कुरुक्षेत्र: सच ही कहा है किसी ने, मेहनत से ही मिलते हैं मुकाम, यूं ही सफलता की इबादत नहीं लिखी जाती. ऐसी ही मेहनत और संघर्ष की कहानी हैं भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान सुरेंद्र कौर, जो अब बतौर डीएसपी यमुनानगर में देश की सेवा में जी-जान से जुटी हैं. सुरेंद्र कौर ने अपनी मेहनत के दम पर इंटरनेशनल हॉकी में नाम कमाया, और अपनी कप्तानी में भारतीय टीम को गोल्ड मेडल दिलाया, जिसके लिए उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
यमुनानगर के महिला थाने में डीएसपी के पद पर तैनात सुरेंद्र कौर दूसरी लड़कियों के लिए मिसाल पेश कर रही हैं. कुरुक्षेत्र के खंड चारबाग में 12 जुलाई 1982 को मजदूर परिवार में जन्मी सुरेंद्र कौर का सफर चुनौतिपूर्ण रहा है.
सुरेंद्र कौर की एक बहन और एक भाई हैं. सुरेंद्र कौर इन सब में से छोटी हैं. सुरेंद्र बचपन से ही स्कूल आते-जाते वक्त हॉकी के मैदान को देखा करती थी. हॉकी खेलते खिलाड़ियों को देखकर सुरेंद्र ने हॉकी खेलने की ठानी. जब वो 6ठीं क्लास में थी तब उन्होंने पिता सुखदेव से हॉकी खेलने की इच्छा जताई. एक लड़की का हॉकी खेलना उस वक्त बड़ी बात थी. इसपर ध्यान ना देते हुए सुरेंद्र की जिद्द के चलते परिजनों ने उसे हॉकी खिलाने का फैसला किया.
संघर्ष और कुछ करने का जूनून शायद ये वो चीजें थी जिसने आज सुरेंद्र कौर को सफलता की ऊंचाईयों तक पहंचाया. द्रोणाचार्य अवॉर्डी सरदार बलदेव सिंह सुरेंद्र कौर के कोच रहे हैं. कोच बलदेव ने सुरेंद्र की आर्थिक सहायता भी की. सुरेंद्र कौर के साथी ने भी उनकी संघर्ष की कहानी ईटीवी भारत के साथ साझा की. उन्होंने बताया कि उस वक्त खिलाड़ियों के पास ज्यादा सुविधाएं नहीं होती थी. सुरेंद्र के पास तो डाइड के भी पैसे नहीं होते थे. फिर भी संघर्ष और कड़ी मेहनत ने सुरेंद्र को झुकने नहीं दिया.
ये भी पढ़ें- ऑनलाइन एजुकेशन और वर्क फ्रॉम होम ने बढ़ाई लैपटॉप और कंप्यूटर की डिमांड
बहुत की कम लोग जानते होंगे की सुरेद्र कौर का नाम कोच बलदेव सिंह का दिया हुआ है. एकेडमी में एडमिशन से पहले उनका नाम रानी था. सुरेंद्र कौर के पिता मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. और यहां काम की तलाश में पहुंचे थे. जब उन्हें खेतों में मेहनत मजदूरी का काम मिला तो वो पत्नी को भी यहां ले आए. मेहनत मजदूरी किसी तरह उनके पिता सुखदेव सिंह ने सुरेंद्र कौर को पाला. गरीबी और चुनौतियां भी सुरेंद्र कौर को हौसले को नहीं डिगा पाई.