करनाल : नरक का नाम सुनते ही हर कोई डर जाता है. हिंदू धर्म में कहा जाता है कि जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है, उसके लिए स्वर्ग के द्वार खुले होते हैं, जबकि बुरे कर्म करने पर शख्स नरक जाता है जहां उसे अलग-अलग तरीके के दंड भुगतने पड़ते हैं. आप सोच रहे होंगे कि हम नरक का जिक्र क्यों कर रहे हैं. दरअसल नरक चतुर्दशी के नाम से त्यौहार भी है जिसका विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है. इसे कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे नरक चौदस, रूप चौदस या रूप चतुर्दशी.
नरक चतुर्दशी कब मनाई जाएगी ? : पंडित कर्मपाल शर्मा बताते हैं कि भारत में नरक चतुर्दशी को बहुत ही आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है. वहीं नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान के साथ शाम के वक्त यमराज के लिए दीपदान करने का ख़ास महत्व है. लेकिन शुभ मुहूर्त के मुताबिक ही ऐसा करना चाहिए वर्ना ज़िंदगी में कई तरह की परेशानियां शुरू हो जाती है. पंडित जी ने बताया कि हिंदू पंचांग के मुताबिक इस बार नरक चतुर्दशी की शुरुआत 11 नवंबर को दोपहर 1:57 से हो रही है, जबकि इसका समापन 12 नवंबर को दोपहर 2:44 पर होगा. सनातन धर्म में हर त्यौहार उदया तिथि के साथ मनाया जाता है, इसलिए नरक चतुर्दशी को 12 नवंबर के दिन मनाया जाएगा.
अभ्यंग स्नान और दीपदान का शुभ मुहूर्त : पंचाग के मुताबिक इस बार अभ्यंग स्नान करने का शुभ मुहूर्त 12 नवंबर को सुबह 5:28 से शुरू होगा जो सुबह 6:41 तक रहेगा. वहीं यमराज के लिए दीपदान करने का शुभ मुहूर्त शाम के 5:29 से लेकर 8:07 तक रहेगा. इस दिन घर की महिलाएं घर के सुख-शांति के लिए कामना करती हैं.
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अभ्यंग स्नान का क्या है महत्व ? : नरक चतुर्दशी पर विशेष तौर से यमराज, भगवान श्री कृष्ण, मां काली और हनुमान जी की पूजा अर्चना करने का भी विधान है. शास्त्रों के मुताबिक नरक चतुर्दशी की सुबह उबटन लगाने के बाद अभ्यंग स्नान करना सबसे अच्छा माना जाता है. अभ्यंग स्नान इसलिए किया जाता है क्योंकि ये दिन यमराज का दिन होता है. माना जाता है कि अभ्यंग स्नान करने से यमराज सौंदर्य प्रदान करते हैं. ऐसा करने से तनाव भी दूर होता है और मन भी काफी शांत रहता है.
नरक या रूप चतुर्दशी का क्या है महत्व ? : नरक चतुर्दशी को नरक निवारण करने वाली चतुर्दशी भी कहा जाता है. कहीं पर इसको काली चौदस के नाम से भी मनाया जाता है. कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी पर यमराज के नाम पर शाम के समय दीपदान करने पर वे प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों का अकाल मृत्यु का भय ख़त्म होता है. इसे रूप चौदस या रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. इस दिन शादीशुदा महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं जिससे उनको सौंदर्य और सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद भी मिलता है. नरक चतुर्दशी पर छोटी दिवाली भी होती है और मां लक्ष्मी का घरों में पूजन होता है जिससे घर में सुख-शांति का आगमन होता है. साथ ही दीपदान और दिया जलाने से घर की सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है
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नरक चतुर्दशी की शुरुआत : पौराणिक मान्याताओं के मुताबिक नरक चतुर्दशी की कहानी भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है. द्वापर युग में नरकासुर नाम का राक्षस था. उसने अपनी शक्ति से देवताओं के साथ-साथ ऋषि, मुनियों और 16 हजार कन्याओं को बंदी बना लिया था. अत्याचारों से परेशान होकर सभी ने भगवान श्रीकृष्ण से गुहार लगाई और उन्होंने नरकासुर का वध कर ऋषि मुनियों और 16 हजार कन्याओं को मुक्त कराया था. राक्षस की कैद से आज़ाद होने के बाद समाज में कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान ने सभी कन्याओं से विवाह कर लिया. तभी से नरक चतुर्दशी मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई.