फरीदाबाद: देश की राजधानी दिल्ली से सटे फरीदाबाद में फैली अरावली पर्वतों की श्रृंखला में प्राचीन सभ्यता के कई हजार साल पुराने शैल चित्र (palaeolithic period rock art) और औजार (palaeolithic tools) मिले हैं. यहां कुछ गुफाएं भी मिली हैं, जिनकी दीवारों पर मनुष्यों के हाथ-पैर और जानवरों के निशान अंकित हैं. इसने ये अनुमान लगाया जा रहा है कि यहां हजारों साल पहले भी मनुष्य रहा करते थे.
फरीदाबाद सैनिक कॉलोनी के रहने वाले पुरातत्व के छात्र शैलेश बैसला ने सबसे पहले अरावली पर्वतो की श्रृंखला में शैल चित्रों (शैल चित्र प्राचीन कला शैली है, ये मानव द्वारा निर्मित चिन्हों/चित्रों/मूर्तियों की प्राकृतिक पत्थर पर अंकित एक प्रकार की छाप होती है) और औजारों की खोज की. वो पिछले 2 साल से अरावली क्षेत्र में रिसर्च कर रहे थे.
शैलेज की मानें तो ये शैल चित्र, औजार और गुफाएं पुरापाषाण काल की हैं, जो संभावित रूप से उन्हें देश की सबसे पुरानी गुफा कलाओं में से एक बना सकती हैं. दरअसल, 2019 में शैलेश बैसला ने पुरातत्व में पीएचडी की डिग्री के लिए अरावली पर्वतों की श्रृंखला में रिसर्च शुरू की थी. शुरू में वो बेहद कम पर्वतों में आते थे, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन लगा उनका आना यहां ज्यादा शुरू हो गया और वो यहां पर कई-कई घंटे खोज करने लगे.
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सबसे पहले शैलेश को अरावली के गांव मांगर (rock art mangar viilage faridabad) में एक पहाड़ पर दरार दिखाई दी. जब उन्होंने वहां खुदाई की तो पाया कि वहां पुरापाषाण के हथियार मौजूद थे. ये हथियार पत्थरों को काटकर, उन्हें अलग-अलग आकार देकर बनाए गए थे. शैलेश के मुताबिक इन पत्थरों से बने औजारों के जरिए उस वक्त लोग जानवरों को मारने, हड्डियों को तोड़ने या फिर खाल निकालने का काम किया करते होंगे.
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शैलेश ने इसके बाद खोज को आगे बढ़ाया तो उनको वहां पर कई सारे शैल चित्र भी. इन शैल चित्रों में मनुष्यों के हाथ-पैर और अलग-अलग तरह की कलाकृतियां बनी हुई थी. शैलेश ने अपनी अबतक की पूरी खोजबीन की जानकारी हरियाणा पुरातत्व विभाग को दी है. जिसके बाद अब पुरातत्व विभाग की टीम ने शैलेश को अपनी टीम में शामिल किया है और अब इस पूरे क्षेत्र पर रिसर्च करने की तैयारी की जा रही है.
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शैलेज के मुताबिक ऐसा पहली बार है जब अरावली में किसी को ये शैल चित्र मिले हैं और गुफा के अंदर दीवारों पर मनुष्य के हाथों के निशान और दूसरे जानवरों के हाथों के भी निशान हैं. जिससे ये साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पर पहले मनुष्य रहते थे.
गौरतलब है कि पुरापाषाण काल (Palaeolithic) प्रौगएतिहासिक युग का वो समय है, जब मानव ने पत्थर के औजार बनाना सबसे पहले शुरू किया था. ये काल आधुनिक काल से 25-20 लाख साल पहले से लेकर 12,000 साल पहले तक माना जाता है. इस दौरान मानव इतिहास का 99 फीसदी विकास हुआ था. इस काल के बाद ही मध्यपाषाण युग की शुरुआत हुई थी, जब मानव ने खेती करना शुरू किया था.
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भारत में पुरापाषाण काल के अवशेष तमिलनाडु के कुरनूल, कर्नाटक के हुंस्गी, ओडिशा के कुलिआना, राजस्थान के डीडवाना के श्रृंगी तालाब के पास और मध्य प्रदेश के भीमबेटका और छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में भी मिलते हैं. अब इसी काल से जुड़े कुछ अवशेष हरियाणा के फरीदाबाद में भी मिले हैं. हालांकि ये अवशेष कितने हजारों साल पुराने हैं, ये तो पुरातत्व विभाग की खोज के बाद ही साफ हो पाएगा.