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हरियाणा में पैदा हुई भारत की प्रथम क्लोन गिर गाय की बछड़ी, स्वदेशी तकनीक से विकसित हुआ क्लोन, पशु नस्लों के संरक्षण में होगा लाभ - पशु क्लोनिंग तकनीक

करनाल में भारत की प्रथम क्लोन गिर गाय की बछड़ी (cloned Gir cow calf born in Karnal) का जन्म हुआ है. वैज्ञानिकों ने इसका जन्म स्वदेशी तकनीक के जरिए किया है. इस पद्धति के सफल होने पर वैज्ञानिक बेहद उत्साहित हैं, उनका मानना है कि इस तकनीक से पशु नस्लों को संरक्षित किया जा सकेगा.

cloned Gir cow calf born in Karnal
हरियाणा में पैदा हुई भारत की प्रथम क्लोन गिर गाय की बछड़ी
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Published : Mar 27, 2023, 9:13 PM IST

करनाल: राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल में भारत की पहली क्लोन गिर गाय की बछड़ी का जन्म हुआ है. इसका जन्म स्वदेशी तकनीक के जरिए किया गया है. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने 2021 में उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल के पूर्व निदेशक डॉ. एमएस चौहान के नेतृत्व में गिर, साहीवाल और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का कार्य शुरू किया था. विश्व स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं का उत्पादन करने के लिए सहायक प्रजनन तकनीक के जरिए इसका संतोषजनक परिणाम मिला है. अन्य प्रजनन तकनीक की अपेक्षा, पशु क्लोनिंग तकनीक से बहुत तीव्र गति से उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं की संख्या और लुप्तप्राय पशु नस्लों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है.

जानकारी के अनुसार गिर, साहीवाल, थारपारकर और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों की नस्लें भारत के दुग्ध उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इन गाय तथा भैसों से प्राप्त दुग्ध ने ही भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाया हैं. देशी गायों की कम उत्पादकता, भारत में सतत दुग्ध उत्पादन के लिए एक बड़ी चुनौती हैं. जिससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि देखने को मिली है.

cloned Gir cow calf born in Karnal National Dairy Research Institute Karnal latest news
करनाल में पैदा हुई भारत की प्रथम क्लोन गिर गाय की बछड़ी.

देशी गायों के सरंक्षण और संख्या वृद्धि के लिए पशु क्लोनिंग तकनीक विकसित करना एक अत्यधिक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा. इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत 16 मार्च 2023 को गिर नस्ल की एक क्लोन बछड़ी पैदा हुई. जन्म के समय इसका वजन 32 किलोग्राम था और वह स्वस्थ है. गिर गाय भारत की देशी गाय की एक प्रसिद्ध नस्ल है, जो मूलतः गुजरात में पाई जाती है. इस नस्ल का उपयोग अन्य नस्लों की गुणवत्ता सुधार के रूप से किया जा रहा है.

पढ़ें : हरियाणा सीएम मनोहर लाल का फैसला, रेहड़ी मार्केट की जगह होंगी अंत्योदय मार्केट

गिर गाय, अन्य गाय की नस्लों के अपेक्षा, बहुत अधिक सहनशील होती है, जो अत्यधिक तापमान व ठंड को आसानी से सहन कर लेती है और विभिन्न ऊष्ण कटिबंध रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है. इसी कारण हमारे यहां कि देशी गायों की ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको और वेनेजुएला में बहुत मांग हैं. वैज्ञानिकों की एक टीम क्लोन गायों के उत्पादन के लिए स्वदेशी विधि विकसित करने के लिए पिछले 2 साल से अधिक समय से काम कर रही थी.

इस टीम में डॉ. नरेश सेलोकर, मनोज कुमार सिंह, अजय असवाल, एस. एस. लठवाल, सुभाष कुमार, रंजीत वर्मा, कार्तिकेय पटेल और एम एस चौहान शामिल हैं. जानकारी के अनुसार इस विधि में अल्ट्रासाउंड- निर्देशित सुइयों का उपयोग करके जीवित पशु से अंडाणु लिया जाता है और फिर अनुकूल परिस्थिति में 24 घंटे के लिए इसे परिपक्व किया जाता है. इसके बाद इसे उच्च गुणवत्ता वाली गाय की दैहिक कोशिकाओं का उपयोग दाता के रूप में किया जाता है, जिसे ओ.पी. यू. - व्युत्पन्न अंडाणु से जोड़ा जाता है.

8 दिन के इन विट्रो-कल्चर के बाद, विकसित ब्लास्टोसिस्ट को गाय में स्थानांतरित कर दिया जाता है. इसके 9 महीने बाद क्लोन बछड़ा या बछड़ी पैदा होती है. डॉ. हिमांशु पाठक, (सचिव कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग) और महानिदेशक (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) ने बताया कि हमारे पशु देश के गर्म और आद्र जलवायु के अनुकूल होने के साथ रोग प्रतिरोधी भी हैं.

पढ़ें : हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर की बेटी दिल्ली में बनेंगी जज

उन्होंने क्लोन तैयार करने वाली टीम को मवेशी क्लोनिंग के लिए स्वदेशी पद्धति विकसित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि टीम प्रौद्योगिकी के शोधन के लिए अपना शोध जारी रखेगी और अधिक क्लोन गाय बछड़ों का उत्पादन करेगी. मवेशी क्लोनिंग प्रौद्योगिकी में भारतीय किसानों के लिए अधिक दूध देने वाले स्वदेशी मवेशियों की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता है.

