जींद: देश में मछली की बढ़ती खपत को देखते हुए अब हरियाणा के युवा मछली पालन की नई तकनीक के जरिए सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं. कुछ ऐसा ही उदाहरण जींद से सामने आया है. जहां इस तकनीक से जींद के रहने अरुण यादव ने अपना फार्म 1 साल पहले अपने दोस्त विनय और उनके भाई के साथ मिलकर शुरू किया था और अभी तक वो मछली के दो बेच तैयार कर चुके है, जिससे उन्हें एक साल में 7 लाख रुपए की आमदनी हुई है. अरुण यादव ने बताया कि कैसे बायो फ्लॉक तकनीक के जरिए कम पानी और कम खर्च में ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन किया जा सकता है.
मछली पालन की नई तकनीक है बायो फ्लॉक
बायो फ्लॉक तकनीक एक आधुनिक और वैज्ञानिक तरीका है. बायो फ्लॉक तकनीक के माध्यम से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछलियों को पाल सकता है. मछली पालन करने वाले अरुण यादव ने बताया कि उनके बड़े भाई ने इंडोनेशिया में बायो फ्लॉक तकनीक से मछली पालन का तरीका देखा था जिसके बाद अरूण ने भाई के कहने पर मछली पालन के बारे सोचा और यूट्यूब से बायो फ्लॉक तकनीक के बारे में जानकारी लेकर अपने दोस्तों का साथ ये काम शुरु किया था. अरुण ने एक 500 गज प्लॉट में पानी के 10 टैंक बनवाए हैं. जिसमें कंप्रेशर मशीन से टैंक में ऑक्सीजन घोली जाती है. एक टैंक में 4000 से 5000 मछलियां छोड़ी गई हैं. क्षमता से ज्यादा पानी को निकालने के लिए टैंक से एक पाइप जोड़ा गया है.
तालाब में मछली पालन से कैसे अलग है बायो फ्लॉक का तरीका
एक हेक्टेयर के तालाब में एक बार में उंगली के आकार की 10 से 15 हजार मछलियां छोड़ी जाती हैं। इन बच्चों को 600 ग्राम का होने में दस से 11 महीने का समय लगता है, जबकि एक टैंक में एक बार में मछली के 4000 बच्चे यानि 10 टैंक में 40000 बच्चे छोड़े जा सकते हैं। 6 महीने में ही ये बच्चे 600 ग्राम के हो जाते हैं (मछली की नस्ल पर निर्भर करता). 10 टैंक एक साल में 80000 हजार से ज्यादा मछली विकसित होती हैं. बायो फ्लॉक विधि में टैंक में पानी को साफ करने के लिए किसी प्रकार का केमिकल नहीं डाला जाता है. इसमें होने वाली मछली पूर्णत: जैविक होती हैं. इनकी बाजार में ज्यादा कीमत मिलती है.
ये होती है बायो फ्लॉक की विधि
बायो फ्लॉक विधि में मछली पालन में भी जैविक विधि अपनाई जाती है. तालाब के पानी में मछली मल करती हैं. इस मल के ज्यादा संख्या में एकत्रित होने से पानी में अमोनिया बढ़ जाता है और अमोनिया मछलियों के लिए जहर का काम करता है. जिससे मछलियां मर जाती हैं. बायो फ्लॉक विधि में टैंक में बैक्टीरिया पैदा की जाती हैं और ये बैक्टीरिया मछलियों के 20 प्रतिशत मल को प्रोटीन में बदल देता है. मछली इस प्रोटीन को खा लेती हैं. बाकी बचा मल टैंक में नीचे जमा हो जाता है, इसे वाल्व के जरिए निकाल दिया जाता है जिससे मछलियों को कोई नुकसान नहीं होता है.
बायो फ्लॉक फार्मिंग के लिए किसानों को दी जाती है ट्रेनिंग
बायो फ्लॉक तकनीक को लेकर जिला मछली पालन अधिकारी ने बताया कि ये तकनीक कम जगह में ज्यादा मुनाफा देने वाली तकनीक है और इसको लेकर किसानों में काफी उत्साह है. फिलहाल जींद जिले में 8 बायो फ्लॉक फार्मिंग सिस्टम लगे हुए हैं और कई अभी शुरू होने की कगार पर हैं. उन्होंने बताया कि जिला में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए विभाग द्वारा विस्तृत कार्य योजना तैयार की गई है. मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के किसानों और महिला किसानों को कुल लागत पर 60 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है और सामान्य वर्ग के किसानों को 40 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है. उन्होंने बताया कि इस साल करीब 13 करोड़ की अनुदान राशि मछली पालन करने वाले किसानों को दी जाएगी, मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए 110 किसानों को प्रशिक्षण दिया जाना है और अभी तक 34 किसानों प्रशिक्षित किया जा चुका है. अधिकारी ने बताया कि प्रशिक्षण के साथ किसानों की आने जाने का खर्चा भी दिया जाता है.
प्रशासन की तरफ से मछली पालन व्यवसाय को दिया जा रहा है बढ़ावा
जिला मछली पालन अधिकारी ने बताया कि इस साल विभाग की तरफ से कुल 1,139 हेक्टेयर क्षेत्र में मछली पालन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, अब तक 334 हैक्टेयर क्षेत्र में मछली पालन का काम शुरू हो चुका है, कुल मिलाकर इस साल 90.4 लाख मछली बीज स्टॉक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसके विपरित अब तक 47.6 लाख मछली बीज स्टॉक किया चुका है. इस साल 13,118 टन मछली उत्पादन का लक्ष्य है और अब तक 615 टन मछली उत्पादन हो चुका है. उन्होंने बताया कि 12 हेक्टेयर क्षेत्र के तालाबों को मछली पालन के लिए लीज पर लिए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, 19 हेक्टेयर क्षेत्र में मछली पालन के लिए नए तलाबों का निर्माण किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. जिसमें से 17.78 हैक्टेयर क्षेत्र में नए तालाब बनाए जा चुके है. उन्होंने बताया कि झींगा मछली पालन के लिए 10 हैक्टेयर क्षेत्र में मछली पालन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
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