हिसार: देश में जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र (Kargil Vijay Diwas ) होता है तब उन शहीदों का जिक्र बड़े गर्व के साथ होता है, जिन्होंने इस लड़ाई में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. लेकिन बहुते सारे ऐसे योद्धा आज भी हमारे बीच मौजूद है जिन्होंने करगिल युद्ध में पाकिस्तान के दांत खट्टे कर दिए थे. ऐसे ही एक वीर योद्धा हैं नायक दीपचन्द. जिन्होंने 1999 में करगिल में हुई जंग में अपने शरीर के अहम हिस्से बेशक गंवा दिए हो लेकिन उनके भीतर का योद्धा आज भी जिंदा है.
भारतीय सेना में मिसाइल रेजीमेंट का हिस्सा रहे दीपचन्द ने बताया हमें बाताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच करीब 60 दिनों तक चले इस लड़ाई में भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह रौंदा था. हमारे बहादुर जवानों ने तब तक हार नहीं मानी थी जब तक पाकिस्तानी करगिल से उल्टे पांव नहीं भाग गए थे. इस लड़ाई में नायक दीपचंद ने अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवा दिया था.
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सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहने वाले नायक दीपचंद के घुटने तक दोनों पैर नकली हैं लेकिन आज भी वो एक फौजी की तरह तनकर खड़े होते हैं और दाहिने बाजू से फौजी सैल्यूट करते हैं. नायक दीपचंद से जो कोई भी मिलता है तो उनसे करगिल युद्ध की कहानिया सुने बिने रह नहीं सकता. नायक दीपचन्द को करगिल दिवस पर पूरे देशभर में अलग-अलग जगह अवॉर्डस से नवाजा जा चुका है. वहीं पिछले साल चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ विपिन रावत ने करगिल दिवस पर उनकी सराहना भी की थी.
नायक दीपचंद आज भी करगिल युद्ध को याद करके भावुक हो जाते हैं. दीपचंद ने करगिल का एक किस्सा बताते हुए कहा कि जब मेरी बटालियन को युद्ध के लिए आगे बढ़ने का ऑर्डर मिल था तब हम बहुत खुश हो गए थे. तोलोलिंग पोस्ट पर सबसे पहले हमने गोला दागा था वो पहला ही गोला टारगेट पर हिट हो गया था. फिर हमने इस दौरान 8 जगह गन पोजीशन चेंज की. हम अपने कंधों पर गन उठाकर लेकर जाते थे और हमारी बटालियन ने 10 हजार राउंड फायर किए. मेरी बटालियन को 12 गलेन्टरी अवार्ड मिलें हैं और हमे कारगिल जीतने का सोभाग्य मिला.
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नायक दीपचंद ने कहा की युद्ध के वक्त हम खाना और हथियार सप्लाई करने वालों को कहते थे कि चाहे हमें रोटी मिले न मिले लेकिन गोला बारूद की कमी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि उस समय पहाड़ों पर जबरदस्त ठंड थी लेकिन हमें ये होश भी नहीं रहता था कि हमने सर्दी से बचने के लिए क्या पहना है. हमारे जहन में बस एक ही बात थी की हमें किसी भी कीमत पर दुश्मनों को यहां से खदेड़ना है. नायक दीपचंद ने बताया कि मेरा कभी दुश्मन से आमना-सामना नहीं हुआ लेकिन हम जवानों को सपोर्ट देने के लिए आर्टिलरी फायरिंग करते रहते थे.
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उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान एक गोला फटने से वो गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे. इस हालत में उनका बचना मुश्किल था जिसके बाद डॉक्टर्स को सर्जरी के वक्त उनको दोनों पैर और एक हाथ काटना पड़ा. उनका इतना खून बह गया था कि उन्हें बचाने के लिए 17 बोतल खून चढ़ाया गया. ये हादसा भी तब हुआ था जब दीपचंद और उनके साथी ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वापसी के लिए सामान बांधने की तैयारी में थे. इस गोले के फटने से दो और सैनिक भी जख्मी हुए थे.