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प्रदूषण के लिए किसान नहीं कहलाएंगे विलेन! चौ. चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने निकाला हल

दीपावली के आस पास दिल्ली एनसीआर सहित हरियाणा और पंजाब में अचानक से प्रदूषण बढ़ जाता है. इस प्रदूषण का कारण पराली जलाना बताया जाता है और इसका ढीकरा किसानों के सिर पर फोड़ दिया जाता है, लेकिन अब किसानों को ये बदनामी नहीं सहनी पड़ेगी. हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस पराली का हल निकाल लिया है.

solution of stubble burning
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Published : Nov 30, 2019, 10:57 AM IST

Updated : Nov 30, 2019, 11:27 AM IST

हिसार: उत्तर भारत में दीपावली के आसपास स्मॉग की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है. इसके लिए दीपावली पर चलाए गए पटाखों और किसानों के द्वारा पराली जलाने से उठने वाले धुएं को कारण माना जाता है. पराली जलाने वाले किसानों पर प्रदेश भर में वायु प्रदूषण एक्ट और अन्य धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की जा रही है. कृषि वैज्ञानिक के अनुसार किसानों के पास पराली के अवशेषों के निपटान हेतु कई अन्य तरीके हैं.

हैप्पी सीडर मशीन से गेहूं की बिजाई

किसान पराली को जलाने की बजाय उसे खाद बनाकर जैविक खेती कर सकता है. वहीं धान की फसल की कटाई के बाद गेहूं की बिजाई में समय की कमी के चलते किसान पराली को आग के हवाले कर देते हैं. हैप्पी सीडर मशीन से गेहूं की बिजाई करना भी किसानों के पास एक विकल्प है. इस मशीन से पराली के अवशेष खेत में मौजूद होने के बावजूद भी गेहूं की बिजाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कस्टमर हायरिंग सेंटर खोले गए हैं जहां किसानों को प्रति घंटा की दर पर मशीनें पराली के निपटान के लिए मुहैया करवाई जाती है.

अब किसान नहीं होंगे प्रदूषण के विलेन, देखें वीडियो

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने निकाला हल

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि वैज्ञानिक डॉ. पवन कुमार ने ईटीवी भारत की खास बातचीत में बताया कि पराली को जलाने के अलावा किसान पराली से पैसे कमाने के साथ-साथ अपने खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा सकते हैं. धान की फसल में पराली अधिक मात्रा में होती है, जिसे गोबर के साथ मिलाकर खाद बनाई जा सकती है और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है. इससे उर्वरक शक्ति बढ़ती है वहीं नौजवान युवक इसे एक व्यापार के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

पराली से बढ़ेगी जमीन की उर्वरा शक्ति

डॉक्टर पवन कुमार ने बताया कि पराली को खेत की मिट्टी में मिला कर भी उर्वरक की बढ़ाई जा सकती है. पराली को खेत में बिछा कर सब्जी आदि की फसलों के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है. इससे गर्मियों में तापमान को स्थिर रखने और जमीन में नमी बनाए रखने में सहायता मिलती है और कुछ महीनों बाद गल कर जैविक खाद का काम करती है.

स्वयं गल जाते हैं पराली के अवशेष

किसान खेत में पराली के अवशेष होने पर भी गेहूं की बिजाई हैप्पी सीडर मशीन से कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ महीनों के अंतराल पर ये अवशेष स्वयं गल जाएंगे और एक उर्वरक के रूप में फसल को फायदा पहुंचाएंगे.

ये भी पढ़ें:- हरियाणा के किसान मजबूरी में जला रहे हैं पराली, गाड़ियों के धुएं से बढ़ रहा दिल्ली का प्रदूषण

पराली जलाने से नष्ट होती है जमीन की उर्वरा शक्ति

पराली को खेत में जलाए जाने से अगली फसल पर होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी देते हुए डॉ पवन कुमार ने बताया कि इससे जमीन में उपस्थित मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस आदि 25 से 30 प्रतिशत तक तक नष्ट होते हैं. वहीं मुख्य उर्वरक कार्बन 80 प्रतिशत, सल्फर 50 प्रतिशत तक नष्ट होते हैं. इनके नष्ट होने से भूमि की उर्वरक शक्ति कम होती है और पराली जलाने से पर्यावरण के साथ-साथ मित्र कीट भी नष्ट होते हैं.

