फतेहाबाद: अक्टूबर और नवंबर के महीने में पूरा उत्तर भारत आग लगी पराली की चपेट में दिखाई पड़ता है. हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में किसान पराली जलाते हैं, जिससे हवा में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है. सरकारें इसे रोकने का दावा तो करती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर पराली जलाने के मामले कम होते नहीं दिख रहे हैं.
आग लगते ही धूंआ-धूंआ हुआ शहर
फतेहाबाद में भी दीपावली पर जमकर पटाखे चले और उससे अगले दिन कई जगह खेतों में किसानों ने पराली को आग लगाई. किसानों के पराली में आग लगाते ही पूरे शहर में धुंआ ही धुंआ हो गया. खेत के आस पास रहने वाले लोगों को सांस लेने में काफी परेशानी झेलनी पड़ी. पराली जलाने को लेकर जब किसानों से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि अगली फसल की बिजाई के लिए खेतों को जल्दी खाली करना होता है. किसानों ने बताया कि बिना आग लगाए खेतों की 5-6 बार जुताई करनी पड़ती है, जिसमें ज्यादा खर्चा आता है.
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किसानों की सरकार से ये है मांग
किसानों ने सरकार से मांग की है कि वो किसानों को पराली निकालने के लिए यंत्र दे, जिससे किसानों के पैसे और समय दोनों की बचत होगी. किसानों ने कहा कि वो पराली जलाने को मजबूर हैं और फिलहाल उनके पास इसके अलावा कोई और तरीका नहीं है.
किसान पराली जलाने को मजबूर
किसान मनदीप ने बताया कि धान की पराली निकालने के लिए पांच से छ हजार रुपये प्रति एकड़ खर्चा आता है और वो तो पहले ही कर्जे में डूबा है. किसान ने बताया कि प्रशासन की ओर से उन्हें पराली निकालने की मशीने नहीं उपलब्ध करवाई जा रही, इसलिए किसानों को पराली में आग लगानी पड़ रही है.