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गेहूं की भूरा रतुआ बीमारी का इलाज करेगा LR-80 जीन, 20 साल की मेहनत के बाद कृषि वैज्ञानिकों को मिली सफलता

पीले रतुआ में गेहूं की पत्तियां पीली हो जाती हैं और भूरे रतुआ में पत्तियों पर भूरा चूरा गेहूं की पत्तियों पर आ जाता है. जिससे गेहूं की पैदावार और उत्पादन गुणवत्ता पर काफी प्रभाव पड़ता है.

Agricultural scientists discovered LR-80 gene
Agricultural scientists discovered LR-80 gene
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Published : Jan 21, 2021, 8:24 PM IST

Updated : Jan 22, 2021, 7:38 PM IST

करनाल: भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने सिडनी विश्वविद्यालय के साथ मिलकर गेहूं की फसल में होने वाली बीमारी पीले और भूरे रतुए के खात्मे के लिए LR80 नाम के जीन की पहचान की है. गेहूं में भूरे और पीले रतवे की बीमारी पर कृषि वैज्ञानिकों ने 20 साल के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी सफलता हासिल की है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक ये जीन पर्यावरण के अनुकूल है, इसलिए इसके साथ विकसित किस्मों में कीटकनाशकों का छिड़काव करने की कोई जरूरत नहीं होगी. वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस जीन से गेहूं की उत्पादन क्षमता बढेगी. नया जीन LR80 गेहूं की पत्ती पर रतुआ बीमारी के लिए प्रतिरोध प्रदान करेगा.

गेंहू की भूरा रतुआ बीमारी का इलाज करेगा LR-80 जीन

क्या होता है पीला और भूरा रतुआ?

रतुआ एक विशेष तरह की फंगस की वजह से होता है. ये फंगस दुनिया में जहां भी गेहूं उगाया जाता है. वहां मौजूद होता है. किसी भी अन्य बीमारी की तुलना में ये फंगस ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. अभी तक मामूली प्रभाव वाले जीनों की मदद से ही इस बीमारी पर रोक लगाने की कोशिश की गई.

  • पीला रतुआ
  • भूरा रतुआ
  • काला रतुआ

ये रतुआ इन तरह से गेहूं की फसल में पाया जाता है. वैज्ञानिक डॉक्टर प्रेम कश्यप ने कहा कि गेहूं की फसल में पत्तों के जंग (पीला और भूरा रतुआ) की बीमारी सबसे खतरनाक है. पीले रतुआ में गेहूं की पत्तियां पीली हो जाती हैं और भूरे रतुआ में पत्तियों पर भूरा चूरा गेहूं की पत्तियों पर आ जाता है. जिससे गेहूं की पैदावार और उत्पादन गुणवत्ता पर काफी प्रभाव पड़ता है. पीला और भूरा रतुआ गेहूं की फसल को 50 से 70 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाता है.

Agricultural scientists discovered LR-80 gene
20 साल की मेहनत के बाद कृषि वैज्ञानिकों को मिली सफलता

LR80 जीन से क्या होगा फायदा?

राष्ट्रीय गेहूं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि hingo2 नामक स्थानीय भूमि की रिसर्च से पता चला है कि ये जीन गेहूं उत्पादकता को और बढ़ाने में मदद करेगा. संस्थान के निदेशक डॉक्टर जेपी सिंह ने कहा कि इस जीन की मदद से हम जंग रोधी जेनेटिक स्टॉक और गेहूं की किस्मों का विकास करेंगे. इस जीन का प्रमुख लाभ ये है कि उसका उपयोग अब तक नहीं किया गया और इसलिए ये एक टिकाऊ प्रकार का प्रतिरोध प्रदान करेगा और लंबे समय तक प्रभावी रहेगा.

Agricultural scientists discovered LR-80 gene
पीला रतुआ बीमारी में गेहूं के पौधों के पत्ते पीले हो जाते हैं.

ये भी पढ़ें- इनोवेटिव इंडेक्स रिपोर्ट: हरियाणा को देश भर में मिला छठा स्थान, पहले पर रहा कर्नाटक

संस्थान के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि ये जीन हमारे ही जमीन में पाया गया है. जिसे हिमालय क्षेत्र में पहचाना गया है. इसे भूरे रतवे के खिलाफ जो काम किया जा रहा है. उसे और बल मिलेगा. इस जीन को अन्य किस्मों में समावेश करके ऐसी किस्में विकसित करेंगे, जो ना केवल भूरे रतवे के प्रतिरोधी होगी, इससे पैदावार भी ज्यादा होगी. डॉक्टर ज्ञानेंद्र ने दावा किया कि किसानों को इससे काफी फायदा होगा. देश के एकमात्र राष्ट्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र करनाल, क्षेत्रीय केंद्र शिमला और सिडनी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में चल रहे शोध से एलआर 80 नामक जीन की पहचान संभव हो पाई है.

