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ये है कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल, अमेरिका से लेकर यूरोप तक में है इसकी डिमांड

पंजाब की अमृतसर अनाज मंडी के अलावा हरियाणा के लाडवा में ही इस फसल की बिक्री होती है. सलेहरी की फसल अपनी महक से हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. ये खास फसल पंजाब और हरियाणा के इलाके में ही होती है. इसकी सबसे खास बात ये है कि ये खेतों में अपने आप हो जाती है. बिना लागत के मुनाफा देने वाली फसल है.

sanehari crop in haryana
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Published : Apr 22, 2022, 4:14 PM IST

Updated : Apr 22, 2022, 7:03 PM IST

कुरुक्षेत्र: हरियाणा में अब गेहूं का सीजन लगभग बीत चुका है. जिसके बाद अब कुरुक्षेत्र की लाडवा अनाज मंडी में सलेहरी की औषधीय फसल बिक्री के लिए पहुंचनी शुरू हो गई है. इस फसल की खरीद पंजाब और हरियाणा में ही की जाती है. पहला पंजाब की अमृतसर अनाज मंडी और दूसरा कुरुक्षेत्र की लाडवा अनाज मंडी. इस फसल को बेचने के लिए पंजाब के साथ लगते प्रदेश के जिलों और राजस्थान के किसान आते हैं. सलेहरी की ये फसल बेहद खास है. इससे एक खास तरह का औषधीय प्रिजरवेटिव तैयार किया जाता है.

क्या है सलेहरी- सलेहरी एक प्रकार की औषधीय फसल है. इसे नवंबर महीने में मटर की फसल के साथ उगाया जाता है. जब मटर की फसल लगभग तैयार हो जाती है तो इसका पौधा भी बड़ा होने लगता है. जब मटर की फसल खत्म हो जाती है तो ये मौसम में गर्मी बढ़ते ही पकने लगती है. सबसे बड़ी बात ये है कि इसको कपास, बांस, मटर के साथ उसी खेत में उगाया जा सकता है और इसे एक बार लगाया जाता है अगली बार ये खेत में खुद ही उग जाती है.

ये है कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल, अमेरिका से लेकर यूरोप तक में है इसकी डिमांड

ये देखने में बिल्कुल अजवाइन जैसी होती है. इसका उपयोग अधिकतर ठंडे क्षेत्रों में किया जाता है और इसके तेल का उपयोग दवाइयां बनाने में किया जाता है. बचे हुए भूसे से पशुओं के लिए दवाइयां बनाई जाती है. हरियाणा के दस प्रतिशत किसान की इस खेती को कर रहे हैं. इस फसल को अधिकतर हरियाणा और पंजाब के किसान ही अपने खेतों में उगाते हैं. इस फसल को उगाने में लागत बहुत ही कम है और मुनाफा कहीं ज्यादा. पहले किसान इसके साथ उगाई गई फसल से मुनाफा कमाता है और फिर उसी खेत से सलेहरी की फसल से मुनाफा कमाता है.

सलेहरी फसल का इतिहास भी काफी पुराना है. सन 1960 में पंजाब के एक किसान सरदार प्रीतपाल सिंह इसे फ्रांस से लेकर भारत आए थे. ये एक ऐसा कृषि उत्पाद है जो सौ प्रतिशत निर्यात होता है. ये फसल अमेरिका सहित यूरोपियन देशों में निर्यात की जाती है. जहां इसका प्रयोग दवाइयां बनाने के साथ-साथ खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है. आढ़ती पवन बंसल का कहना है कि इस बार लाडवा मंडी में इस औषधीय फसल की आवक बहुत कम हई है.

लाडवा मंडी में हर साल करीब 15 से 16 हजार बोरी सलेहरी बिकने के लिए पहुंचती थी, लेकिन इस बार मंडी में यह फसल कम पहुंची है. उन्होंने कहा कि पिछले साल के मुकाबले इस साल इस फसल के दाम अधिक हैं. मंडी में इस बार यह फसल आठ हजार से दस हजार रुपये प्रति क्विटल तक बिक रही है, लेकिन कम आवक के कारण इसके रेट दस हजार रुपये के पार भी जा सकते हैं. किसान संजीव नंबरदार का कहना है कि यह फसल 6 से 7 क्विटल प्रति एकड़ निकलती है. इस बार झाड़ कम रहा है. समय से पहले गर्मी पड़ने से इसके उत्पादन पर काफी असर पड़ रहा है

लागत बिल्कुल कम और मुनाफा काफी ज्यादा- सलेहरी की कीमत 8 हजार प्रति क्विंटल से लेकर 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है. ये 1 एकड़ में लगभग 4 से 7 क्विंंटल तक पैदा हो जाती है. अगर मुनाफे की बात की जाए तो किसान 1 एकड़ से लगभग इस फसल से 70 हजार रुपये कमा सकता है. इस फसल का प्रयोग अधिकतर दवा बनाने के साथ-साथ खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक सहेजकर रखने के लिए किया जाता है.