तीन साल में हरियाणा में कम हुए पराली जलाने के मामले

हैप्पी सीडर को लेकर विश्वविद्यालय और कृषि विभाग ने किसानों को जागरूक किया है.,जिससे पिछले 3 वर्षों में हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने के आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई है. उपकरणों की कीमत को देखते हुए हरियाणा सरकार ने किसानों के लिए कस्टमर हायरिंग सेंटर खोले हैं, जहां यह उपकरण किराए पर दिए जाते हैं. पराली को जलाने की बजाय अन्य उपकरणों की मदद से निपटान के लिए उपकरणों पर सरकार किसानों को सब्सिडी मुहैया करवा रही है.

हिसार: उत्तर भारत में दीपावली के आसपास स्मॉग की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है. इसके लिए दीपावली पर चलाए गए पटाखों और किसानों के द्वारा पराली जलाने से उठने वाले धुएं को कारण माना जाता है. पराली जलाने वाले किसानों पर प्रदेश भर में वायु प्रदूषण एक्ट और अन्य धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की जा रही है. कृषि वैज्ञानिक के अनुसार किसानों के पास पराली के अवशेषों के निपटान हेतु कई अन्य तरीके हैं.

हैप्पी सीडर मशीन से गेहूं की बिजाई

किसान पराली को जलाने की बजाय उसे खाद बनाकर जैविक खेती कर सकता है. वहीं धान की फसल की कटाई के बाद गेहूं की बिजाई में समय की कमी के चलते किसान पराली को आग के हवाले कर देते हैं. हैप्पी सीडर मशीन से गेहूं की बिजाई करना भी किसानों के पास एक विकल्प है. इस मशीन से पराली के अवशेष खेत में मौजूद होने के बावजूद भी गेहूं की बिजाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कस्टमर हायरिंग सेंटर खोले गए हैं जहां किसानों को प्रति घंटा की दर पर मशीनें पराली के निपटान के लिए मुहैया करवाई जाती है.

अब किसान नहीं होंगे प्रदूषण के विलेन, देखें वीडियो

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने निकाला हल

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि वैज्ञानिक डॉ. पवन कुमार ने ईटीवी भारत की खास बातचीत में बताया कि पराली को जलाने के अलावा किसान पराली से पैसे कमाने के साथ-साथ अपने खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा सकते हैं. धान की फसल में पराली अधिक मात्रा में होती है, जिसे गोबर के साथ मिलाकर खाद बनाई जा सकती है और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है. इससे उर्वरक शक्ति बढ़ती है वहीं नौजवान युवक इसे एक व्यापार के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

पराली से बढ़ेगी जमीन की उर्वरा शक्ति

डॉक्टर पवन कुमार ने बताया कि पराली को खेत की मिट्टी में मिला कर भी उर्वरक की बढ़ाई जा सकती है. पराली को खेत में बिछा कर सब्जी आदि की फसलों के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है. इससे गर्मियों में तापमान को स्थिर रखने और जमीन में नमी बनाए रखने में सहायता मिलती है और कुछ महीनों बाद गल कर जैविक खाद का काम करती है.

स्वयं गल जाते हैं पराली के अवशेष

किसान खेत में पराली के अवशेष होने पर भी गेहूं की बिजाई हैप्पी सीडर मशीन से कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ महीनों के अंतराल पर ये अवशेष स्वयं गल जाएंगे और एक उर्वरक के रूप में फसल को फायदा पहुंचाएंगे.

ये भी पढ़ें:- हरियाणा के किसान मजबूरी में जला रहे हैं पराली, गाड़ियों के धुएं से बढ़ रहा दिल्ली का प्रदूषण

पराली जलाने से नष्ट होती है जमीन की उर्वरा शक्ति

पराली को खेत में जलाए जाने से अगली फसल पर होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी देते हुए डॉ पवन कुमार ने बताया कि इससे जमीन में उपस्थित मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस आदि 25 से 30 प्रतिशत तक तक नष्ट होते हैं. वहीं मुख्य उर्वरक कार्बन 80 प्रतिशत, सल्फर 50 प्रतिशत तक नष्ट होते हैं. इनके नष्ट होने से भूमि की उर्वरक शक्ति कम होती है और पराली जलाने से पर्यावरण के साथ-साथ मित्र कीट भी नष्ट होते हैं.