डॉ. धीर सिंह, निदेशक राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल ने बताया कि इस उपलब्धि से हमें भारत में मवेशियों की क्लोनिंग के लिए अनुसंधान गतिविधियों का विस्तार करने और आरंभ करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिक पशु क्लोनिंग तकनीक से गुणवत्ता पूर्ण देशी पशुओं का उत्पादन कर नए आयाम स्थापित कर रहै हैं और भविष्य में इस उपलब्धि से हमें भारत में उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं का उत्पादन करने में मदद मिलेगी और किसान और दूध पालकों को इससे सीधे लाभ मिल सकेगा.

करनाल: राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल में भारत की पहली क्लोन गिर गाय की बछड़ी का जन्म हुआ है. इसका जन्म स्वदेशी तकनीक के जरिए किया गया है. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने 2021 में उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल के पूर्व निदेशक डॉ. एमएस चौहान के नेतृत्व में गिर, साहीवाल और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का कार्य शुरू किया था. विश्व स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं का उत्पादन करने के लिए सहायक प्रजनन तकनीक के जरिए इसका संतोषजनक परिणाम मिला है. अन्य प्रजनन तकनीक की अपेक्षा, पशु क्लोनिंग तकनीक से बहुत तीव्र गति से उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं की संख्या और लुप्तप्राय पशु नस्लों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है.

जानकारी के अनुसार गिर, साहीवाल, थारपारकर और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों की नस्लें भारत के दुग्ध उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इन गाय तथा भैसों से प्राप्त दुग्ध ने ही भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाया हैं. देशी गायों की कम उत्पादकता, भारत में सतत दुग्ध उत्पादन के लिए एक बड़ी चुनौती हैं. जिससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि देखने को मिली है.

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करनाल में पैदा हुई भारत की प्रथम क्लोन गिर गाय की बछड़ी.

देशी गायों के सरंक्षण और संख्या वृद्धि के लिए पशु क्लोनिंग तकनीक विकसित करना एक अत्यधिक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा. इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत 16 मार्च 2023 को गिर नस्ल की एक क्लोन बछड़ी पैदा हुई. जन्म के समय इसका वजन 32 किलोग्राम था और वह स्वस्थ है. गिर गाय भारत की देशी गाय की एक प्रसिद्ध नस्ल है, जो मूलतः गुजरात में पाई जाती है. इस नस्ल का उपयोग अन्य नस्लों की गुणवत्ता सुधार के रूप से किया जा रहा है.

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गिर गाय, अन्य गाय की नस्लों के अपेक्षा, बहुत अधिक सहनशील होती है, जो अत्यधिक तापमान व ठंड को आसानी से सहन कर लेती है और विभिन्न ऊष्ण कटिबंध रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है. इसी कारण हमारे यहां कि देशी गायों की ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको और वेनेजुएला में बहुत मांग हैं. वैज्ञानिकों की एक टीम क्लोन गायों के उत्पादन के लिए स्वदेशी विधि विकसित करने के लिए पिछले 2 साल से अधिक समय से काम कर रही थी.

इस टीम में डॉ. नरेश सेलोकर, मनोज कुमार सिंह, अजय असवाल, एस. एस. लठवाल, सुभाष कुमार, रंजीत वर्मा, कार्तिकेय पटेल और एम एस चौहान शामिल हैं. जानकारी के अनुसार इस विधि में अल्ट्रासाउंड- निर्देशित सुइयों का उपयोग करके जीवित पशु से अंडाणु लिया जाता है और फिर अनुकूल परिस्थिति में 24 घंटे के लिए इसे परिपक्व किया जाता है. इसके बाद इसे उच्च गुणवत्ता वाली गाय की दैहिक कोशिकाओं का उपयोग दाता के रूप में किया जाता है, जिसे ओ.पी. यू. - व्युत्पन्न अंडाणु से जोड़ा जाता है.

8 दिन के इन विट्रो-कल्चर के बाद, विकसित ब्लास्टोसिस्ट को गाय में स्थानांतरित कर दिया जाता है. इसके 9 महीने बाद क्लोन बछड़ा या बछड़ी पैदा होती है. डॉ. हिमांशु पाठक, (सचिव कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग) और महानिदेशक (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) ने बताया कि हमारे पशु देश के गर्म और आद्र जलवायु के अनुकूल होने के साथ रोग प्रतिरोधी भी हैं.

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उन्होंने क्लोन तैयार करने वाली टीम को मवेशी क्लोनिंग के लिए स्वदेशी पद्धति विकसित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि टीम प्रौद्योगिकी के शोधन के लिए अपना शोध जारी रखेगी और अधिक क्लोन गाय बछड़ों का उत्पादन करेगी. मवेशी क्लोनिंग प्रौद्योगिकी में भारतीय किसानों के लिए अधिक दूध देने वाले स्वदेशी मवेशियों की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता है.

डॉ. धीर सिंह, निदेशक राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल ने बताया कि इस उपलब्धि से हमें भारत में मवेशियों की क्लोनिंग के लिए अनुसंधान गतिविधियों का विस्तार करने और आरंभ करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिक पशु क्लोनिंग तकनीक से गुणवत्ता पूर्ण देशी पशुओं का उत्पादन कर नए आयाम स्थापित कर रहै हैं और भविष्य में इस उपलब्धि से हमें भारत में उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं का उत्पादन करने में मदद मिलेगी और किसान और दूध पालकों को इससे सीधे लाभ मिल सकेगा.

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