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जान की आफत बनी पराली से करोड़ों कमा रहे हिसार के युवा किसान, कई लोगों को रोजगार भी कराया मुहैया

हरियाणा-पंजाब में पराली जलाने से उत्पन्न होने वाली प्रदूषण की समस्या से निजात दिलाने के लिए हिसार के युवा किसानों ने एक नई तकनीक इजात की है. जिसके जरिए किसान पराली का उपयोग कोयला बनाने (coal from stubble in Hisar) में कर सकते है और लाखों का मुनाफा कमा सकते है. पढ़ें रिपोर्ट

coal from stubble in Hisar
पराली से बायो कोयला बनाया जा सकता है.
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Published : Mar 30, 2022, 11:08 PM IST

Updated : Mar 31, 2022, 11:45 AM IST

हिसार: हरियाणा-पंजाब में हर साल पराली जलाने के मामले सामने आते हैं और इसी के चलते अक्टूबर-नवंबर महीने में प्रदूषण भी बढ़ जाता है. पिछले कई सालों से सरकार इसको लेकर कई नियम कानून बना चुकी है, लेकिन कोई भी समाधान नहीं निकल पाया है. ऐसे में हिसार के रहने वाले मनोज नेहरा और विजय श्योराण ने दो सालों तक कड़ी मेहनत करके एक ऐसा प्रोजेक्ट तैयार किया है. जिससे पराली से बायो कोयला बनाया जा सकता है. इस कोयले को इन्होंने फार्मर कोल का नाम दिया है.

पराली से बनाए गया ये कोयले कोयला बेहद सस्ते भाव 5 से 7 किलो के हिसाब से मार्केट में बेचा जा सकता है. जिसका उपयोग ईट भट्टा, तंदूर , फैक्ट्री आदि में किया जा सकता है. पराली का कोयला बनाने से किसानों को पराली की जलाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और साथ ही उन्हें आमदनी भी होगी. ऐसे में पराली से उत्पन्न होने वाली प्रदूशण की समस्या से निजात मिल सकती है. साथ ही पराली जलाने से किसानों की उपजाऊ जमीन को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है.

जान की आफत बनी पराली से करोड़ों कमा रहे हिसार के युवा किसान, कई लोगों को रोजगार भी कराया मुहैया

पराली से कोयला बनाने की तकनीक- पराली के जरिए कोयला बनाने के लिए गाय के कंपोस्ट में पराली को मिलाकर ब्रीकेटिंग मशीन द्वारा कोयला तैयार किया जाता है. इसमें सबसे पहले पराली को ग्राइंडर में पीसा जाता है और उसके बाद उसमें 70 प्रतिशत और लगभग 30 प्रतिशत पशुओं के गोबर का कंपोस्ट मिलाकर मिक्स किया जाता है. जिसके बाद तैयार किए गए घोल को ब्रीकेटिंग मशीन के जरिए प्रेस कर छोटे-छोटे पैलेट बनाए जाते हैं. इन पैलेट को कोयले के विकल्प के तौर पर उपयोग किया जाता है. इस तकनीक से जो फार्मर कोल बनाया है, इससे किसानों को भी फायदा है ताकि उन्हें खेत में बचा हुआ वेस्टेज जलाना न पड़े और जलाने की वजह से उनकी जमीन की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट ना हो. साथ ही इसमें इस्तेमाल होने से किसानों को पराली के सही दाम भी मिलेंगे और उनकी समस्या भी खत्म हो जाएगी.

ये भी पढ़ें- 10वीं फेल शख्स की कला के दीवाने हुए लोग, दिलचस्प है नेपाली पश्मीना शॉल बनाने की कहानी

प्रदूषण से मिलेगी निजात- युवा किसान विजय श्योराण और मनोज नेहरा ने बताया कि पराली के जलाने की वजह से दिल्ली व उसके आसपास गैस का चेंबर बन जाता है. उन दिनों विजिबिलिटी के साथ-साथ सांस लेने में भी समस्या होती है. ऐसे में अगर 50 प्रतिशत से भी ज्यादा पराली का निस्तारण इन प्लांट्स के जरिए हो जाता है, तो प्रदूषण में बेहद कमी आएगी और किसान पराली को नहीं जलाएंगे. इसके अलावा जिन फैक्ट्रियों में काला कोयला इस्तेमाल होता है, उन्हें वह 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलता है. ऐसे में कोयले के विकल्प के रूप में बायोकोल इस्तेमाल किया जाए, तो 7 रुपये किलो तक उन्हें मिल जाता है. इसके साथ ही काले कोयले की तुलना में यह कम प्रदूषण करता है और सल्फर ऑक्सीएड्स भी कम प्रोड्यूस करता है.

