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गेहूं की फसल के अवशेषों में आग ना लगाए किसान, इस तरह करें फसल अवशेष का प्रबंधन, मिट्टी भी होगी उपजाऊ

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Published : Apr 20, 2023, 3:24 PM IST

Updated : Apr 20, 2023, 4:04 PM IST

गेहूं की फसल के अवशेषों में आग लगाने की बजाय किसान इनका बेहतर तरीके से प्रबंधन कर सकते हैं. कृषि विशेषज्ञों की माने तो इसके कई तरीके के हैं, जिनके द्वारा किसान फसल अवशेष का प्रबंधन कर सकते हैं.(Crop Residue Management)

Crop Residue Management
गेंहू फसल के अवशेषों में आग नहीं लगाए किसान

करनाल: हरियाणा में गेहूं की कटाई पूरे जोरों पर चल रही है. हरियाणा में काफी हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती की जाती है. वहीं गेहूं की कटाई के बाद बचे हुए अवशेष से किसान कृषि यंत्रों के जरिए अपने पशुओं के लिए सूखा चारा तैयार करते हैं. उसके बाद भी किसानों के खेत में गेहूं के अवशेष बच जाते हैं. गेहूं के अवशेष धान के अवशेष की अपेक्षा काफी हार्ड होते हैं. जिसके चलते किसान उनका प्रबंधन करने की बजाय, इनमें आग लगा देते हैं.

ताकि आने वाली फसल की तैयारी की जा सके. किसान जल्दबाजी में आग लगाने का फैसला जरूर ले लेते हैं, लेकिन किसान नहीं जानते कि फसल अवशेष में आग लगाने से किसानों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमजोर होती है और जो मिट्टी में फसल के लिए लाभदायक मित्र कीट भी जलकर नष्ट हो जाते हैं. जिससे अगली फसल की पैदावार पर काफी प्रभाव पड़ता है.

Crop Residue Management
डी कंपोजर कैप्सूल का कर सकते हैं प्रयोग

डी कंपोजर कैप्सूल का प्रयोग: कृषि विशेषज्ञ डॉ. रामप्रकाश ने बताया कि किसानों के सामने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए काफी मुश्किलें आ रही थी. इसके चलते किसानों को मजबूरन अपनी फसल अवशेष में आग लगानी पड़ती थी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान करनाल के द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन करने के लिए पूसा डी कंपोजर कैप्सूल नामक एक दवा तैयार की गई है. जिससे फसल अवशेष प्रबंधन करने में काफी हद तक किसानों को सफलता मिलती है. यह कैप्सूल 50 रुपए में 4 आते हैं.

जिनका घोल तैयार करके 1 एकड़ फसल अवशेष का प्रबंधन किया जा सकता है. इसका प्रयोग किसान इस प्रकार कर सकते हैं कि सबसे पहले 5 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ को डालकर उसको धीमी आग पर उबाले, जब गुड़ अच्छे से मिल जाए तब उसको ठंडा कर लें. अब उसमें 50 ग्राम बेसन मिलाकर साथ में 4 कैप्सूल लेकर उस घोल में मिला दें, ऐसे डी कंपोजर कैप्सूल का घोल तैयार हो जाता है. उस घोल को 100 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ में स्प्रे करें, करीब 15 से 20 दिन के बाद किसानों के खेत में खड़े हुए फसल अवशेष गलने शुरू हो जाएंगे.

ढैंचा लगाकर करें फसल अवशेष प्रबंधन: फसल अवशेष का प्रबंधन करने के साथ जो किसान अपने खेत की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं. उन किसान भाइयों के लिए ढैंचा एक बहुत ही अच्छा विकल्प है, जिसके बीज पर हरियाणा सरकार 80 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है. बिजाई के दिन से 1 महीने बाद तक यह 10 से 15 फीट लंबा हो जाता है और उसके बाद किसान धान रोपाई से पहले या कोई अन्य फसल लगाने से पहले इसको ट्रैक्टर संचालित मशीन के साथ मिट्टी में मिला देते हैं.