तीन साल में हरियाणा में कम हुए पराली जलाने के मामले

हैप्पी सीडर को लेकर विश्वविद्यालय और कृषि विभाग ने किसानों को जागरूक किया है.,जिससे पिछले 3 वर्षों में हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने के आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई है. उपकरणों की कीमत को देखते हुए हरियाणा सरकार ने किसानों के लिए कस्टमर हायरिंग सेंटर खोले हैं, जहां यह उपकरण किराए पर दिए जाते हैं. पराली को जलाने की बजाय अन्य उपकरणों की मदद से निपटान के लिए उपकरणों पर सरकार किसानों को सब्सिडी मुहैया करवा रही है.

Intro:एंकर - उत्तर भारत में दीपावली के आसपास स्मॉग की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। इसके लिए दीपावली पर चलाए गए पटाखों और किसानों के द्वारा पराली जलाने से उठने वाले धुएं को कारण माना जाता है। पराली जलाने वाले किसानों पर प्रदेश भर में वायु प्रदूषण एक्ट और अन्य धाराओं के तहत एफ आई आर दर्ज की जा रही है। कृषि वैज्ञानिक के अनुसार किसानों के पास पराली के अवशेषों के निपटान हेतु कई अन्य तरीके हैं। किसान पराली को जलाने की बजाय उसे खाद बनाकर जैविक खेती कर सकता है। वहीं धान की फसल की कटाई के बाद गेहूं की बिजाई में समय की कमी के चलते किसान पराली को आग के हवाले कर देते हैं। हैप्पी सीडर मशीन से गेहूं की बिजाई करना भी किसानों के पास एक विकल्प है। इस मशीन से पराली के अवशेष खेत में मौजूद होने के बावजूद भी गेहूं की बिजाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कस्टमर हायरिंग सेंटर खोले गए हैं जहां किसानों को प्रति घंटा की दर पर मशीनें पराली के निपटान हेतु मुहैया करवाई जाती हैं।

वीओ - चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि वैज्ञानिक डॉ पवन कुमार ने ईटीवी भारत की खास बातचीत में बताया कि पराली को जलाने के अलावा किसान पराली से पैसे कमाने के साथ-साथ अपने खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा सकते हैं। धान की फसल में पराली अधिक मात्रा में होती है जिसे गोबर के साथ मिलाकर खाद बनाई जा सकती है और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे उर्वरक शक्ति बढ़ती है वही नौजवान युवक इसे एक व्यापार के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। डॉक्टर पवन कुमार ने बताया कि पराली को खेत की मिट्टी में मिला कर भी उर्वरक की बढ़ाई जा सकती है। पराली को खेत में बिछा कर सब्जी आदि की फसलों के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है। इससे गर्मियों में तापमान को स्थिर रखने और जमीन में नमी बनाए रखने में सहायता मिलती है और कुछ महीनों बाद यह गल कर जैविक खाद का काम करती है।




Body:डॉक्टर पवन कुमार ने बताया कि किसान खेत में पराली के अवशेष होने पर भी गेहूं की बिजाई हैप्पी सीडर मशीन से कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ महीनों के अंतराल पर यह अवशेष स्वयं गल जाएंगे और एक उर्वरक के रूप में फसल को फायदा पहुंचाएंगे।

पराली को खेत में जलाए जाने से अगली फसल पर होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी देते हुए डॉ पवन कुमार ने बताया कि इससे जमीन में उपस्थित मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस आदि 25 से 30 प्रतिशत तक तक नष्ट होते हैं। वहीं मुख्य उर्वरक कार्बन 80 प्रतिशत, सल्फर 50 प्रतिशत तक नष्ट होते हैं। इनके नष्ट होने से भूमि की उर्वरक शक्ति कम होती है और पराली जलाने से पर्यावरण के साथ-साथ मित्र कीट भी नष्ट होते हैं।

डॉक्टर पवन कुमार ने बताया कि हैप्पी सीडर को लेकर विश्वविद्यालय और कृषि विभाग ने किसानों को जागरूक किया है। जिससे पिछले 3 वर्षों में हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने के आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई है। उपकरणों की कीमत को देखते हुए हरियाणा सरकार ने किसानों के लिए कस्टमर हायरिंग सेंटर खोले हैं जहां यह उपकरण किराए पर दिए जाते हैं। पराली को जलाने की बजाय अन्य उपकरणों की मदद से निपटान के लिए उपकरणों पर सरकार किसानों को सब्सिडी मुहैया करवा रही है।

वन टू वन - डॉक्टर पवन कुमार, कृषि वैज्ञानिक चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार।


Conclusion:
Last Updated : Nov 30, 2019, 11:27 AM IST
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