coal from stubble in Hisar
पराली से तैयार कोयला

युवाओं ने बताया कि वह खुद इसका इस्तेमाल कर चुके हैं और अब तक 250 टन से ज्यादा प्रोडक्शन करके अलग-अलग जगह सप्लाई कर चुके हैं. इस फार्मर कोयले के परिणाम बेहतर आए हैं. वही तकनीकी रूप से बात की जाए तो इस कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू 5 हजार के करीब है, जोकि बाजार में मिलने वाले सामान्य कोयले के तुलना में बेहद अच्छी है. इसके साथ ही जो कोयला फिलहाल ईट भट्टों में इस्तेमाल हो रहा है, उसकी कीमत 14 से 20 रुपये प्रति किलो है औऱ इस तकनीक के जरिए बना हुआ कोयला 7 से 8 रुपये प्रति किलो में बेचा जा रहा है.

रोजगार के अवसर हुए पैदा- युवा किसान विजय श्योराण ने कहा कि इस प्लांट के जरिए हमारे साथ 100 के करीब लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार पा रहे हैं. युवा किसान प्लांट में प्रयोग होने वाले कंपोस्ट और गोबर को सीधे महिलाओं से तैयार करवाते हैं और उन्हीं से खरीदते हैं. इसके अलावा प्लांट में भी कई महिलाएं काम करती हैं, जो ब्रीकेट्स बनाने में उनकी सहायता करती हैं.

coal from stubble in Hisar
पराली से कोयला बनाने की तकनीक

अभी तक ढाई सौ एकड़ पराली का इस्तेमाल- युवा किसान इस तकनीक के जरिए हर महीने लगभग ढाई सौ एकड़ की पराली का इस्तेमाल कर लेते हैं. इसके अलावा बड़ी मात्रा में पराली का स्टॉक भी किया हुआ है. ऐसे में अगर इस तकनीक को ज्यादा उपयोग में लिया जाए, तो पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या से जल्दी निजात मिल सकती है.

ये भी पढ़ें- चंड़ीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्रीय सेवा नियम लागू करने की अधिसूचना जारी

फार्मर कोल की गुणवत्ता- इस कोयले की गुणवत्ता की बात की जाए, तो यह काले कोयले की तुलना में बहुत कम प्रदूषण करता है. वहीं फैक्ट्रियों में जो भट्टी सालाना एक से डेढ़ करोड रुपए का कोयला खपत करती थी, अब वही कोयला उन्हें 60 से 70 लाख रुपए में पड़ेगा. ऐसे में इससे कंपनियों को भी फायदा है और वहां काम करने वाले मजदूरों को भी फायदा है. क्योंकि इसका प्रदूषण बेहद कम है, जिससे उन्हें सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

coal from stubble in Hisar
पराली का स्टॉक

करोड़ो में कमाई- दोनों युवा अब तक इस प्रोजेक्ट पर लगभग एक करोड़ रुपये तक खर्च कर चुके हैं. उनका अनुमान है कि इस प्लांट के जरिए वह सालाना 3 करोड रुपए तक का टर्नओवर कर सकते हैं. वही प्लांट की कैपेसिटी है कि वह महीने में करीब 250 से 300 एकड़ की पराली का खपत कर सकते हैं. ऐसे में आसपास के एक हजार एकड़ के किसानों की पराली इन्होंने खरीदी है और इसका इस्तेमाल बायो कोल बनाने में किया जाएगा. इस तकनीक के जरिए दोनों युवा महीने में लगभग 5 लाख तक का लाभ कमा लेते हैं और इसके अलावा करीब 100 लोगों को रोजगार मुहैया करवा रहे हैं.

coal from stubble in Hisar
पराली से तैयार कोयला

फार्मर कोल का प्लांट कैसे तैयार करें- इस कोयले को बनाने के लिए एक प्लांट लगभग एक करोड़ रुपये में तैयार होता है. इस प्लांट को लगाने के लिए किसान, एक ग्रुप या सोसाइटी बनाकर काम कर सकते हैं. किसान ग्रुप बनाकर प्लांट लगाएं और पराली भी खुद उनके खेत में होती है और पशुओं का गोबर भी दोनों के जरिए कोयले बनाकर आसानी से बेच सकते है. साथ ही इस प्लांट से एक एकड़ की पराली से लगभग 3 टन कोयला तैयार किया जा सकता है. वहीं एक प्लांट से उस क्षेत्र के पांच गांवों के खेतों की पराली का कोयला बनाया जा सकता है.

