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ना गांव गए ना शहर में काम मिला, कहां से देंगे ये प्रवासी मजदूर अपना किराया ?

लॉकडाउन खुलने के बाद भी किराये पर रहने वाले लोगों के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हुआ है. इन लोगों को आज भी जीवन यापन करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. सरकार की तरफ से किराये पर रहने वाले परिवारों को किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिल रही है. काम धंधा पूरी तरह से चालू ना होने के चलते इनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हुआ है.

migrant tenants are facing financial criris in faridabad
migrant tenants are facing financial criris in faridabad
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Published : Aug 3, 2020, 8:31 PM IST

फरीदाबाद: प्रवासी मजदूर...ये वो शब्द है जो पिछले चार-पांच महीनों से हमारे कानों में गूंज रहा है. अपनी मुसीबतों को बयां कर रहा है. चीख-चीख कर बोल रहा है कि मैं परेशान हूं मुझे मदद चाहिए, लेकिन शायद हमेशा की तरह इन्हें इस बार भी अनदेखा किया गया है.

25 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया. ज्यादातर प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर लौटने लगे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो अपने गांवों की ओर नहीं गए बल्कि शहरों की तंग गलियों में बनी छोटी-छोटी कॉलोनियों में अपना गुजारा किया.

ना गांव गए ना शहर में काम मिला, कहां से देंगे ये प्रवासी मजदूर अपना किराया ?

अब समस्या ये है कि पिछले पांच महीनों से ये मकान मालिकों को किराया नहीं दे पाए हैं देंगे भी कहां से? उसके लिए इनके पास कोई स्थाई रोजगार नहीं है. मकान मालिकों ने भी सिर्फ 1 महीने का किराया माफ किया है.

पथराई आंखों से टपकने लगे आंसू

बिहार के रहने वाले रामू फरीदाबाद में मजदूरी करने आये थे, लेकिन आपबीती ऐसी की उम्र के इस पड़ाव पर भी पथराई आंखों से आंसू टपकने लगे. उन्होंने बताया कि मकान मालिक का 10 हजार रुपये किराया हो गया है और वो काम धंधे की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि किसी दिन कोई काम मिल जाता है तो कई बार हफ्तों तक कोई काम नहीं होता. रामू के पास दवाई खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं.

बिहार के ही मुज्जफरपुर जिले के रहने वाले राकेश ने बताया कि वो 15 साल से फरीदाबाद में रह रहा है. किसी फर्नीचर की दुकान में काम करता था, लेकिन वहां भी सिर्फ आधे महीने का पैसा मिला. अब काफी समय से रोजगार की तलाश है, ताकि मकान मालिक को किराया दे सके.

'4 महीने में सिर्फ एक बार मिला राशन'

मनोहर बिहार से करीब 6 साल पहले आकर यहां पर बस गए थे. 6 साल से वो किराए के मकान में रह रहे हैं. मनोहर ने बताया कि 4 महीने के लॉकडाउन में केवल एक बार ही उनको राशन मिला. उसके बाद उनके पास कोई राशन देने के लिए नहीं आया. उन्होंने कहा की सरकार की तरफ से भी उनको कोई मदद मुहैया नहीं हो पाई. लॉकडाउन के दौरान उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई है और अब वो सिर्फ रोजगार की तलाश में हैं.

क्या सब ठीक हो जाएगा?

लॉकडाउन करीब 4 महीने बाद भले ही खुल गया हो, लेकिन किराये पर रहने वाले लोगों की मुसीबतें अभी भी कम नहीं हुई हैं. ज्यादा परेशानी में तो वो हैं जो अपने राज्यों से हजारों किलोमीटर की दूरी पर बैठे हैं और काम है नहीं. पेट जैसे-तैसे भर रहा है. शाम का खाना खाकर सुबह की फिक्र है, लेकिन फिर भी एक उम्मीद है कि कोरोना जाएगा और फिर से सब ठीक हो जाएगा.

ये भी पढे़ं- लॉकडाउन में हुआ 100 करोड़ से ज्यादा का नुकसान, 20 हजार परिवारों का क्या होगा ?

फरीदाबाद: प्रवासी मजदूर...ये वो शब्द है जो पिछले चार-पांच महीनों से हमारे कानों में गूंज रहा है. अपनी मुसीबतों को बयां कर रहा है. चीख-चीख कर बोल रहा है कि मैं परेशान हूं मुझे मदद चाहिए, लेकिन शायद हमेशा की तरह इन्हें इस बार भी अनदेखा किया गया है.

25 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया. ज्यादातर प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर लौटने लगे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो अपने गांवों की ओर नहीं गए बल्कि शहरों की तंग गलियों में बनी छोटी-छोटी कॉलोनियों में अपना गुजारा किया.

ना गांव गए ना शहर में काम मिला, कहां से देंगे ये प्रवासी मजदूर अपना किराया ?

अब समस्या ये है कि पिछले पांच महीनों से ये मकान मालिकों को किराया नहीं दे पाए हैं देंगे भी कहां से? उसके लिए इनके पास कोई स्थाई रोजगार नहीं है. मकान मालिकों ने भी सिर्फ 1 महीने का किराया माफ किया है.

पथराई आंखों से टपकने लगे आंसू

बिहार के रहने वाले रामू फरीदाबाद में मजदूरी करने आये थे, लेकिन आपबीती ऐसी की उम्र के इस पड़ाव पर भी पथराई आंखों से आंसू टपकने लगे. उन्होंने बताया कि मकान मालिक का 10 हजार रुपये किराया हो गया है और वो काम धंधे की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि किसी दिन कोई काम मिल जाता है तो कई बार हफ्तों तक कोई काम नहीं होता. रामू के पास दवाई खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं.

बिहार के ही मुज्जफरपुर जिले के रहने वाले राकेश ने बताया कि वो 15 साल से फरीदाबाद में रह रहा है. किसी फर्नीचर की दुकान में काम करता था, लेकिन वहां भी सिर्फ आधे महीने का पैसा मिला. अब काफी समय से रोजगार की तलाश है, ताकि मकान मालिक को किराया दे सके.

'4 महीने में सिर्फ एक बार मिला राशन'

मनोहर बिहार से करीब 6 साल पहले आकर यहां पर बस गए थे. 6 साल से वो किराए के मकान में रह रहे हैं. मनोहर ने बताया कि 4 महीने के लॉकडाउन में केवल एक बार ही उनको राशन मिला. उसके बाद उनके पास कोई राशन देने के लिए नहीं आया. उन्होंने कहा की सरकार की तरफ से भी उनको कोई मदद मुहैया नहीं हो पाई. लॉकडाउन के दौरान उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई है और अब वो सिर्फ रोजगार की तलाश में हैं.

क्या सब ठीक हो जाएगा?

लॉकडाउन करीब 4 महीने बाद भले ही खुल गया हो, लेकिन किराये पर रहने वाले लोगों की मुसीबतें अभी भी कम नहीं हुई हैं. ज्यादा परेशानी में तो वो हैं जो अपने राज्यों से हजारों किलोमीटर की दूरी पर बैठे हैं और काम है नहीं. पेट जैसे-तैसे भर रहा है. शाम का खाना खाकर सुबह की फिक्र है, लेकिन फिर भी एक उम्मीद है कि कोरोना जाएगा और फिर से सब ठीक हो जाएगा.

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