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अब युवा काटेंगे गेहूं की फसल और बुजुर्ग संभालेंगे किसान आंदोलन की कमान

फसलों की कटाई के समय को देखते हुए किसानों ने नई रणनीति बनाई है. जिसके तहत युवा किसान आंदोलन स्थल से लौटकर खेती का काम करेंगे. आंदोलन स्थल पर मोर्चा संभालने के लिए बुजुर्गों को लगाया जाएगा.

Faridabad: Elderly will take command of the farmers movement
फरीदाबाद किसान आंदोलन बुजुर्ग युवा खेती लेटेस्ट न्यूज
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Published : Feb 28, 2021, 5:26 PM IST

फरीदाबाद: तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन को 3 महीने से ज्यादा का समय हो गया है. अब किसानों के सामने आंदोलन को जारी रखने और फसल कटाई के काम को देखने की दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. इस समस्या से निपटने के लिए किसानों ने एक खास रणनीति बनाई है.

किसानों को आंदोलन भी जारी रखना है, फसल की कटाई का समय हो रहा है तो फसल की कटाई भी करनी है, अब तक तो आंदोलन स्थलों पर युवा किसान मोर्चा संभाले हुए थे. फसल कटाई के समय को देखते हुए अब आंदोलन की कमान युवा नहीं बल्कि बुजुर्ग संभालेंगे.. क्योंकि नई रणनीति के तहत ये तय हुआ है कि युवा आंदोलन स्थलों से लौटकर फसल की कटाई का काम करेंगे..

अब युवा काटेंगे गेहूं की फसल और बुजुर्ग संभालेंगे किसान आंदोलन की कमान

इस मुद्दे पर किसान ऋषि पाल चौहान कहते हैं कि हम गांव-गांव जाकर रणनिति बना रहे हैं. बुजुर्गों और युवाओं को समझा रहे हैं कि आंदोलन को कैसे आगे ले जाना है हम अपनी रणनिति के तहत काम कर रहे हैं.

किसानों की नई रणनीति में ये तय हुआ है कि प्रत्येक गांव में ऐसे बुजुर्ग जिनकी उम्र 60 साल से ज्यादा है. जो खेती बाड़ी का कोई भी काम करने में सक्षम नहीं है. अब ऐसे बुजुर्गों को प्रत्येक गांव से लाकर आंदोलन स्थल पर बैठाया जाएगा.

आंदोलन को चलाने के लिए बुजुर्गों की ड्यूटी लगाई जाएगी. प्रत्येक गांव से कम से कम 20 बुजुर्ग आंदोलन स्थल पर रहेंगे. किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही समितियों को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे गांव-गांव जाकर बुजुर्गों को आंदोलन स्थल पर आने के लिए तैयार करें.

ये भी पढ़ें: शराब और रजिस्ट्री घोटाले की सीबीआई से जांच करवाएं- अभय चौटाला

किसान गंगा लाल गोयल कहते हैं कि हमारे लिए जितना आंदोलन जरूरी है उतनी ही फसल भी जरूरी है. हमने बुजुर्गों से कहा है कि प्रत्येक बुजुर्ग अपने साथ 4 बुजुर्गों को लेकर आएं. इस तरह हमारा आंदोलन चलता रहेगा.

केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ जिस समय आंदोलन शुरू हुआ था. उस समय समय गेहूं की फसल की बिजाई की गयी थी. लेकिन अब गेहूं की फसल लगभग पूरी तरह से तैयार होने वाली है. गेहूं के पौधे की बाल में दाना पड़ चुका है और कुछ दिनों बाद दाना पूरी तरह से पककर तैयार हो जायेगा. देखने वाली बात ये है कि गेहूं के पौधे की बाल में तो दाना पड़ चुका है..लेकिन इतने दिनों बाद भी सरकार के कानों में किसानों की आवाज के शब्द सुनाई नहीं पड़ रहे हैं.

ये भी पढ़ें: सिरसा में शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर को किसानों ने दिखाए काले झंडे

किसान रवि तेवतिया कहते हैं कि आंदोलन तो हमारे लिए 100 फीसदी जरूरी है और हमें ये लड़ाई जीतकर लौटना है. हम सभी अपनी जिम्मेदारी समझकर आंदोलन को नई दिशा दे रहे हैं. किसानों की रणनीति को देखकर तो ऐसा लगता है कि किसानों ने पूरी तरह से ठान ही लिया है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस कराकर ही दम लेना है.

