फरीदाबाद: अरावली की पहाड़ियों के तहलटी में बना परसोन मंदिर द्वापर युग का गवाह है और इसकी प्राकृतिक सुंदरता को देखने के बाद लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. ये मंदिर तीन तरफ से पहाड़ी से घिरा है और करीब 250 फुट नीचे तलहटी में स्थित है.
ऋषि पराशर की तपोभूमि के रूप में विख्यात है मंदिर
मंदिर के महंत अमरदास बताते हैं कि ऋषि पाराशर ने अपने बल और तप से इस भूमि को शक्तियों से भर दिया था और ऐसी मान्यता है कि महर्षि वेद व्यास का जन्म इसी स्थल पर हुआ था. उन्होंने बताया कि महर्षि पराशर के पुत्र महर्षि वेद व्यास ने 18 महापुराणों और महान ग्रंथ महाभारत की रचना की थी.
महंत बताते हैं कि इस क्षेत्र का उल्लेख पराशर ज्योतिष संहिता में मंगला वनी के नाम से किया गया है. इसी भूमि पर द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान माता कुंती के साथ पांडवों ने भी तप करने की किवदंती भी प्रचलित है.
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महंत अमरदास के मुताबिक, यहां पर महर्षि पाराशर का प्राचीन धूना अब भी सुरक्षित है, जिसमें यहां रहने वाले साधु लगातार अग्नि प्रज्ज्वलित रखते हैं. महंत बताते हैं कि ऋषि पराशर ने बाण चलाकर अमृत कुंड, हथिया कुंड और ब्रह्मकुंड नामक तीन सरोवर बनाए थे, जिनकी अलग-अलग खूबियां बताई जाती हैं. मान्यता है कि ब्रह्म कुंड ऋषियों के स्नान का गवाह है. यहां ऋषि पराशर स्नान करने के बाद नित्य पूजा कर्म आदि करते थे.
परसोन मंदिर की खूबसूरती से मंत्रमुग्ध हुए श्रद्धालु
ये मंदिर ऋषि पराशर की तपोभूमि के रूप में विख्यात है. उनके नाम पर ही मंदिर का नाम परसोन पड़ा है. ये मंदिर बड़खल झील से करीब एक किलोमीटर दूर है और यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि उन्हें यहां आकर मन की शांति मिलती है.
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लोग आज भी इस मंदिर में अपनी मान्यता रखते हैं. लोगों का कहना है कि ये मंदिर आस्था का तो प्रतिक है ही साथ ही प्रकिर्तिक खूबसूरती उनको यहां आने पर मजबूर करती है. कहा जाता है कि ये मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना है और शहर की भाग दौड़ से दूर होने के कारण यहां आने वाले हर व्यक्ति को एक अलग ही आंनद आता है.