करनाल: भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने सिडनी विश्वविद्यालय के साथ मिलकर गेहूं की फसल में होने वाली बीमारी पीले और भूरे रतुए के खात्मे के लिए LR80 नाम के जीन की पहचान की है. गेहूं में भूरे और पीले रतवे की बीमारी पर कृषि वैज्ञानिकों ने 20 साल के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी सफलता हासिल की है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक ये जीन पर्यावरण के अनुकूल है, इसलिए इसके साथ विकसित किस्मों में कीटकनाशकों का छिड़काव करने की कोई जरूरत नहीं होगी. वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस जीन से गेहूं की उत्पादन क्षमता बढेगी. नया जीन LR80 गेहूं की पत्ती पर रतुआ बीमारी के लिए प्रतिरोध प्रदान करेगा.

गेंहू की भूरा रतुआ बीमारी का इलाज करेगा LR-80 जीन

क्या होता है पीला और भूरा रतुआ?

रतुआ एक विशेष तरह की फंगस की वजह से होता है. ये फंगस दुनिया में जहां भी गेहूं उगाया जाता है. वहां मौजूद होता है. किसी भी अन्य बीमारी की तुलना में ये फंगस ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. अभी तक मामूली प्रभाव वाले जीनों की मदद से ही इस बीमारी पर रोक लगाने की कोशिश की गई.

  • पीला रतुआ
  • भूरा रतुआ
  • काला रतुआ

ये रतुआ इन तरह से गेहूं की फसल में पाया जाता है. वैज्ञानिक डॉक्टर प्रेम कश्यप ने कहा कि गेहूं की फसल में पत्तों के जंग (पीला और भूरा रतुआ) की बीमारी सबसे खतरनाक है. पीले रतुआ में गेहूं की पत्तियां पीली हो जाती हैं और भूरे रतुआ में पत्तियों पर भूरा चूरा गेहूं की पत्तियों पर आ जाता है. जिससे गेहूं की पैदावार और उत्पादन गुणवत्ता पर काफी प्रभाव पड़ता है. पीला और भूरा रतुआ गेहूं की फसल को 50 से 70 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाता है.

Agricultural scientists discovered LR-80 gene
20 साल की मेहनत के बाद कृषि वैज्ञानिकों को मिली सफलता

LR80 जीन से क्या होगा फायदा?

राष्ट्रीय गेहूं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि hingo2 नामक स्थानीय भूमि की रिसर्च से पता चला है कि ये जीन गेहूं उत्पादकता को और बढ़ाने में मदद करेगा. संस्थान के निदेशक डॉक्टर जेपी सिंह ने कहा कि इस जीन की मदद से हम जंग रोधी जेनेटिक स्टॉक और गेहूं की किस्मों का विकास करेंगे. इस जीन का प्रमुख लाभ ये है कि उसका उपयोग अब तक नहीं किया गया और इसलिए ये एक टिकाऊ प्रकार का प्रतिरोध प्रदान करेगा और लंबे समय तक प्रभावी रहेगा.

Agricultural scientists discovered LR-80 gene
पीला रतुआ बीमारी में गेहूं के पौधों के पत्ते पीले हो जाते हैं.

ये भी पढ़ें- इनोवेटिव इंडेक्स रिपोर्ट: हरियाणा को देश भर में मिला छठा स्थान, पहले पर रहा कर्नाटक

संस्थान के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि ये जीन हमारे ही जमीन में पाया गया है. जिसे हिमालय क्षेत्र में पहचाना गया है. इसे भूरे रतवे के खिलाफ जो काम किया जा रहा है. उसे और बल मिलेगा. इस जीन को अन्य किस्मों में समावेश करके ऐसी किस्में विकसित करेंगे, जो ना केवल भूरे रतवे के प्रतिरोधी होगी, इससे पैदावार भी ज्यादा होगी. डॉक्टर ज्ञानेंद्र ने दावा किया कि किसानों को इससे काफी फायदा होगा. देश के एकमात्र राष्ट्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र करनाल, क्षेत्रीय केंद्र शिमला और सिडनी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में चल रहे शोध से एलआर 80 नामक जीन की पहचान संभव हो पाई है.

Last Updated : Jan 22, 2021, 7:38 PM IST
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