करनाल: दीपावली पर मिट्टी के दिये बेचकर अपना गुजारा चलाने वाले कुम्हार जाति के लिए ये त्योहार अब फीका पड़ता जा रहा है. आज कल इलेक्ट्रॉनिक सामान को दीये की शक्ल दे दिए जाने से मिट्टी के दीयों की मांग भी कम हो गई है. जिससे कुम्हारों के व्यवसाय पर काफी असर हुआ है.
मिट्टी के दिये बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि अब लोग आधुनिक चीजों की तरफ ज्यादा आकर्षित हो गए हैं और मिट्टी से बने दीयों को नहीं खरीदना पसंद नहीं करते हैं. उनका कहना है कि लोग बाहर हजारों रुपये खर्च कर देते हैं लेकिन दिये खरीदते के समय कंजूसी दिखाते है. कुम्हारों का कहना है कि दीये बनाने के लिए मिट्टी भी नहीं मिलती और धीरे धीरे मिट्टी से बने दीये बाजारों से गायब होते जा रहे हैं.
दरसल संस्कृति व परंपराओं पर आधुनिक जमाने की चकाचौंध भारी पड़ रही है, भारतीय संस्कृति से जुड़े पारंपरिक त्योहारों पर यहां के कारीगरों द्वारा निर्मित सामान को तरजीह दी जाती है लेकिन अब दीपावली पर मिट्टी के दीये की जगह बिजली के बल्ब लड़ियां चमकते हैं. वहीं कुम्हार जाति के लोगों के लिए रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है.
मिट्टी के बर्तन, दीये बनाकर अपने परिवार का पालन पोषण करने वाले कुम्हारों का पुश्तैनी धंधा अब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है और आज इनके इस व्यवसाय पर संकट मंडरा रहा है.
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