नई रणनीति के तहत किसानों ने शायद महात्मा गांधी की संघर्ष समझौता संघर्ष की नीति के उलट संघर्ष रणनीति संघर्ष की नीति पर चलते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाते हुए आंदोलन को नई दिशा देने का मन बना लिया है. ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि ये लड़ाई लंबी चलेगी या सरकार कृषि कानूनों को वापस ले लेगी.

फरीदाबाद: तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन को 3 महीने से ज्यादा का समय हो गया है. अब किसानों के सामने आंदोलन को जारी रखने और फसल कटाई के काम को देखने की दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. इस समस्या से निपटने के लिए किसानों ने एक खास रणनीति बनाई है.

किसानों को आंदोलन भी जारी रखना है, फसल की कटाई का समय हो रहा है तो फसल की कटाई भी करनी है, अब तक तो आंदोलन स्थलों पर युवा किसान मोर्चा संभाले हुए थे. फसल कटाई के समय को देखते हुए अब आंदोलन की कमान युवा नहीं बल्कि बुजुर्ग संभालेंगे.. क्योंकि नई रणनीति के तहत ये तय हुआ है कि युवा आंदोलन स्थलों से लौटकर फसल की कटाई का काम करेंगे..

अब युवा काटेंगे गेहूं की फसल और बुजुर्ग संभालेंगे किसान आंदोलन की कमान

इस मुद्दे पर किसान ऋषि पाल चौहान कहते हैं कि हम गांव-गांव जाकर रणनिति बना रहे हैं. बुजुर्गों और युवाओं को समझा रहे हैं कि आंदोलन को कैसे आगे ले जाना है हम अपनी रणनिति के तहत काम कर रहे हैं.

किसानों की नई रणनीति में ये तय हुआ है कि प्रत्येक गांव में ऐसे बुजुर्ग जिनकी उम्र 60 साल से ज्यादा है. जो खेती बाड़ी का कोई भी काम करने में सक्षम नहीं है. अब ऐसे बुजुर्गों को प्रत्येक गांव से लाकर आंदोलन स्थल पर बैठाया जाएगा.

आंदोलन को चलाने के लिए बुजुर्गों की ड्यूटी लगाई जाएगी. प्रत्येक गांव से कम से कम 20 बुजुर्ग आंदोलन स्थल पर रहेंगे. किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही समितियों को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे गांव-गांव जाकर बुजुर्गों को आंदोलन स्थल पर आने के लिए तैयार करें.

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किसान गंगा लाल गोयल कहते हैं कि हमारे लिए जितना आंदोलन जरूरी है उतनी ही फसल भी जरूरी है. हमने बुजुर्गों से कहा है कि प्रत्येक बुजुर्ग अपने साथ 4 बुजुर्गों को लेकर आएं. इस तरह हमारा आंदोलन चलता रहेगा.

केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ जिस समय आंदोलन शुरू हुआ था. उस समय समय गेहूं की फसल की बिजाई की गयी थी. लेकिन अब गेहूं की फसल लगभग पूरी तरह से तैयार होने वाली है. गेहूं के पौधे की बाल में दाना पड़ चुका है और कुछ दिनों बाद दाना पूरी तरह से पककर तैयार हो जायेगा. देखने वाली बात ये है कि गेहूं के पौधे की बाल में तो दाना पड़ चुका है..लेकिन इतने दिनों बाद भी सरकार के कानों में किसानों की आवाज के शब्द सुनाई नहीं पड़ रहे हैं.

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किसान रवि तेवतिया कहते हैं कि आंदोलन तो हमारे लिए 100 फीसदी जरूरी है और हमें ये लड़ाई जीतकर लौटना है. हम सभी अपनी जिम्मेदारी समझकर आंदोलन को नई दिशा दे रहे हैं. किसानों की रणनीति को देखकर तो ऐसा लगता है कि किसानों ने पूरी तरह से ठान ही लिया है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस कराकर ही दम लेना है.

नई रणनीति के तहत किसानों ने शायद महात्मा गांधी की संघर्ष समझौता संघर्ष की नीति के उलट संघर्ष रणनीति संघर्ष की नीति पर चलते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाते हुए आंदोलन को नई दिशा देने का मन बना लिया है. ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि ये लड़ाई लंबी चलेगी या सरकार कृषि कानूनों को वापस ले लेगी.

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