Crop Residue Management
ढांचे की खेती से उपजाऊ होती है भूमि

इस प्रक्रिया से किसानों की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और फसल अवशेष प्रबंधन भी हो जाता है. ढैंचा लगाने के लाभ कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर राम प्रकाश ने बाताया कि ढैंचा यूरिया का एक इको फ्रेंडली ऑप्शन है. इसको लगाने के बाद अगली फसल में यूरिया का इस्तेमाल नाम मात्र का ही करना होता है. वहीं डीएपी खाद की भी कमी को यह पूरा कर देता है. ढैंचा लगाने से खेत की मिट्टी के मित्र कीट की संख्या में बढ़ोतरी होती है. ढैंचा से कई प्रकार के रसायनिक पदार्थ मिट्टी को मिलते हैं.

मूंग की फसल लगाकर करें फसल अवशेष प्रबंधन: फसल अवशेष का प्रबंधन करने के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग फसल की बिजाई भी की जा सकती है. इसमें किसान अपनी फसल अवशेष प्रबंधन भी कर सकते हैं. वहीं किसान गेहूं कटाई के बाद और धान रोपाई से पहले एक अन्य फसल भी ले लेते हैं. कृषि विशेषज्ञ के अनुसार मूंग की खेती तैयार होते समय किसान फल तोड़ लेते हैं और जो पौधा बच जाता है, उसको ट्रैक्टर संचालित मशीन के द्वारा खेत की मिट्टी में मिला दिया जाता है. इससे खेत की मिट्टी को बहुत ही ज्यादा न्यूट्रिशन मिलते हैं.

Crop Residue Management
मूंह की फसल से जमीन होती हे उपजाऊ

पढ़ें : मूंग बीज पर हरियाणा सरकार दे रही 75% सब्सिडी, जानिए कितने समय में करवाना होगा पंजीकरण

किसान मूंग की बिजाई खेत में ट्रैक्टर द्वारा जुताई करने के बाद व गेहूं के फोनों में पानी लगाकर उसके बाद भी सीधी बिजाई कर सकते हैं. हरियाणा सरकार मूंग की खेती करने के लिए मूंग के बीज पर 75 प्रतिशत तक अनुदान देती है. मूंग की खेती करने से किसान को आगामी फसल में 30 से 35 प्रतिशत उर्वरक की बचत होती है. मूंग के पौधे की जड़ों की जो गांठें होती है. उससे खेत की मिट्टी को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, जस्ता, तांबा आदि कई प्रकार के खनिज लवण मिलते हैं. साथ में किसानों का फसल अवशेष प्रबंधन हो जाता है और अगली फसल पर लागत भी कम होती है.

करनाल: हरियाणा में गेहूं की कटाई पूरे जोरों पर चल रही है. हरियाणा में काफी हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती की जाती है. वहीं गेहूं की कटाई के बाद बचे हुए अवशेष से किसान कृषि यंत्रों के जरिए अपने पशुओं के लिए सूखा चारा तैयार करते हैं. उसके बाद भी किसानों के खेत में गेहूं के अवशेष बच जाते हैं. गेहूं के अवशेष धान के अवशेष की अपेक्षा काफी हार्ड होते हैं. जिसके चलते किसान उनका प्रबंधन करने की बजाय, इनमें आग लगा देते हैं.

ताकि आने वाली फसल की तैयारी की जा सके. किसान जल्दबाजी में आग लगाने का फैसला जरूर ले लेते हैं, लेकिन किसान नहीं जानते कि फसल अवशेष में आग लगाने से किसानों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमजोर होती है और जो मिट्टी में फसल के लिए लाभदायक मित्र कीट भी जलकर नष्ट हो जाते हैं. जिससे अगली फसल की पैदावार पर काफी प्रभाव पड़ता है.

Crop Residue Management
डी कंपोजर कैप्सूल का कर सकते हैं प्रयोग

डी कंपोजर कैप्सूल का प्रयोग: कृषि विशेषज्ञ डॉ. रामप्रकाश ने बताया कि किसानों के सामने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए काफी मुश्किलें आ रही थी. इसके चलते किसानों को मजबूरन अपनी फसल अवशेष में आग लगानी पड़ती थी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान करनाल के द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन करने के लिए पूसा डी कंपोजर कैप्सूल नामक एक दवा तैयार की गई है. जिससे फसल अवशेष प्रबंधन करने में काफी हद तक किसानों को सफलता मिलती है. यह कैप्सूल 50 रुपए में 4 आते हैं.

