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कैथल के गुहला चीका में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ किया गया होलिका दहन

कैथल के गुहला चीका में होलिका दहन बड़े हर्षोल्लास के साथ किया गया. लोगों ने होली त्योहार को रंग और भाईचारे के साथ मनाने की अपील की.

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Published : Mar 29, 2021, 9:50 AM IST

holika dahan festival celebrated in Kaithal
कैथल के गुहला चीका में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ किया गया होलिका दहन

कैथल: जहां पूरे भारतवर्ष में होली के पवित्र त्यौहार को बड़े हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जा रहा है. वहीं गुहला चीका में स्थानीय निवासी भी होली के पर्व पर माथा टेकते हुए नजर आए. जिसमें महिलाओं की संख्या अत्यधिक देखने को मिली.

ये भी पढ़ें:रेवाड़ी: होली के पावन पर्व पर महिलाओं ने होली पूजन कर की शांति की अपील

जानकारी देते हुए स्थानीय महिला अंजना ने बताया कि पवित्र होली के त्योहार के पीछे एक कहानी का पुराणों में वर्णन किया गया है. जिसमें हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद को उसकी बुआ होलीका द्वारा आग में जिंदा जलाने की बात कही गई थी. क्योंकि भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के पुजारी थे और उनके पिता हिरण्यकश्यप तमाम प्रजा के साथ अपने बेटे को भी विष्णु की पूजा छोड़ अपनी पूजा करने के लिए विवश करता था, क्योंकि हिरण्यकश्यप अपने आप को भगवान मानता था और प्रजा से अपनी पूजा करवाता था, लेकिन उनके पुत्र प्रह्लाद को यह कतई मंजूर नहीं था. वो भगवान विष्णु को ही परमात्मा मानते थे.

कैथल के गुहला चीका में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ किया गया होलिका दहन

प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने लिया था होलिका का सहारा

इसी दौरान प्रह्लाद के पिता ने उन्हें जिंदा जलाने के लिए अपनी बहन होलिका का सहारा लिया और उसे होलिका के साथ एक आग के बीच बैठाया गया, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति की शक्ति के कारण प्रह्लाद बच गया. तब से लेकर आज तक होलिका त्योहार मनाया जाता है.

ये भी पढ़ें: रेवाड़ी: होलिका दहन की तैयारियों में जुटी महिलाएं, कोरोना प्रोटोकॉल का किया जाएगा पालन

होली का त्योहार रंगों और भाईचारे का त्योहार है: स्थानीय निवासी

स्थानीय निवासियों से जब इस मामले बात की गई. तो उन्होंने बताया कि होली के पवित्र त्योहार पर लोग घास फूस में लकड़ियों की एक होली बनाते हैं और उस पर कलावा बांधकर व गोबर से बने उपलों के साथ उसकी पूजा अर्चना करते हैं. स्थानीय निवासी ने बताया कि होली का त्योहार भाईचारे और रंगों का त्योहार है. इसे सबको खुशियों से मनाना चाहिए.

कैथल: जहां पूरे भारतवर्ष में होली के पवित्र त्यौहार को बड़े हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जा रहा है. वहीं गुहला चीका में स्थानीय निवासी भी होली के पर्व पर माथा टेकते हुए नजर आए. जिसमें महिलाओं की संख्या अत्यधिक देखने को मिली.

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जानकारी देते हुए स्थानीय महिला अंजना ने बताया कि पवित्र होली के त्योहार के पीछे एक कहानी का पुराणों में वर्णन किया गया है. जिसमें हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद को उसकी बुआ होलीका द्वारा आग में जिंदा जलाने की बात कही गई थी. क्योंकि भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के पुजारी थे और उनके पिता हिरण्यकश्यप तमाम प्रजा के साथ अपने बेटे को भी विष्णु की पूजा छोड़ अपनी पूजा करने के लिए विवश करता था, क्योंकि हिरण्यकश्यप अपने आप को भगवान मानता था और प्रजा से अपनी पूजा करवाता था, लेकिन उनके पुत्र प्रह्लाद को यह कतई मंजूर नहीं था. वो भगवान विष्णु को ही परमात्मा मानते थे.

कैथल के गुहला चीका में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ किया गया होलिका दहन

प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने लिया था होलिका का सहारा

इसी दौरान प्रह्लाद के पिता ने उन्हें जिंदा जलाने के लिए अपनी बहन होलिका का सहारा लिया और उसे होलिका के साथ एक आग के बीच बैठाया गया, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति की शक्ति के कारण प्रह्लाद बच गया. तब से लेकर आज तक होलिका त्योहार मनाया जाता है.

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होली का त्योहार रंगों और भाईचारे का त्योहार है: स्थानीय निवासी

स्थानीय निवासियों से जब इस मामले बात की गई. तो उन्होंने बताया कि होली के पवित्र त्योहार पर लोग घास फूस में लकड़ियों की एक होली बनाते हैं और उस पर कलावा बांधकर व गोबर से बने उपलों के साथ उसकी पूजा अर्चना करते हैं. स्थानीय निवासी ने बताया कि होली का त्योहार भाईचारे और रंगों का त्योहार है. इसे सबको खुशियों से मनाना चाहिए.

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