कैथल: भारत एक कृषि प्रधान देश है. गेहूं की पैदावार हो या धान का निर्यात, भारत का योगदान सबसे ज्यादा रहता है. हरियाणा में ज्यादातर किसान खेती-बाड़ी के साथ पशुपालन भी बड़े स्तर पर करते हैं. इसलिए पशुओं के स्वास्थ्य और दूध की गुणवत्ता के लिए पोषक तत्वों का महत्व और भी बढ़ जाता है.
खल कारोबार पर कोरोना का असर
इनमें से एक है बिनौले की खल यानी की फीड. कैथल हरियाणा का एकमात्र ऐसा जिला है जहां बिनौले की फीड मिल लगाई गई है. इससे सालाना करोड़ों रुपये का कारोबार होता है. लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से ये व्यापार आधा रह गया है.
बता दें कि कैथल में बिनौले की खल की मिल साल 1950 में लगाई गई थी. मौजूदा समय में करीब 30 मिले बिनौला फीड की हैं. ये जिला हर साल 15 लाख क्विंटल बिनौले की खल की क्रशिंग करता है. इन मिलों के चलते हजारों लोग परिवार का पालन पोषण करते हैं. कैथल मील एसोसिएशन के जिला प्रधान संदीप गर्ग ने बताया कि कोविड-19 की वजह से उनके व्यापार पर खासा असर पड़ा है.
50 प्रतिशत तक कम हुआ व्यापार
कैथल की बिनौला फीड हरियाणा ही नहीं आसपास के राज्यों में भी काफी प्रसिद्ध है. यहां से दूसरे राज्यों में खल भेजी जाती है, लेकिन कोरोना के दौरान बिनौले के फीड की सेल घटकर 50% रह गई है. लॉकडाउन के दौरान ट्रांसपोर्ट में भी काफी परेशानी हुई. क्योंकि बिनौले के कच्चा माल दूसरे राज्यों से आता है. अब ट्रांसपोर्ट महंगा होने की वजह से बिनौली की फीड के रेट भी बढ़े हैं. बिनौले की खल से पशु के दूध की गुणवत्ता तो बढ़ती ही है साथ में उनकी सेहत भी अच्छी रहती है.
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बात करें कोरोना की तो बाकि इंडस्ट्रीज के मुकाबले बिनौले के व्यापार पर लॉकडाउन का असर थोड़ा कम है. क्योंकि अब अनलॉक में ये व्यापार फिर से रफ्तार पकड़ रहा है. सरकार ने इस व्यापार में लगने वाले टैक्स को भी खत्म कर दिया है. जिससे खल के व्यापारियों को राहत मिली है.