करनाल: दूध उत्पादन के मामले में पूरी दुनिया में भारत पहले नंबर पर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर रोज 50 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है. दूध उत्पादक किसान इसका एक बड़ा हिस्सा लोकल मार्केट में बेचता है. कुछ अपने इस्तेमाल के लिए रख लेता है और करीब 10 करोड़ लीटर दूध अलग-अलग सहकारी डेयरियों के जरिए खरीदा जाता है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में दूध उद्योग एक बड़ी भूमिका निभाता है, लेकिन कोरोना से ये क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा. अभी भी पशु पालक और डेयरी संचालक इसकी मार झेल रहे हैं. जो दूध कारोबारी शहरों में, हलवाई को और रेस्टोरेंट में बेचते थे वो तो पूरी तरह से बंद हो गया था.
दूध कारोबारियों पर कोरोना की मार
पप्पू नाम के दूध कारोबारी का कहना है कि कोरोना के चलते काम ज्यादा हो गया, लेकिन आमदनी घट गई. जो काम पहले 2 घंटे में कर लेते थे. अब उसमें और ज्यादा समय लगता है. बावजूद इसके उनका दूध नहीं बिक रहा है. दूथ फुटकर, हलवाई और रेस्टोरेंट में बेचकर उनकी कमाई अच्छी होती थी, लेकिन अब वो दूध को प्राइवेट डेयरियों पर औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं.
भारत में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता 394 ग्राम है, जबकि हरियाणा में 1087 ग्राम. दूध उद्पादन के मामले में हरियाणा पूरे देश में 8वें नंबर पर हैं. हरियाणा में 8 सहकारी डेयरियां हैं, जिनमें से 7 राज्य सरकार की और 1 केंद्र की है. लॉकडाउन के दौरान हरियाणा में सहकारी समितियों ने हर रोज 8 लाख लीटर दूध खरीदा, जोकि पिछली साल की तुलना में 40 प्रतिशत से अधिक है. जिसकी प्रोसेसिंग करके मक्खन और मिल्क पाउडर बनाया गया. मिठाई की दुकान और रेस्टोरेंट बंद हो जाने से इससे जुड़े व्यापारियों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी, दूध तो जैसे-तैसे सरकार की ओर से मिली समय सीमा में लोगों के पास पहुंचा देते थे, लेकिन उनका मिठाईयों का काम पूरी तरह से ठप हो गया.
सहकारी डेयरी पर कोरोना का असर
कोरोना का असर सिर्फ दूध कारोबारी या पशु पालकों पर ही नहीं पड़ा, बल्कि सहकारी डेयरियों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. कोरोना के शुरुआत में करनाल की मॉडल डेयरी की मूवमेंट पूरी तरह से बंद हो गई थी. जिसकी वजह से घी, पनीर, दही, छाछ, दूध और अन्य प्रोडक्ट की खपत पूरी तरह से बंद थी. उन्होंने दूध से घी और मिल्क पाउडर बनाया, ताकि किसान, दूध कारोबारी और डेयरियों की चेन कुछ हद तक चलती रहे. और अब जब अनलॉक की प्रक्रिया चल रही है तो दूध और दूध से बने प्रोडक्ट की मांग बढ़ी है, लेकिन पहले जैसी बात नहीं है.
सहकारी मॉडल डेयरी के जीएम ज्ञानचंद मुटरेजा का कहना है कि वो क्वालिटी प्रोडक्ट बनाते हैं, जिनकी बाजार में कीमत और खपत अच्छी है. कोरोना की वजह से स्थिति कुछ बिगड़ गई थी, लेकिन गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी है. खाने पीने की चीजों को लेकर लोग काफी सतर्क हैं. क्वालिटी वाली चीजें लेना पसंद कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें:-अशोक तंवर के साथ दिल्ली में मारपीट! पत्नी ने पूर्व पति पर लगाए आरोप
स्टॉक खपत बना चुनौती
सहकारी डेयरी के सामने चुनौती है कि लॉकडाउन के दौरान नुकसान से बचने के लिए जिस दूध से उन्होंने घी और मिल्क पाउडर तैयार कर स्टॉक किया था. अब उसकी खपत कैसे होगी? क्योंकि अभी भी कोरोना का डर खत्म नहीं हुआ है और लोग बाजार से खाने पीने की चीजें खरीदने से कतरा रहे हैं.