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हिसार: हरियाणा-पंजाब में हर साल पराली जलाने के मामले सामने आते हैं और इसी के चलते अक्टूबर-नवंबर महीने में प्रदूषण भी बढ़ जाता है. पिछले कई सालों से सरकार इसको लेकर कई नियम कानून बना चुकी है, लेकिन कोई भी समाधान नहीं निकल पाया है. ऐसे में हिसार के रहने वाले मनोज नेहरा और विजय श्योराण ने दो सालों तक कड़ी मेहनत करके एक ऐसा प्रोजेक्ट तैयार किया है. जिससे पराली से बायो कोयला बनाया जा सकता है. इस कोयले को इन्होंने फार्मर कोल का नाम दिया है.

पराली से बनाए गया ये कोयले कोयला बेहद सस्ते भाव 5 से 7 किलो के हिसाब से मार्केट में बेचा जा सकता है. जिसका उपयोग ईट भट्टा, तंदूर , फैक्ट्री आदि में किया जा सकता है. पराली का कोयला बनाने से किसानों को पराली की जलाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और साथ ही उन्हें आमदनी भी होगी. ऐसे में पराली से उत्पन्न होने वाली प्रदूशण की समस्या से निजात मिल सकती है. साथ ही पराली जलाने से किसानों की उपजाऊ जमीन को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है.

जान की आफत बनी पराली से करोड़ों कमा रहे हिसार के युवा किसान, कई लोगों को रोजगार भी कराया मुहैया

पराली से कोयला बनाने की तकनीक- पराली के जरिए कोयला बनाने के लिए गाय के कंपोस्ट में पराली को मिलाकर ब्रीकेटिंग मशीन द्वारा कोयला तैयार किया जाता है. इसमें सबसे पहले पराली को ग्राइंडर में पीसा जाता है और उसके बाद उसमें 70 प्रतिशत और लगभग 30 प्रतिशत पशुओं के गोबर का कंपोस्ट मिलाकर मिक्स किया जाता है. जिसके बाद तैयार किए गए घोल को ब्रीकेटिंग मशीन के जरिए प्रेस कर छोटे-छोटे पैलेट बनाए जाते हैं. इन पैलेट को कोयले के विकल्प के तौर पर उपयोग किया जाता है. इस तकनीक से जो फार्मर कोल बनाया है, इससे किसानों को भी फायदा है ताकि उन्हें खेत में बचा हुआ वेस्टेज जलाना न पड़े और जलाने की वजह से उनकी जमीन की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट ना हो. साथ ही इसमें इस्तेमाल होने से किसानों को पराली के सही दाम भी मिलेंगे और उनकी समस्या भी खत्म हो जाएगी.

ये भी पढ़ें- 10वीं फेल शख्स की कला के दीवाने हुए लोग, दिलचस्प है नेपाली पश्मीना शॉल बनाने की कहानी

प्रदूषण से मिलेगी निजात- युवा किसान विजय श्योराण और मनोज नेहरा ने बताया कि पराली के जलाने की वजह से दिल्ली व उसके आसपास गैस का चेंबर बन जाता है. उन दिनों विजिबिलिटी के साथ-साथ सांस लेने में भी समस्या होती है. ऐसे में अगर 50 प्रतिशत से भी ज्यादा पराली का निस्तारण इन प्लांट्स के जरिए हो जाता है, तो प्रदूषण में बेहद कमी आएगी और किसान पराली को नहीं जलाएंगे. इसके अलावा जिन फैक्ट्रियों में काला कोयला इस्तेमाल होता है, उन्हें वह 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलता है. ऐसे में कोयले के विकल्प के रूप में बायोकोल इस्तेमाल किया जाए, तो 7 रुपये किलो तक उन्हें मिल जाता है. इसके साथ ही काले कोयले की तुलना में यह कम प्रदूषण करता है और सल्फर ऑक्सीएड्स भी कम प्रोड्यूस करता है.

