कैथल: जहां पूरे भारतवर्ष में होली का त्योहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. वहीं गुहला चीका के लोग भी होली के पर्व पर माथा टेकते नजर आए. इस दौरान महिलाएं होलिका स्थल पर पूजा अर्चना की और अपने परिजनों के मंगल की कामना की.
होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है. इस त्योहार में लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं.
क्यों मनाया जाता है होलिका दहन ?
इस पवित्र होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कहानी का पुराणों में वर्णन किया गया है. जिसमें हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद को उसकी बुआ होली का अग्नि में जिंदा जलने की बात कही गई थी. क्योंकि भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के पुजारी थे और उनके पिता हिरण्यकश्यप तमाम प्रजा के साथ अपने बेटे को भी विष्णु की पूजा छोड़ अपनी पूजा करने के लिए विवश करता था.
हिरण्यकश्यप अपने आप को भगवान मानता था और प्रजा से अपनी पूजा करवाता था. लेकिन उसके पुत्र को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था. प्रह्लाद भगवान विष्णु को ही परमात्मा मानते थे. इसी कारण प्रह्लाद को उसके पिता ने जिंदा जलाने के लिए अपनी बहन होलिका का सहारा लिया और उसे होलिका के साथ अग्नि केबीच बैठाया गया. प्रह्लाद अपनी भक्ति की शक्ति के कारण बच गया लेकिन होलिका जल गई. तब से लेकर आज तक होली का त्योहार मनाया जाता है.
स्थानीय निवासियों ने बताया कि होली के पवित्र त्योहार पर लोग घास फूस में लकड़ियों की एक होली बनाते हैं और उसपर कलावा बांधकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं. स्थानिय निवासियों ने बताया कि होली का त्योहार भाईचारे और रंगों का त्योहार है. इसे सबको खुशियों से मनाना चाहिए.
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