जिनका घोल तैयार करके 1 एकड़ फसल अवशेष का प्रबंधन किया जा सकता है. इसका प्रयोग किसान इस प्रकार कर सकते हैं कि सबसे पहले 5 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ को डालकर उसको धीमी आग पर उबाले, जब गुड़ अच्छे से मिल जाए तब उसको ठंडा कर लें. अब उसमें 50 ग्राम बेसन मिलाकर साथ में 4 कैप्सूल लेकर उस घोल में मिला दें, ऐसे डी कंपोजर कैप्सूल का घोल तैयार हो जाता है. उस घोल को 100 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ में स्प्रे करें, करीब 15 से 20 दिन के बाद किसानों के खेत में खड़े हुए फसल अवशेष गलने शुरू हो जाएंगे.

ढैंचा लगाकर करें फसल अवशेष प्रबंधन: फसल अवशेष का प्रबंधन करने के साथ जो किसान अपने खेत की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं. उन किसान भाइयों के लिए ढैंचा एक बहुत ही अच्छा विकल्प है, जिसके बीज पर हरियाणा सरकार 80 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है. बिजाई के दिन से 1 महीने बाद तक यह 10 से 15 फीट लंबा हो जाता है और उसके बाद किसान धान रोपाई से पहले या कोई अन्य फसल लगाने से पहले इसको ट्रैक्टर संचालित मशीन के साथ मिट्टी में मिला देते हैं.

Crop Residue Management
ढांचे की खेती से उपजाऊ होती है भूमि

इस प्रक्रिया से किसानों की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और फसल अवशेष प्रबंधन भी हो जाता है. ढैंचा लगाने के लाभ कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर राम प्रकाश ने बाताया कि ढैंचा यूरिया का एक इको फ्रेंडली ऑप्शन है. इसको लगाने के बाद अगली फसल में यूरिया का इस्तेमाल नाम मात्र का ही करना होता है. वहीं डीएपी खाद की भी कमी को यह पूरा कर देता है. ढैंचा लगाने से खेत की मिट्टी के मित्र कीट की संख्या में बढ़ोतरी होती है. ढैंचा से कई प्रकार के रसायनिक पदार्थ मिट्टी को मिलते हैं.

मूंग की फसल लगाकर करें फसल अवशेष प्रबंधन: फसल अवशेष का प्रबंधन करने के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग फसल की बिजाई भी की जा सकती है. इसमें किसान अपनी फसल अवशेष प्रबंधन भी कर सकते हैं. वहीं किसान गेहूं कटाई के बाद और धान रोपाई से पहले एक अन्य फसल भी ले लेते हैं. कृषि विशेषज्ञ के अनुसार मूंग की खेती तैयार होते समय किसान फल तोड़ लेते हैं और जो पौधा बच जाता है, उसको ट्रैक्टर संचालित मशीन के द्वारा खेत की मिट्टी में मिला दिया जाता है. इससे खेत की मिट्टी को बहुत ही ज्यादा न्यूट्रिशन मिलते हैं.

Crop Residue Management
मूंह की फसल से जमीन होती हे उपजाऊ

पढ़ें : मूंग बीज पर हरियाणा सरकार दे रही 75% सब्सिडी, जानिए कितने समय में करवाना होगा पंजीकरण

किसान मूंग की बिजाई खेत में ट्रैक्टर द्वारा जुताई करने के बाद व गेहूं के फोनों में पानी लगाकर उसके बाद भी सीधी बिजाई कर सकते हैं. हरियाणा सरकार मूंग की खेती करने के लिए मूंग के बीज पर 75 प्रतिशत तक अनुदान देती है. मूंग की खेती करने से किसान को आगामी फसल में 30 से 35 प्रतिशत उर्वरक की बचत होती है. मूंग के पौधे की जड़ों की जो गांठें होती है. उससे खेत की मिट्टी को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, जस्ता, तांबा आदि कई प्रकार के खनिज लवण मिलते हैं. साथ में किसानों का फसल अवशेष प्रबंधन हो जाता है और अगली फसल पर लागत भी कम होती है.

Last Updated : Apr 20, 2023, 4:04 PM IST
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