कुरुक्षेत्र: अमूमन हमारे समाज में किन्नरों को बहिष्कृत समझा जाता है. अधिकांश किन्नर लोगों से कुछ मांग कर अपना जीवन यापन करते हैं. लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें किसी के आगे हाथ फैलाना मंजूर नहीं. खुद की कमाई में भरोसा करते हुए अपना जीविकोपार्जन करते हैं. कैफ और एलिस भी किन्नर हैं लेकिन इन लोगों ने अपनी खुद की पहचान बनायी है. वे लकड़ी का समान बेच कर जीवन यापन कर रहे हैं.
हमें मांगना पसंद नहीं: हमें मांगना पसंद नही था, हम दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाना चाहते थे. हम भी आम लोगो की तरह समाज में शान से जीना चाहते हैं. ये कहना है देहरादून के किन्नर कैफ और एलिस का. ये दोनों पिछले कई सालों से गीता महोत्सव के दौरान कुरुक्षेत्र आते हैं. लकड़ी से बने समान को वे लेकर आते हैं. उनके द्वारा तैयार किए गए लकड़ी से बने बाउल, ड्राई फ्रूट ट्रे और खिलौनों को लोग खूब पसंद करते हैं. ये लोग अब तक पंजाब, हिमाचल प्रदेश,उत्तर प्रदेश और हरियाणा में कई जगहों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं.
हमें दुनिया से अलग मत समझो: किन्नर कैफ पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहते थे लेकिन पांचवी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी. पढ़ाई छोड़ने का कारण पूछने पर वे बताते हैं कि समाज हमें अलग ही नजर से देखता है. उनका कहना है कि हमें दुनिया से अलग मत समझें, हम भी इस समाज का हिस्सा हैं. कैफ ने करीब 20 साल पहले लकड़ी का काम सीखना शुरू किया और आज उन्हें लकड़ी के काम में महारत हासिल है. एलिस भी पिछले पांच सालों से कैफ के साथ मिलकर लकड़ी का सामान तैयार कर रहे हैं. उन्हें भी मांगना पसंद नही था इसलिए कैफ के साथ मिलकर रोजगार शुरू किया. एलिस का कहना है कि जो पैसा इस काम से मिलता है उससे हमारा गुजारा अच्छे से चल जाता है, हमें दूसरों से मांगने की जरूरत नहीं पड़ती.