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हरियाणा में कम हो रही गेहूं की आवक, प्रवासी मजदूरों पर छाया आर्थिक संकट - Wheat arrival less in grain market

पिछले सालों के मुकाबले इस बार हरियाणा की मंडियों में गेहूं की आवक बहुत कम हुई है. जिसकी वजह से प्रवासी मजदूरों पर आर्थिक संकट (economic crisis on migrant labours) आन खड़ा हुआ है.

wheat procurement in haryana
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Published : Apr 24, 2022, 2:15 PM IST

हिसार: हरियाणा में गेहूं खरीद (wheat procurement in haryana) 1 अप्रैल से जारी है. इस बार अनाज मंडियों में पहले के मुकाबले काफी कम अनाज आ रहा है. हिसार की अनाज मंडी जो इस समय तक गेहूं से अटी होती थी. आज खाली पड़ी है. वर्तमान में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹2015 प्रति क्विंटल है, लेकिन खबरें ये भी हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं का भाव ज्यादा है. जिस वजह से किसान गेहूं मंडी नहीं लेकर आ रहे.

दूसरी वजह ये भी है कि बैमौसम बरसात की वजह से गेहूं की पैदावार भी कम हुई है. गेहूं की कमी की वजह से मंडी में दूसरे राज्यों से आए मजदूर भी बेहद परेशान हैं. हिसार शहर की अनाज मंडी में कई सालों से काम करने वाले यूपी के मजदूर दिनेश कुमार ने बताया कि इस बार मंडी में काम नहीं है. उन्होंने कहा कि कि पहली बार उन्होंने सामान्य तौर पर मंडी में ऐसा हाल देखा है. दिनेश ने बताया कि पहले हम सीजन में रोजाना ₹400 तक का काम कर लेते थे, लेकिन अब 50 रुपए भी नहीं मिल रहे.

हरियाणा में कम हो रही गेहूं की आवक, प्रवासी मजदूरों पर छाया आर्थिक संकट

जिससे की उनके ऊपर आर्थिक संकट मंडरा रहा है. बिहार से करीब 70 लोगों को मंडी में काम करने के लिए लाए सुरेश यादव ने बताया कि 2 महीने यहां आए हुए हो गई, सोचा था कि सीजन चलेगा. लेकिन मंडी में दाना ही नहीं आ रहा है, मजदूरी नहीं मिल रही है तो खाना कैसे खाएंगे, पूरा दिन मंडी में पड़े रहते हैं कभी बाहर घूमने चले जाते हैं. अब की साल ऐसा हुआ है कि काम नहीं मिल रहा है वरना हर साल यहां से कमा कर जाते थे और बाल बच्चे आराम से खाते थे.

मंडी में भराई का काम करने वाले रोली राम ने बताया कि वो हर रोज घर से किराया लगाकर मंडी में काम करने आते हैं, लेकिन यहां कोई काम नहीं मिलता. पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि बिना दिहाड़ी किए हम घर चले जाते हैं, ऊपर से चाय पानी का खर्चा भी खुद जेब से देना पड़ता है. गौरतलब है कि सीजन के वक्त हरियाणा की मंडियों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों से मजदूर यहां आकर मंडी में गेहूं भराई का काम करते हैं.

इस साल गेहूं की आवक मंडियों में बेहद कम है, इसकी वजह से इन लोगों के रोजगार पर संकट के बादल मंडरा गए हैं. हालात ऐसे हैं कि बाहरी राज्यों से आए मजदूरों को खाने तक का संकट (economic crisis on migrant labours) हो गया हैं, क्योंकि जब मजदूरी नहीं करेंगे तो खाने को कहां से मिलेगा, एक मजदूर ने तो यहां तक कहा कि पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि मंडी में गेहूं नहीं आ रही है.

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हिसार: हरियाणा में गेहूं खरीद (wheat procurement in haryana) 1 अप्रैल से जारी है. इस बार अनाज मंडियों में पहले के मुकाबले काफी कम अनाज आ रहा है. हिसार की अनाज मंडी जो इस समय तक गेहूं से अटी होती थी. आज खाली पड़ी है. वर्तमान में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹2015 प्रति क्विंटल है, लेकिन खबरें ये भी हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं का भाव ज्यादा है. जिस वजह से किसान गेहूं मंडी नहीं लेकर आ रहे.

दूसरी वजह ये भी है कि बैमौसम बरसात की वजह से गेहूं की पैदावार भी कम हुई है. गेहूं की कमी की वजह से मंडी में दूसरे राज्यों से आए मजदूर भी बेहद परेशान हैं. हिसार शहर की अनाज मंडी में कई सालों से काम करने वाले यूपी के मजदूर दिनेश कुमार ने बताया कि इस बार मंडी में काम नहीं है. उन्होंने कहा कि कि पहली बार उन्होंने सामान्य तौर पर मंडी में ऐसा हाल देखा है. दिनेश ने बताया कि पहले हम सीजन में रोजाना ₹400 तक का काम कर लेते थे, लेकिन अब 50 रुपए भी नहीं मिल रहे.

हरियाणा में कम हो रही गेहूं की आवक, प्रवासी मजदूरों पर छाया आर्थिक संकट

जिससे की उनके ऊपर आर्थिक संकट मंडरा रहा है. बिहार से करीब 70 लोगों को मंडी में काम करने के लिए लाए सुरेश यादव ने बताया कि 2 महीने यहां आए हुए हो गई, सोचा था कि सीजन चलेगा. लेकिन मंडी में दाना ही नहीं आ रहा है, मजदूरी नहीं मिल रही है तो खाना कैसे खाएंगे, पूरा दिन मंडी में पड़े रहते हैं कभी बाहर घूमने चले जाते हैं. अब की साल ऐसा हुआ है कि काम नहीं मिल रहा है वरना हर साल यहां से कमा कर जाते थे और बाल बच्चे आराम से खाते थे.

मंडी में भराई का काम करने वाले रोली राम ने बताया कि वो हर रोज घर से किराया लगाकर मंडी में काम करने आते हैं, लेकिन यहां कोई काम नहीं मिलता. पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि बिना दिहाड़ी किए हम घर चले जाते हैं, ऊपर से चाय पानी का खर्चा भी खुद जेब से देना पड़ता है. गौरतलब है कि सीजन के वक्त हरियाणा की मंडियों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों से मजदूर यहां आकर मंडी में गेहूं भराई का काम करते हैं.

इस साल गेहूं की आवक मंडियों में बेहद कम है, इसकी वजह से इन लोगों के रोजगार पर संकट के बादल मंडरा गए हैं. हालात ऐसे हैं कि बाहरी राज्यों से आए मजदूरों को खाने तक का संकट (economic crisis on migrant labours) हो गया हैं, क्योंकि जब मजदूरी नहीं करेंगे तो खाने को कहां से मिलेगा, एक मजदूर ने तो यहां तक कहा कि पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि मंडी में गेहूं नहीं आ रही है.

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