जींदः कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते जींद की धरती के सुप्रसिद्ध तीर्थ पांडू पिंडारा में महाभारत काल से ही अमावस्या के दिन लगने वाला मेला नहीं लग पाया. 5155 वर्षों से मेला लगने का जो सिलसिला चला आ रहा था, वह कोरोना के खौफ के कारण टालना पड़ा.
मेला रोकने के लिए प्रशासन ने जारी की एडवाइजरी
इस तीर्थ पर हर अमावस्या के दिन अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए देश-प्रदेश के कोने-कोने से पिंडदान करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को रोकने के लिए प्रशासन ने पहले ही एडवाइजरी जारी कर दी थी. इसके लिए जींद के डीसी डॉ. आदित्य दहिया ने कोरोना वायरस कोविड-19 महामारी और धारा-144 का हवाला देकर साफ और स्पष्ट शब्दों में अमावस्या मेला पर पाबंदी के निर्देश दे दिए थे.
महाभारत काल से लगता रहा है मेला
तीर्थ पांडु पिंडारा विकास समिति के मुख्य ट्रस्टी राजेश स्वरूप शास्त्री ने कहा पिंडारा में 5155 वर्षों यानि महाभारत काल से अमावस्या के दिन मेला लगता आ रहा है. 1989 में आरक्षण आंदोलन के दौरान जब माहौल पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था, उस समय भी श्रद्धालु अमावस्या के दिन तीर्थ पर पहुंचे थे. किंतु इस बार कोरोना वायरस से बचाव के लिए श्रद्धालुओं को तीर्थ पर आने से रोका गया है.
कोरोना के चलते कर्फ्यू जैसा माहौल
पहले जहां मेले के कारण तीर्थ और गांव में पांव रखने की जगह तक नहीं मिलती थी, वहीं इस बार कर्फ्यू जैसा माहौल रहा. पुलिस सोमवार से ही तीर्थ पर डेरा डाले हुए थी. जो श्रद्धालु तीर्थ पर पहुंच रहे थे, उनको कोरोना वायरस का हवाला देकर घरों की ओर रवाना किया जा रहा था.
पांडवों ने मृतक परिजनों की शांति के लिए किया था पिंडदान
पिंडतारक तीर्थ के संबंध में किदवंती है कि महाभारत युद्ध के बाद पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पांडवों ने यहां 12 वर्ष तक सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा में तपस्या की और बाद में सोमवती आमवस्या आने पर युद्ध में मारे गए परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया. तभी से यह माना जाता है कि पांडु पिंडारा स्थित पिंडतारक तीर्थ पर पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है.
महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है. यहां पिंडदान करने के लिए अलग-अलग प्रांतों के श्रद्धालु आते हैं.