झज्जरः बहादुरगढ़ में सड़क बनाने वाला महकमा खुद सड़क पर आ गया है. ना कोई दफ्तर रहा और ना ही कोई निवास रहा. दफ्तर और निवास अब कांग्रेस विधायक राजेन्द्र जून के पुत्र विक्रम जून और भाई अशोक जून को मिल गया है.
कोर्ट ने जून ब्रदर्स को दिलाया कब्जा
बहादुरगढ़ में रोहतक-दिल्ली रोड पर लोक निर्माण विभाग का सालों पुराना दफ्तर है. दफ्तर के ठीक सामने दिल्ली रोड पर विभाग के कार्यकारी अभियंता का निवास स्थान भी है. फिलहाल निवास स्थान में कार्यकारी अभियंता के एस पठानिया रह रहे थे. दफ्तर में सुबह पूरा स्टाफ भी था, लेकिन जैसे की कोर्ट बैलिफ के साथ विधायक राजेन्द्र जून के पुत्र विक्रम जून कोर्ट के आदेशों की पालना कराने पहुंचे तो एक-एक करके सारे अधिकारी भी वहां से चलते बने. कोर्ट बैलिफ ने पुलिस की मौजूदगी में निवास स्थान से कार्यकारी अभियंता का सामान बाहर निकलवाया और एक किनारे बने शैड में रखवा दिया. बाद में कार्यकारी अभियंता के निवास के बाहर विक्रम जून की नेम प्लेट भी लगा दी. ताला लगाकर चाबी भी विक्रम जून को दे दी गई. उसके बाद दफ्तर को भी खाली करवा लिया गया. पूरी कार्यवाही के दौरान विधायक राजेन्द्र जून के समर्थक भी मौजूद रहे. कोर्ट बैलिफ के कहने पर उन्होंने ही निवास स्थान से सामान बाहर निकालकर खाली शैड के नीचे रखवाने में मदद की.
लंबे समय से चल रहा था जमीन को लेकर विवाद
लोक निर्माण विभाग और जमीन मालिकों के बीच करीब 2600 गज जमीन का विवाद 33 साल से भी ज्यादा समय से चला आ रहा था. 2 मई 1986 को लोवर कोर्ट ने जमीन मालिकों के हक में फैसला सुनाया था. उसके बाद सरकार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी जीत जमीन मालिकों की ही हुई. हाईकोर्ट के आदेशों की पालना करवाने के लिये डिग्री धारकों ने एसीजे कोर्ट में याचिका लगाई. जिस पर फैसला करते हुए एसीजे कोर्ट ने 3 जनवरी को डिग्री के क्रियान्वन के आदेश जारी कर दिए. कोर्ट बैलिफ को आदेशों की पालना करवा कर 6 फरवरी तक कोर्ट में रिपोर्ट पेश करनी है. अमीलाल वर्सेज स्टेट ऑफ हरियाणा केस में फैसला दिया गया है.
कोर्ट के आदेश पर हुई कार्रवाई
विधायक राजेन्द्र जून के पुत्र विक्रम जून का कहना है कि सारी कार्यवाही कोर्ट के आदेशों के तहत की जा रही है. निचली अदालत ने साल 1986 में उनके हक में आदेश किया. हाईकोर्ट ने भी सरकार के खिलाफ उनके हक में फैसला दिया था. उसके बाद ही उन्होंने एडिशनल सिविल जज की अदालत में 1986 के फैसले को लागू करवाने की याचिका दायर की थी. 33 साल बाद उन्हें उनका हक मिला है.
सड़क पर आया पीडब्ल्यूडी विभाग
कोर्ट के आदेश पर हुई कार्रवाई के बाद पीडब्ल्यूडी विभाग के पास बहादुरगढ़ में ना है तो अब कार्यालय बचा है और ना ही विभाग के एक्सईएन का निवास स्थान. ऐसे में अब अधिकारी कहां बैठेंगे और लोगों की समस्याओं का समाधान कैसे किया जाएगा, इस पर भी असमंजस बना हुआ है. कुल मिलाकर बहादुरगढ़ में सड़के बनाने वाला पीडब्ल्यूडी विभाग खुद सड़क पर आ गया है.
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