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कुरुक्षेत्र: हरियाणा में अब गेहूं का सीजन लगभग बीत चुका है. जिसके बाद अब कुरुक्षेत्र की लाडवा अनाज मंडी में सलेहरी की औषधीय फसल बिक्री के लिए पहुंचनी शुरू हो गई है. इस फसल की खरीद पंजाब और हरियाणा में ही की जाती है. पहला पंजाब की अमृतसर अनाज मंडी और दूसरा कुरुक्षेत्र की लाडवा अनाज मंडी. इस फसल को बेचने के लिए पंजाब के साथ लगते प्रदेश के जिलों और राजस्थान के किसान आते हैं. सलेहरी की ये फसल बेहद खास है. इससे एक खास तरह का औषधीय प्रिजरवेटिव तैयार किया जाता है.

क्या है सलेहरी- सलेहरी एक प्रकार की औषधीय फसल है. इसे नवंबर महीने में मटर की फसल के साथ उगाया जाता है. जब मटर की फसल लगभग तैयार हो जाती है तो इसका पौधा भी बड़ा होने लगता है. जब मटर की फसल खत्म हो जाती है तो ये मौसम में गर्मी बढ़ते ही पकने लगती है. सबसे बड़ी बात ये है कि इसको कपास, बांस, मटर के साथ उसी खेत में उगाया जा सकता है और इसे एक बार लगाया जाता है अगली बार ये खेत में खुद ही उग जाती है.

ये है कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल, अमेरिका से लेकर यूरोप तक में है इसकी डिमांड

ये देखने में बिल्कुल अजवाइन जैसी होती है. इसका उपयोग अधिकतर ठंडे क्षेत्रों में किया जाता है और इसके तेल का उपयोग दवाइयां बनाने में किया जाता है. बचे हुए भूसे से पशुओं के लिए दवाइयां बनाई जाती है. हरियाणा के दस प्रतिशत किसान की इस खेती को कर रहे हैं. इस फसल को अधिकतर हरियाणा और पंजाब के किसान ही अपने खेतों में उगाते हैं. इस फसल को उगाने में लागत बहुत ही कम है और मुनाफा कहीं ज्यादा. पहले किसान इसके साथ उगाई गई फसल से मुनाफा कमाता है और फिर उसी खेत से सलेहरी की फसल से मुनाफा कमाता है.

सलेहरी फसल का इतिहास भी काफी पुराना है. सन 1960 में पंजाब के एक किसान सरदार प्रीतपाल सिंह इसे फ्रांस से लेकर भारत आए थे. ये एक ऐसा कृषि उत्पाद है जो सौ प्रतिशत निर्यात होता है. ये फसल अमेरिका सहित यूरोपियन देशों में निर्यात की जाती है. जहां इसका प्रयोग दवाइयां बनाने के साथ-साथ खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है. आढ़ती पवन बंसल का कहना है कि इस बार लाडवा मंडी में इस औषधीय फसल की आवक बहुत कम हई है.

लाडवा मंडी में हर साल करीब 15 से 16 हजार बोरी सलेहरी बिकने के लिए पहुंचती थी, लेकिन इस बार मंडी में यह फसल कम पहुंची है. उन्होंने कहा कि पिछले साल के मुकाबले इस साल इस फसल के दाम अधिक हैं. मंडी में इस बार यह फसल आठ हजार से दस हजार रुपये प्रति क्विटल तक बिक रही है, लेकिन कम आवक के कारण इसके रेट दस हजार रुपये के पार भी जा सकते हैं. किसान संजीव नंबरदार का कहना है कि यह फसल 6 से 7 क्विटल प्रति एकड़ निकलती है. इस बार झाड़ कम रहा है. समय से पहले गर्मी पड़ने से इसके उत्पादन पर काफी असर पड़ रहा है

लागत बिल्कुल कम और मुनाफा काफी ज्यादा- सलेहरी की कीमत 8 हजार प्रति क्विंटल से लेकर 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है. ये 1 एकड़ में लगभग 4 से 7 क्विंंटल तक पैदा हो जाती है. अगर मुनाफे की बात की जाए तो किसान 1 एकड़ से लगभग इस फसल से 70 हजार रुपये कमा सकता है. इस फसल का प्रयोग अधिकतर दवा बनाने के साथ-साथ खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक सहेजकर रखने के लिए किया जाता है.

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Last Updated : Apr 22, 2022, 7:03 PM IST
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