई. दरअसल, स्कूल के ठीक सामने से दिल्ली-आगरा हाइवे गुजरता है और बच्चे अपनी जान को दांव पर लगाकर हाइवे क्रॉस करते हैं. उन्होंने कहा कि अगर एक फुटओवर ब्रिज इस हाइवे पर होता तो उनको स्कूल आने जाने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती.

'कंडम इमारत में पढ़ते हैं बच्चे'
इस बारे में गांव के सरपंच रविदत्त से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर स्कूल की इमारत कंडम घोषित हो चुकी है और खुद शिक्षा विभाग ने इसको कंडम घोषित किया है, लेकिन उसके बाद भी बच्चों को उसी इमारत के अंदर बिठाकर पढ़ाया जाता है. उन्होंने कहा कि वो इस मामले को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से मिल भी चुके हैं और कई बार उन्होंने इस मामले को उठाया है लेकिन ना तो किसी राजनेता ने इस मामले की तरफ ध्यान दिया है ना ही शिक्षा विभाग ने अभी तक इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है.

जिला शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी हुई समाप्त !
इस मामले को लेकर जब जिला शिक्षा अधिकारी अशोक बघेल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ग्रामीणों का पत्र उनको मिला था और उस पत्र को उन्होंने अपने ऊपर के अधिकारियों को भेज दिया है और जल्द ही स्कूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने की बात कही जा रही है. उन्होंने माना कि निश्चित तौर से बच्चों को खतरा है, क्योंकि स्कूल की इमारत की हालत भी ठीक नहीं है और हाईवे पर भी बच्चों को काफी खतरा उठाना पड़ता है.

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Intro:एंकर-- फरीदाबाद,  गांव बघौला के राजकीय उच्च विद्यालय में मौत के साए में 307  बच्चों को शिक्षा दी जा रही है इस विद्यालय की इमारत को शिक्षा विभाग 5 साल पहले ही कंडम घोषित कर चुका है लेकिन इस इमारत में आज भी  बच्चों को रोजाना पढ़ाया जा रहा है इमारत इस कदर जर्जर हो चुकी है की छत की सपोर्ट के लिए लगाए गए सीमेंट के गाटरों (सीमेंट के खम्बे)  से सीमेंट ओर मसाला अलग होकर गिर चुका है  जिसके कारण कभी भी कोई बडा हादसा हो सकता है। 

