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गुरुग्राम के जन औषधि केंद्र में समस्याओं का अंबार, देखें ये स्पेशल रिपोर्ट - gurgram pradhanmantri jan aushadhi yojana

गुरुग्राम में चल रहे जन औषधि केंद्रों में जेनेरिक दवाइयां नाम मात्र ही मिल रही हैं. अस्पताल संचालकों को दवाइयों का ऑर्डर करने के बाद डिलीवरी के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है. साथ ही दवाइयों की क्वालिटी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

gurugram Jan Aushadhi Store
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Published : Dec 10, 2020, 8:45 PM IST

गुरुग्राम: आम आदमी तक सस्ती दवाएं पहुंचाने के लिए खोले गए प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों में हालात ठीक नहीं है. इस योजना के तहत खोले गए कुछ केंद्र तो बंद हो गए हैं और जो चल रहे हैं उनमें भी नाम मात्र ही दवाएं हैं. दरअसल, प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों की शुरुआत लोगों को सस्ती दरों पर दवाएं उपलब्ध कराने के लिए की गई थी.

इन केंद्रों में जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के दामों में जमीन आसमान का अंतर होता है. कई लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वो ब्रांडेड दवाएं खरीद सकें, ऐसे लोगों को सस्ते दामों पर जेनेरिक दवाएं काफी राहत देती हैं, लेकिन साइबर सिटी गुरुग्राम में जो जन औषधि केंद्र चलाए जा रहे हैं वहां जेनेरिक दवाएं नाममात्र ही हैं.

ये भी पढे़ं- चंडीगढ़ PGI में 7 महीने बाद फिर शुरू हुआ ऑर्गन ट्रांसप्लांट, नवंबर में की गई 10 सर्जरी

जन औषधि केंद्रों पर आने वाली दवाइयों में एक्सपायरी डेट का खासा ध्यान रखना पड़ता है. औषधि केंद्र के संचालकों की मानें तो जब सप्लायर से दवाएं आती हैं तो उनमें 1 महीने या 2 महीने का ही एक्सपायरी डेट का अंतर होता है. यानी वो दवाई 1 महीने में एक्सपायर होने वाली होती हैं.

गुरुग्राम के जन औषधि केंद्रों में समस्याओं का अंबार, देखें ये स्पेशल रिपोर्ट

ऐसे में अस्पताल संचालकों और मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. एक और समस्या जेनरिक दवाइयों की क्वालिटी की भी है. डॉक्टर ए.के गर्ग कहते हैं कि सरकार को इन दवा कंपनियों को मॉनिटर करना चाहिए, ताकि जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी को मेनटेन रखा जा सके.

इसलिए मिलती है सस्ती दवाइयां

एक ही सॉल्ट की दवाइयों के दाम कंपनी या ब्रांड के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं. जिस सॉल्ट की दवा 100 रुपये की मिलती है किसी दूसरी कंपनी में वही दवा 20 रुपये की भी मिल सकती है. किसी भी दवा का जेनरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है. बीमारी के लिए डॉक्टर जो दवा लिखते हैं, उसी दवा के सॉल्ट वाली जेनेरिक दवाएं जन औषधि केंद्र पर मिल सकती है बशर्ते वो उपलब्ध हों. ये जेनेरिक दवाएं उत्पादक से सीधे रिटेलर तक पहुंचती हैं. जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकार का अंकुश होता है, इसलिए वो सस्ती होती हैं. जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वो महंगी होती हैं.

गुरुग्राम: आम आदमी तक सस्ती दवाएं पहुंचाने के लिए खोले गए प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों में हालात ठीक नहीं है. इस योजना के तहत खोले गए कुछ केंद्र तो बंद हो गए हैं और जो चल रहे हैं उनमें भी नाम मात्र ही दवाएं हैं. दरअसल, प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों की शुरुआत लोगों को सस्ती दरों पर दवाएं उपलब्ध कराने के लिए की गई थी.

इन केंद्रों में जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के दामों में जमीन आसमान का अंतर होता है. कई लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वो ब्रांडेड दवाएं खरीद सकें, ऐसे लोगों को सस्ते दामों पर जेनेरिक दवाएं काफी राहत देती हैं, लेकिन साइबर सिटी गुरुग्राम में जो जन औषधि केंद्र चलाए जा रहे हैं वहां जेनेरिक दवाएं नाममात्र ही हैं.

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जन औषधि केंद्रों पर आने वाली दवाइयों में एक्सपायरी डेट का खासा ध्यान रखना पड़ता है. औषधि केंद्र के संचालकों की मानें तो जब सप्लायर से दवाएं आती हैं तो उनमें 1 महीने या 2 महीने का ही एक्सपायरी डेट का अंतर होता है. यानी वो दवाई 1 महीने में एक्सपायर होने वाली होती हैं.

गुरुग्राम के जन औषधि केंद्रों में समस्याओं का अंबार, देखें ये स्पेशल रिपोर्ट

ऐसे में अस्पताल संचालकों और मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. एक और समस्या जेनरिक दवाइयों की क्वालिटी की भी है. डॉक्टर ए.के गर्ग कहते हैं कि सरकार को इन दवा कंपनियों को मॉनिटर करना चाहिए, ताकि जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी को मेनटेन रखा जा सके.

इसलिए मिलती है सस्ती दवाइयां

एक ही सॉल्ट की दवाइयों के दाम कंपनी या ब्रांड के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं. जिस सॉल्ट की दवा 100 रुपये की मिलती है किसी दूसरी कंपनी में वही दवा 20 रुपये की भी मिल सकती है. किसी भी दवा का जेनरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है. बीमारी के लिए डॉक्टर जो दवा लिखते हैं, उसी दवा के सॉल्ट वाली जेनेरिक दवाएं जन औषधि केंद्र पर मिल सकती है बशर्ते वो उपलब्ध हों. ये जेनेरिक दवाएं उत्पादक से सीधे रिटेलर तक पहुंचती हैं. जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकार का अंकुश होता है, इसलिए वो सस्ती होती हैं. जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वो महंगी होती हैं.

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