नूंह: तीन तलाक के खिलाफ कानून बनने के बाद हरियाणा के नूंह में पहली FIR दर्ज की गई है. दरअसल, नूंह की रहने वाली साजिदा ने अपने पति सलाहुद्दीन के खिलाफ द मुस्लिम विमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट एंड मैरिज एक्ट 2019 के तहत मामला दर्ज कराया है. महिला का आरोप है कि उसने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस में प्रताड़ना की शिकायत की थी. जिससे नाराज होकर पति ने फोन पर तीन तलाक दे दिया.
कानून पर लोगों की प्रतिक्रिया आई सामने
ट्रिपल तलाक को लेकर अब लोगों की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. नूंह जिले के मुस्लिम समाज के कुछ लोग इसे गलत मान रहे है, तो कुछ लोग इस फैसले को सही मान रहे हैं.
तीन तलाक के खिलाफ कानून
- तीन तलाक को गैर कानूनी बनाते हुए 3 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
- किसी भी तरीके से पति अगर एक बार में अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा.
- तीन तलाक देने पर पत्नी स्वयं या उसके करीबी रिश्तेदार ही इस बारे में केस दर्ज करा सकेंगे.
- महिला अधिकार संरक्षण कानून 2019 कानून के मुताबिक एक समय में तीन तलाक देना अपराध है.
- पुलिस बिना वारंट के तीन तलाक देने वाले आरोपी पति को गिरफ्तार कर सकती है.
- एक समय में तीन तलाक देने पर पति को तीन साल तक कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है.
- पीड़ित महिला का पक्ष सुने बगैर मजिस्ट्रेट तीन तलाक देने वाले पति को जमानत नहीं दे पाएंगे.
- तीन तलाक देने पर पत्नी और बच्चे के भरण पोषण का खर्च मजिस्ट्रेट तय करेंगे, जो पति को देना होगा.
- छोटे बच्चों की निगरानी और रखावाली मां के पास रहेगी.
- कानून में समझौते के विकल्प को भी रखा गया है.
क्या है तीन तलाक?
इस्लाम में तलाक के कई तरीके हैं. इनमें तलाक-ए-एहसान, तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-बिद्दत शामिल हैं. एहसान और हसन से पीछे हटा जा सकता है. लेकिन, तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) से मुकरने की गुंजाइश नहीं है. यानी एक बार पति पत्नी से तीन बार तलाक बोल देता है तो वह उससे पलट नहीं सकता है.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगाई थी. पांच जजों की पीठ ने तुरंत तलाक देने के इस रिवाज को असंवैधानिक करार दिया था. उसने कहा था कि यह इस्लाम की शिक्षा के विरुद्ध है. उत्तराखंड की शायरा बानो की याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था. शायरा को उनके पति ने तीन बार तलाक लिख कर चिट्टी भेजी थी, जिसके बाद उन्होंने शायरा छोड़ दिया था. इसी के बाद शायरा ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. तब शायरा की याचिका के साथ चार और मुस्लिम महिलाओं की ऐसी ही याचिकाएं जोड़ दी गई थीं.
राज्यसभा में दोबारा आया मामला
25 जुलाई को लोकसभा ने प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल को पारित कर दिया. यह बिल तीन तलाक के नाम से जाना जाता है. एनडीए के सहयोगी दल जदयू ने बिल पर बहस में हिस्सा नहीं लिया. लोकसभा से बिल के पारित होने के बाद कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने राज्यसभा में यह बिल पेश किया. बिल पेश करते हुए उन्होंने कहा, 'इस मसले को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए. यह महिलाओं को न्याय, सम्मान और बराबरी से जुड़ा है.' मंगलवार को यह बिल राज्यसभा में भी पास हो गया. जिसके बाद राष्ट्रपित के दस्तखत के बाद बिल कानून बन गया.
पहले राज्यसभा में पारित नहीं हुआ था बिल
2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कानून मंत्री ने तुरंत यह बिल लोकसभा में पेश किया था. तीन तलाक के मामले में तीन साल की जेल का प्रावधान करते हुए इसे आपराधिक मामला बनाया था. तब यह बिल लोकसभा से पारित हो गया था. हालांकि, राज्यसभा में राजग का बहुमत न होने के कारण यह पारित नहीं हो सका था.
इन देशों में तीन तलाक पर है रोक
ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मलेशिया, जॉर्डन, मिस्र, ब्रुनेई, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, लीबिया, सूडान, लेबनान, सऊदी अरब, मोरोक्को और कुवैत जैसे मुस्लिम देशों में तीन तलाक पर प्रतिबंध है. यहां तक कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी तीन तलाक पर रोक है.