वीओ-- किसी महान वैज्ञानिक ने कहा है कि अगर आपको किसी देश का भविष्य जानना है तो आप उस देश के स्कूल  और स्कूल के छात्रों का को देखिए । आपको देश का भविष्य पता चल पाएगा । अगर आप गांव बघौला के राजकीय उच्च विद्यालय को देखेंगे तो निश्चित तौर पर यही कहेंगे कि इस देश का भविष्य खतरे में है और ये खतरा खुद उसकी स्कूल की इमारत से है।  क्योंकि इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के सर पर हर समय किसी हादसे का संकट खड़ा रहता है । अब आप सोचेंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं यह हम नहीं कह रहे इस स्कूल की इमारत की तस्वीरें बयां कर रही हैं इस सकूल की लगभग सारी इमारत की छतों के नीचे सपोर्ट के लगाए गए गाटरो (सीमेंट के खम्बों)  में दरारें आ चुकी है।  ऐसा कोई गाटर नहीं बचा है जिसमें दरार ना आयी हो और ज्यादातर गाटरों से सीमेंट और मसाला अलग होकर झड़ चुका है और सपोर्ट में केवल खाली सरिये ही दिखाई दे रहे हैं । तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि छत की सपोर्ट में लगे गाटरों में मात्र सरीया ही रह गये है जो कभी भी निकल कर गिर सकते है।  जिससे आप इसके खतरे का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं इसी सपोर्ट के नीचे 307 बच्चे रोजाना इस स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते हैं खतरे की आशंका को देखते हुए इस स्कूल में अधिकांश बच्चों का समय क्लास रूम के बाहर ही बीतता है बच्चों को ज्यादातर क्लास के बाहर  ग्राउंड में बिठाकर पढ़ाया जाता है।  बारिश के मौसम में यह परिस्थितियां और भी खराब हो जाती हैं बारिश के मौसम में जहां एक तरफ कमजोर सपोर्ट के कारण छत के गिरने का खतरा रहता है वहीं स्कूल के मैदान से पानी इकट्ठा होकर स्कूल के कमरों में भर जाता है स्कूल का फर्श पूरी तरह से टूट चुका है  बारिश के मौसम में स्कूल में सबसे ज्यादा परेशानी होती है कि 300 से भी ज्यादा बच्चों को किस तरह से सुरक्षित रखा जाए । स्कूल की इमारत में कहने को तो लगभग 14 कमरे हैं लेकिन मात्र दो कमरे ही ऐसे हैं जो बारिश के समय में प्रयोग में लाए जाते हैं बारिश के समय में जब भी बारिश आती है सारे बच्चों को इक्कटा करके  दो कमरों के अंदर बिठाया जाता है और छठी से और दसवीं तक के बच्चे इस स्कूल के दो कमरों में सिमट कर रह जाते हैं जिस कारण छात्र और छात्राओं की पढ़ाई पूरी तरह से डिस्टर्ब हो जाती है।  खुद टीचर बताते हैं कि जब दो कमरों में 300 बच्चों को रखा जाता है तो वह पढ़ाई कहां से करा सकते हैं ऐसा नहीं है कि यह उनके लिए कोई नया है पिछले कई सालों से वह इन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं ऐसा तब है जब इस इमारत को खुद शिक्षा विभाग कंडम घोषित कर चुका है और अब खुद ही वह शिक्षा विभाग स्कंडम इमारत की छत के नीचे बच्चों को पढ़ा रहा है टीचर बताते हैं कि वह खुद इस मामले की शिकायत कई बार ऊपर के अधिकारियों से कर चुके हैं लेकिन उनके पास कोई नहीं है तो मजबूरी बस वह डर के साए में बच्चों को यही पढ़ाते हैं

बाईट--सरला देवी , महिला टीचर

वीओ-- स्कूल के इन हालात के बारे में हमने स्कूल में आने वाली छात्राओं से बातचीत की तो उन्होंने अपनी परेशानियों के बारे में बताया कि स्कूल की इमारत अधिकांश तौर पर जर्जर हो चुकी है और खुद उनके सामने कई बड़े हादसे होने से टले हैं अपने साथ हुए हादसे का जिक्र करते हुए 2 छात्राओं ने बताया कि जब वह कमरे से बाहर ग्राउंड की तरफ निकल रहे थे तो बारिश के मौसम में अचानक छत से लेंटर का एक टुकड़ा आकर उनके पास गिर पड़ा।  गनीमत रही कि उनको किसी तरह की चोट इसमें नहीं आई।  छात्राओं ने कहा कि जब उन्होंने इस घटना का जिक्र अपने परिवार के लोगों से किया तो परिवार के लोगों ने उनको स्कूल आने से रोका।  जैसे तैसे उन्होंने अपने घरवालों को समझा कर अपना स्कूल जारी रखा।  छात्राओं के लिए यह समस्या पहली समस्या नहीं है छात्राओं ने बताया कि जब वो स्कूल आते हैऔर स्कूल से वापस घर जाते है तो  उनको नेशनल हाईवे पार करना  पड़ता है।  दिल्ली से आगरा के लिए जाने वाले इस नेशनल हाईवे पर रोजाना भारी वाहन गुजरते हैं जिस कारण हाइवे को क्रॉस करना बहुत ही भारी परेशानी होती है।  छात्रों ने बताया कि बड़े बच्चे जैसे तैसे हाईवे को पार कर लेते हैं लेकिन छोटे जो बच्चे हैं पांचवी और छठी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे हैं उनके लिए यह बेहद खतरनाक स्टंट हो जाता है क्योंकि स्पीड की गाड़ियां हाईवे पर चलती हैं जिस वजह से कई बार उनको काफी समय हाईवे को क्रॉस करने में लगता है उन्होंने कहा कि अगर एक फुट ओवरब्रिज इस हाईवे पर होता तो उनको स्कूल आने जाने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती छात्राओं की बात से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां जर्जर इमारत के होने से डर के साए में पढ़ाई कर रहे हैं वहीं स्कूल से बाहर भी उनको हाईवे क्रॉस करते समय जान जोखिम में डालनी पड़ती है यानी कि बच्चों के घर से निकलने तक स्कूल में पहुंचने तक और स्कूल से वापस घर पहुंचने तक इनके ऊपर किसी हादसे का डर मंडराता रहता है