coal from stubble in Hisar
पराली से तैयार कोयला

युवाओं ने बताया कि वह खुद इसका इस्तेमाल कर चुके हैं और अब तक 250 टन से ज्यादा प्रोडक्शन करके अलग-अलग जगह सप्लाई कर चुके हैं. इस फार्मर कोयले के परिणाम बेहतर आए हैं. वही तकनीकी रूप से बात की जाए तो इस कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू 5 हजार के करीब है, जोकि बाजार में मिलने वाले सामान्य कोयले के तुलना में बेहद अच्छी है. इसके साथ ही जो कोयला फिलहाल ईट भट्टों में इस्तेमाल हो रहा है, उसकी कीमत 14 से 20 रुपये प्रति किलो है औऱ इस तकनीक के जरिए बना हुआ कोयला 7 से 8 रुपये प्रति किलो में बेचा जा रहा है.

रोजगार के अवसर हुए पैदा- युवा किसान विजय श्योराण ने कहा कि इस प्लांट के जरिए हमारे साथ 100 के करीब लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार पा रहे हैं. युवा किसान प्लांट में प्रयोग होने वाले कंपोस्ट और गोबर को सीधे महिलाओं से तैयार करवाते हैं और उन्हीं से खरीदते हैं. इसके अलावा प्लांट में भी कई महिलाएं काम करती हैं, जो ब्रीकेट्स बनाने में उनकी सहायता करती हैं.

coal from stubble in Hisar
पराली से कोयला बनाने की तकनीक

अभी तक ढाई सौ एकड़ पराली का इस्तेमाल- युवा किसान इस तकनीक के जरिए हर महीने लगभग ढाई सौ एकड़ की पराली का इस्तेमाल कर लेते हैं. इसके अलावा बड़ी मात्रा में पराली का स्टॉक भी किया हुआ है. ऐसे में अगर इस तकनीक को ज्यादा उपयोग में लिया जाए, तो पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या से जल्दी निजात मिल सकती है.

ये भी पढ़ें- चंड़ीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्रीय सेवा नियम लागू करने की अधिसूचना जारी

फार्मर कोल की गुणवत्ता- इस कोयले की गुणवत्ता की बात की जाए, तो यह काले कोयले की तुलना में बहुत कम प्रदूषण करता है. वहीं फैक्ट्रियों में जो भट्टी सालाना एक से डेढ़ करोड रुपए का कोयला खपत करती थी, अब वही कोयला उन्हें 60 से 70 लाख रुपए में पड़ेगा. ऐसे में इससे कंपनियों को भी फायदा है और वहां काम करने वाले मजदूरों को भी फायदा है. क्योंकि इसका प्रदूषण बेहद कम है, जिससे उन्हें सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

coal from stubble in Hisar
पराली का स्टॉक

करोड़ो में कमाई- दोनों युवा अब तक इस प्रोजेक्ट पर लगभग एक करोड़ रुपये तक खर्च कर चुके हैं. उनका अनुमान है कि इस प्लांट के जरिए वह सालाना 3 करोड रुपए तक का टर्नओवर कर सकते हैं. वही प्लांट की कैपेसिटी है कि वह महीने में करीब 250 से 300 एकड़ की पराली का खपत कर सकते हैं. ऐसे में आसपास के एक हजार एकड़ के किसानों की पराली इन्होंने खरीदी है और इसका इस्तेमाल बायो कोल बनाने में किया जाएगा. इस तकनीक के जरिए दोनों युवा महीने में लगभग 5 लाख तक का लाभ कमा लेते हैं और इसके अलावा करीब 100 लोगों को रोजगार मुहैया करवा रहे हैं.

coal from stubble in Hisar
पराली से तैयार कोयला

फार्मर कोल का प्लांट कैसे तैयार करें- इस कोयले को बनाने के लिए एक प्लांट लगभग एक करोड़ रुपये में तैयार होता है. इस प्लांट को लगाने के लिए किसान, एक ग्रुप या सोसाइटी बनाकर काम कर सकते हैं. किसान ग्रुप बनाकर प्लांट लगाएं और पराली भी खुद उनके खेत में होती है और पशुओं का गोबर भी दोनों के जरिए कोयले बनाकर आसानी से बेच सकते है. साथ ही इस प्लांट से एक एकड़ की पराली से लगभग 3 टन कोयला तैयार किया जा सकता है. वहीं एक प्लांट से उस क्षेत्र के पांच गांवों के खेतों की पराली का कोयला बनाया जा सकता है.

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Last Updated : Mar 31, 2022, 11:45 AM IST
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