ETV Bharat / state

हरियाणा के इस शहर में थी मिर्जा गालिब की ससुराल

'हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है' तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है'. बेशक महान अदीब और शायर मिर्जा गालिब भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं मगर उनकी मौजूदगी आज भी कहीं ना कहीं जब-तब दस्तक देती रहती है.

मिर्जा गालिब (प्रतीकात्मक तस्वीर
author img

By

Published : Feb 9, 2019, 2:25 AM IST

फिरोजपुर झिरका: 'हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है' तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है'. बेशक महान अदीब और शायर मिर्जा गालिब भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं मगर उनकी मौजूदगी आज भी कहीं ना कहीं जब-तब दस्तक देती रहती है.

भारतीय उपमहाद्वीप में जब कभी उर्दू-फारसी शायरी की चर्चा होती है, तो यह लाजिमी है कि गालिब का जिक्र भी उस महफिल में कायदे से किया जाता है. शायरी के अंदाजे बयां का जो सलीका गालिब के पास था, उसकी नजीर कहीं नहीं मिलती।

आगरे में आज ही के दिन 1797 में जन्में मिर्जा असद-उल्लाह बेग खां उर्फ “गालिब” ने 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था.


उन्हें अगर कायदे से याद किया जाए तो उनके शेर, बेहतरीन नज्म, फारसी पर उनकी जबरदस्त पकड़ , मजाकिया अंदाज और लहजा, बेलौस और उधारी की मारी हुई जिंदगी, आम से मोहब्बत, शराब से सोहबत, जुए की लत, डोमनी से इश्कबाजी और न जाने क्या-क्या याद आ जाता है. शायरी के अलावा एक और बात जो उन्हें ‘गालिब ‘बनाती है, वह है उनके खत. इतिहासकारों का मानना है कि अगर गालिब ने शायरी न भी की होती तो उनके खत उन्हें अपने दौर का सबसे जहीन इंसान बना देते. दरअसल उन्हें खत लिखने का बेहद शौक था.

गालिब का हरियाणा से ये संबंध
मिर्जा मुगल काल के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर के दरबारी कवि भी रहे थे. ये कम लोग ही जानते हैं कि आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज्यादातर जिंदगी गुजारने वाले गालिब का संबंध हरियाणा से भी था. हरियाणा उर्दू अकादमी के प्रमुख शम्स तबरेजी बताते हैं कि मिर्जा गालिब की ससुराल फिरोजपुर झिरका में थी. मिर्जा गालिब हरियाणा की फिरोजपुर झिरका रियासत के नवाब समशुदीन के बहनोई थे.

undefined

इसे भी पढ़ें:- 'कोस मीनारें' सिर्फ़ 'कोस मीनारें' नहीं हैं! हमारी हिस्ट्री, ज्यॉग्राफी और सोशियोलॉजी भी हैं...

जानकार बताते हैं कि नवाब अहमद बख्श की पहली पत्नी की लड़की उमराव बेगम के साथ मिर्जा गालिब का निकाह हुआ था. मजेदार बात ये है कि गालिब की मौत के बाद जब उनकी पत्नी उमराव मिर्जा की मौत हुई, तो उस दौर में बेगम उमराव की पेंशन फिरोजपुर झिरका रियासत से ही मिलती थी. हालाकि बाद में अंग्रेजों ने उनका पेंशन बंद कर दी थी.

रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं कायल,

जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है

फिरोजपुर झिरका: 'हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है' तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है'. बेशक महान अदीब और शायर मिर्जा गालिब भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं मगर उनकी मौजूदगी आज भी कहीं ना कहीं जब-तब दस्तक देती रहती है.

भारतीय उपमहाद्वीप में जब कभी उर्दू-फारसी शायरी की चर्चा होती है, तो यह लाजिमी है कि गालिब का जिक्र भी उस महफिल में कायदे से किया जाता है. शायरी के अंदाजे बयां का जो सलीका गालिब के पास था, उसकी नजीर कहीं नहीं मिलती।

आगरे में आज ही के दिन 1797 में जन्में मिर्जा असद-उल्लाह बेग खां उर्फ “गालिब” ने 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था.


उन्हें अगर कायदे से याद किया जाए तो उनके शेर, बेहतरीन नज्म, फारसी पर उनकी जबरदस्त पकड़ , मजाकिया अंदाज और लहजा, बेलौस और उधारी की मारी हुई जिंदगी, आम से मोहब्बत, शराब से सोहबत, जुए की लत, डोमनी से इश्कबाजी और न जाने क्या-क्या याद आ जाता है. शायरी के अलावा एक और बात जो उन्हें ‘गालिब ‘बनाती है, वह है उनके खत. इतिहासकारों का मानना है कि अगर गालिब ने शायरी न भी की होती तो उनके खत उन्हें अपने दौर का सबसे जहीन इंसान बना देते. दरअसल उन्हें खत लिखने का बेहद शौक था.

गालिब का हरियाणा से ये संबंध
मिर्जा मुगल काल के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर के दरबारी कवि भी रहे थे. ये कम लोग ही जानते हैं कि आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज्यादातर जिंदगी गुजारने वाले गालिब का संबंध हरियाणा से भी था. हरियाणा उर्दू अकादमी के प्रमुख शम्स तबरेजी बताते हैं कि मिर्जा गालिब की ससुराल फिरोजपुर झिरका में थी. मिर्जा गालिब हरियाणा की फिरोजपुर झिरका रियासत के नवाब समशुदीन के बहनोई थे.

undefined

इसे भी पढ़ें:- 'कोस मीनारें' सिर्फ़ 'कोस मीनारें' नहीं हैं! हमारी हिस्ट्री, ज्यॉग्राफी और सोशियोलॉजी भी हैं...

जानकार बताते हैं कि नवाब अहमद बख्श की पहली पत्नी की लड़की उमराव बेगम के साथ मिर्जा गालिब का निकाह हुआ था. मजेदार बात ये है कि गालिब की मौत के बाद जब उनकी पत्नी उमराव मिर्जा की मौत हुई, तो उस दौर में बेगम उमराव की पेंशन फिरोजपुर झिरका रियासत से ही मिलती थी. हालाकि बाद में अंग्रेजों ने उनका पेंशन बंद कर दी थी.

रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं कायल,

जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है

Dear

PFA of Day Plan 8th Feb 2019

Regard

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.