बाईट-- आशा, छात्रा, 10वीं कक्षा
बाईट- सुधा, छाक्षाबाईट-आशु,
छात्रा कक्षा 10

वीओ- वहीं हाईवें को पार करते हुए एक हादसे का शिकार हुए छात्रा राधा ने बताया कि किस तरह से वो रोड को पार कर रहे थे। सावधानी बरतने के बाद भी उनकी टक्कर एक स्कूटी से हो  गई। जिसमें उसको चोट भी लगी। और कई दिनों तक उनका स्कूल भी बंद रहा। 

बाईट- राधा, छात्रा 

वीओ-- जब इस बारे में गांव के सरपंच रविदत्त से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर स्कूल की इमारत कंडम घोषित हो चुकी है और खुद शिक्षा विभाग में इसको कंडम घोषित किया है लेकिन उसके बाद भी बच्चों को उसी इमारत के अंदर बिठाकर पढ़ाया जाता है उन्होंने कहा कि वह इस मामले को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से मिल भी चुके हैं और कई बार उन्होंने इस मामले को उठाया है लेकिन ना तो किसी राजनेता ने इस मामले की तरफ ध्यान दिया है ना ही शिक्षा विभाग ने अभी तक इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है स्कूल के अंदर जहां बच्चों की जान को खतरा बना रहता है वहीं स्कूल से बाहर निकलने के बाद भी यह खतरा जाता नहीं है क्योंकि बच्चों को स्कूल में आने के लिए नेशनल हाईवे क्रॉस करना पड़ता है जिस पर लाखों वाहन दौड़ते हैं ऐसे में कब क्या हादसा हो जाए कोई इसका अंदाजा नहीं लगा

बाईट--रविदत, गांव बघौला सरपंच

वीओ-- इस मामले को लेकर जब जिला शिक्षा अधिकारी अशोक बघेल से बात की गई तो उन्होंने कहा ग्रामीणों का पत्र उनको मिला था और उस पत्र को उन्होंने अपने ऊपर के अधिकारियों को भेज दिया है और जल्द ही स्कूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने की बात कही जा रही है उन्होंने माना कि निश्चित तौर से बच्चों को खतरा है क्योंकि स्कूल की इमारत की हालत भी ठीक नहीं है और हाईवे पर भी बच्चों को काफी खतरा उठाना पड़ता है उन्होंने कहा कि जैसे ही ऊपर के अधिकारियों से आदेश आएंगे स्कूल को तुरंत दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाएगा उन्होंने कहा कि बच्चों को हाईवे क्रॉस करके यहां पर आना पड़ता है उसके लिए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को उन्होंने लिखकर फुटओवर ब्रिज की मांग भी की थी लेकिन उसकी मांग को आज तक नहीं माना गया

बाईट--अशोक बघेल, जिला शिक्षा अधिकारी , Body:hr_far_01_school_special_story_vis_bite_wkt_ptc_7203403Conclusion:hr_far_01_school_special_story_vis_bite_wkt_ptc_7203403
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