कुरुक्षेत्र: विश्वविद्यालय में लेक्चरर, कर्मचारियों के ज्यादातर पद खाली पड़े हैं. जिसके चलते शिक्षा के साथ-साथ दूसरे काम भी प्रभावित हो रहे हैं. लेक्चरर के पद खाली होने से शिक्षा के स्तर में गिरावट भी देखने को मिली है. ईटीवी भारत हरियाणा ने जब कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में छात्रों से बात की उन्होंने शिक्षा नीतियों को जिम्मेदार ठहराया. छात्रों ने माना कि शिक्षा के निजीकरण की वजह से भी उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है. शिक्षा के गिरते स्तर का छात्रों ने एक मुख्य मुद्दा विश्वविद्यालय के अंदर राजनीतिक हस्तक्षेप को भी माना.
आरोप है कि राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते सरकार अपने लोगों को विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में काबिज कर लेती है. चाहे फिर उन्हें अनुभव हो या फिर नहीं. वो लोग विश्वविद्यालय के अंदर प्रशासनिक अधिकारियों से काम करवाते हैं और जिससे कामों में खामियां रह जाती हैं. जिससे शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है.
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में स्कूल बजटेड पोस्ट 506 हैं. जिनमें से 271 पर सेक्शन लेक्चरर लगे हुए हैं और 170 के लगभग लेक्चरर कॉन्ट्रैक्ट बेस पर लगे हुए हैं. 95 के लगभग फाइनेंस स्कीम के तहत विद्यार्थियों को शिक्षा दे रहे हैं. कुल मिलाकर अगर बात करें तो लगभग 40% पद खाली हैं. रजिस्ट्रार महोदय संजीव शर्मा ने बताया कि बाकी जितनी पोस्ट हैं उनको भरने के लिए भी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय प्रयासरत है.
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में गैर शिक्षक संघ के प्रधान नीलकंठ शर्मा ने बताया कि वो मानते हैं कि विश्वविद्यालय के अंदर कर्मचारियों की कमी है और कम संख्या में कर्मचारी होने के चलते लोगों के कामों में देरी होती है. जिसके लिए वो कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन को भी चेता चुके हैं और इस विषय को लेकर उनकी विश्वविद्यालय प्रशासन से बात भी चल रही है, कि विश्वविद्यालय के अंदर जो भी रिक्त पद पड़े हैं. उनको जल्दी भरा जाए.
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दूसरे पदों के खाली रहने का मुख्य कारण नीलकंठ शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय के अंदर रेगुलर भर्ती नहीं हो रही है. जिसके चलते उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है. हरियाणा पंजाब हाई कोर्ट के अधिवक्ता जवाहर लाल गोयल ने भी इस विषय पर बेबाकी से अपनी राय रखी और उन्होंने कहा कि ऐसे कई कारण हैं जिनके चलते विश्वविद्यालय के अंदर कई पद खाली पड़े हैं. उन्होंने सबसे पहला कारण शिक्षा पर बजट कम होना बताया. जिसके चलते विश्वविद्यालय प्रशासन से जुड़ी नौकरियों के प्रति युवाओं का रुझान भी कम हुआ है. उन्होंने कहा इसके लिए और भी अनेक चीजें जिम्मेदार हैं. जिन्हें एक पटल पर रख कर और उन सभी का विश्लेषण करके एक अच्छी शिक्षा नीति के तहत सुलझाया जा सकता है.
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कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से जब ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उन्होंने स्वयं भी माना के उनके विश्वविद्यालय में जितनी संख्या में कर्मचारी होने चाहिए उतने नहीं है. उन्होंने कहा कि वो इस बात के लिए प्रयासरत हैं कि विश्वविद्यालय के अंदर रिक्त पड़े पदों को जल्दी भरा जाए. इस पूरे मसले के विश्लेषण के बाद दो बातें निकल कर सामने आई पहली बात यह के विश्वविद्यालय के अंदर राजनीतिक हस्तक्षेप भी काफी हद तक इस विषय को प्रभावित करता है और दूसरी तरफ शिक्षा पर खर्च होने वाले बजट को अगर बढ़ाया जाए तो विश्वविद्यालय में जो रिक्त पद पड़े हैं उनके प्रति युवाओं का और नौकरी करने वालों का रुझान बढ़ेगा.