फरीदाबाद : दिवाली रौशनी का त्यौहार है. दिवाली के शुरुआती दौर से दीयों को जलाने की परंपरा रही है. मार्केट में कई तरह के दीये मिल जाते हैं. पहले मिट्टी के दीये बिकते थे. फिर धीरे-धीरे उनकी जगह डिजाइनर दीयों ने ले ली. लेकिन धीरे-धीरे फिर से ये चलन बदल रहा है और पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए लोगों में फिर ईको-फ्रेंडली दिवाली का चलन बढ़ रहा है. ऐसे में मिट्टी के दीयों की डिमांड भी बढ़ रही है.
गोबर से बनाए दीये : लेकिन क्या आपने गोबर से बने दीये देखें या खरीदे हैं . सुनकर शायद हैरान होंगे, लेकिन ये कमाल हो रहा है फरीदाबाद में जहां विश्व हिंदू परिषद द्वारा संचालित श्री गोपाल गौशाला में गोबर से दीये बनाए जा रहे हैं. इन दीयों को मिट्टी से नहीं बल्कि गाय के गोबर से तैयार किया जाता है. ये दीये दिखने में बाकी दीयों जैसे ही लगते हैं. लेकिन जलाए जाने के बाद ये दीये घरों को महका देते हैं. वहीं जलने के बाद इनकी राख को पौधों में डालने से भी फायदा होता है. इनकी राख के इस्तेमाल से पौधों की ऊर्वरा शक्ति 10 गुना तक बढ़ जाती है.
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घर-आंगन महका दें : ईटीवी भारत से बातचीत में गौशाला के मुख्य पुजारी अनिल शास्त्री ने बताया कि वे पिछले 7 सालों से इस तरह गोबर से दीये बनाते आ रहे हैं. मार्केट में मिलने वाले मिट्टी के दीये हार्ड होते हैं और कई सालों तक गलते भी नहीं है. दिवाली में इस्तेमाल के बाद समझ नहीं आता कि इनका क्या किया जाए. ऐसे में गोबर के दीये बड़े कमाल के होते हैं. दिवाली पर जलाने के दौरान जहां ये दीये घर-आंगन महका देते हैं, वहीं जलने के बाद पौधों के काम आते हैं. वैसे भी शास्त्रों में गाय के गोबर को शुद्धिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. वहीं इसके धुएं से लोगों को परेशानी भी नहीं होती. इसी के चलते बाज़ार में इन दीयों की डिमांड बढ़ रही है.
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