हिसार: आज के समय में आधुनिकता हर व्यक्ति और हर चीज में देखी जाने लगी है. हर कोई आधुनिकता की तरफ आकर्षित होकर खिंचता चला जा रहा है. जहां एक तरफ आधुनिकीकरण के फायदे हैं तो आधुनिकीकरण के कई वर्गों को नुकसान भी झेलना पड़ रहा है. उनमें से एक है रजाई का रोजगार करने वाले बुनकर. एक समय हुआ करता था जब लोग सर्दी का मौसम आते ही रजाई भरवाने के लिए टूट पड़ते थे. लेकिन अब रजाई भरने वाले बुनकर (Quilt business in Hisar) पाई-पाई के मोहताज होते नजर आ रहे हैं.
वर्तमान समय में लगभग पूरी तरह से रजाई की जगह कंबल ने ले ली है. लोग रजाइयों की जगह कंबल को तवज्जो देने लगे हैं. हालांकि रजाई कंबल की एवज में ज्यादा किफायती है, इसके बावजूद रजाइयों की बिक्री धीरे-धीरे काफी कम होने लगी है. इसके पीछे का कारण भी साफ है कि अब लोग पैसों से ज्यादा सुविधा को ऊपर रखने लगे हैं. जहां रजाई को हर महीने धोना पड़ता था, वहीं कंबल में गंदगी का ज्यादा पता नहीं चल पाता. इस वजह से लोग रजाई की जगह कंबल को उपयोग में लेने लगे हैं. लोग अब हाथों से बने रजाई की जगह रेडिमेड इंपोर्टेड कंबल पसंद करने लगे हैं. इस कारण रजाई बनाने वाले परिवारों का धंधा चौपट (Quilt business downfall in haryana) होने लगा है. लोकल स्तर पर रुई से तैयार होने वाली रजाई की डिमांड धीरे-धीरे कम होने लगी है.
अधिकांश लोग रेडिमेड कंबल या फाइबर रेडिमेड रजाई को ही पसंद करते हैं. हिसार में 50 सालों से रूई की रजाई बनाने वाले नंद किशोर ने बताया कि बाजार में कंबल का प्रचलन ज्यादा होने से रजाई का धंधा मंदा पड़ने लग गया. नंद किशोर ने बताया कि पिछले सालों तक सर्दी के सीजन में 1,200 से 1,500 तक रजाई तैयार किया करते थे. लेकिन अब ये आंकड़ा घटकर 500 तक आ गया है. रजाई का धंधा कम होने से बुनकरों को आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ रहा है. नंद किशोर का पूरा परिवार मिलकर रजाई भरने का काम किया करता था. वहीं अब रजाई का प्रचलन कम होने से पूरा परिवार बेरोजगारी की स्थिति में आ गया है.
गौरतलब है कि कंबल का प्रचलन ज्यादा होने से रूई की रजाई बनाने वालों का रोजगार बंद होने की कागर (Quilt business downfall in haryana) पर है. जिसके चलते रजाई बुनकर अब ये रोजगार छोड़कर अन्य रोजगारों की तरफ रूख करने लगे हैं. हाथ का कारोबार छिनने की वजह से रजाई बुनकरों को अन्य रोजगार तलाशने में भी खासा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
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रजाई में धागे डालने का काम करने वाली महिला विमला ने बताया कि इस सीजन के लिए उसने 12 रजाइयां तैयार की थी. सर्दी का सीजन खत्म होने को है लेकिन अभी तक एक भी रजाई नहीं बिकी. क्योंकि लोग अब कंबल ज्यादा खरीदने लगे हैं. विमला ने बताया कि हमारा काम अब बंद होने के आसार दिख रहे हैं, हालांकि मार्केट में एक कंबल 1,500 रुपए के लगभग मिलता है और रजाई 600 में तैयार हो जाती है. इसके बावजूद रजाई के खरीददार दूर-दूर तक देखने को नहीं मिल रहे है.
वहीं इस बारे में जब हमने बुजुर्गों से बात की तो सूबेदार मेजर दिलीप सिंह व वेद प्रकाश सिहाग ने बताया कि पहले पुराने समय में शोड हुआ करती थी. जो गांव में रेजे की कताई करके बनाई जाती थी. उसके बाद रजाई आई. सूबेदार मेजर दिलीप सिंह ने बताया कि किसी समय में रजाई होना बड़े गर्व की बात होती थी. विवाह-शादी में भी उपहार के तौर पर रजाई दी जाती थी. लेकिन अब ग्रामीण स्तर पर भी रेडिमेड कंबल आ गए हैं.
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मेजर ने कहा कि चाहे कुछ भी आए लेकिन रजाई तो रजाई होती है. रजाई में कभी ठंड नहीं लगती थी और ये कंबल उनका कभी भी मुकाबला नहीं कर सकते. इस समय में लोग सब कुछ रेडिमेड चाहते हैं और रजाई को छोड़कर धीरे-धीरे फेशन के चक्कर में कंबल अपनाने लगे हैं. लोगों को अब रेडिमेड व फैशनेबल चीजों में ज्यादा दिसचस्पी है. लोगों में आलसी प्रवृत्ति होने की वजह कंबल को अपनाने लग गए हैं. क्योंकि कंबल को धोना नहीं पड़ता है.
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बहरहाल आधुनिकता के जमाने में धीरे-धीरे पुराने समय से चलते आ रहे लोगों के रोजगारों पर विनाश का खतरा भी मंडरा रहा है. रजाई की जगह कंबल आने से हजारों परिवारों का रोजगार खत्म हो रहा है. रजाई की रूई बनाने वाले बुनकर, रजाई के लिहाफ तैयार करने वाले, रुई की धुनाई करने वाले कारीगर के रोजगार पर संकट के बादल छा गए हैं.
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