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कोरोना के बाद ब्रेन फॉगिंग याददाश्त पर डाल रहा बुरा असर, एक्सपर्ट से जानें इसके लक्षण और सावधानियां - ब्रेन फॉग क्या है

कोरोना से ठीक होने के बाद कई लोगों में याददाश्त खोने की समस्या (post covid brain fogging) देखी जा रही है. इससे युवा भी प्रभावित हो रहे हैं. इसे भूलने की बीमारी डिमेंशिया से जोड़कर देखा जा रहा है. मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉ. तरुण शर्मा ने इसके लक्षण और सावधानी के बारे में बताया.

brain fogging after covid
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Published : Nov 9, 2021, 10:41 PM IST

फरीदाबाद: कोरोना से ठीक होने के बाद (post covid) अगर आप छोटी-छोटी बातों को भूल रहे हैं या फिर आपके लिए किसी बात को याद रखने में मुश्किल आ रही है, तो इसे ब्रेन फॉगिंग (brain fogging) कहते हैं. कोरोना से जंग जीतने के बाद अब ब्रेन फॉगिंग लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है. चिकित्सा जगत में न्यूरो से संबंधित बीमारियों को ब्रेन फॉगिंग का नाम दिया गया है. ब्रेन फॉगिंग की बात की जाए तो ज्यादा उम्र के लोग ही नहीं बल्कि युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं और खासतौर से वह लोग इसमें शामिल हैं जो कोरोना संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं.

इस बीमारी ने कोरोना संक्रमित मरीजों के मस्तिष्क पर भी असर डाला है. एक स्टडी के अनुसार यही वजह है कि कोरोना से ठीक हुए 30 फीसदी मरीजों में न्यूरो से संबंधित लक्षण देखे गए हैं. कोरोना के बाद कई लोगों में याददाश्त कम होने की समस्या भी देखी जा रही है. इसे भूलने की बीमारी से जोड़कर देखा जा रहा है. मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉ. तरुण शर्मा ने बताया कि कोरोना के प्रभावों को जानने के लिए अभी भी रिसर्च चल रही है.

कोरोना के बाद ब्रेन फॉगिंग याददाश्त पर डाल रहा बुरा असर, एक्सपर्ट से जानें इसके लक्षण और सावधानियां

ये हैं ब्रेन फॉगिंग के लक्षण- ब्रेन फॉगिंग में कई सारे प्रकार हैं, जिसमें किसी मरीज को याददाश्त से संबंधित समस्या आ रही है, किसी को बोलने में दिक्कत आती है या फिर कोई अपना ध्यान एक जगह नहीं रख पा रहा है. किसी मरीज को नींद नहीं आ रही है. किसी के काम करने की क्षमता कम हो गई है. ब्रेन फॉकिंग में न्यूरो से संबंधित बीमारियों जैसे सिरदर्द, स्वाद गंध का पता न चलना, ब्रेन स्ट्रोक, याददाश्त कमजोर होना, बोलने में परेशानी आदि बीमारियां शामिल हैं. ये सभी ब्रेन ब्रेन फॉगिंग का ही असर है. कोरोना के बाद में मस्तिष्क में जो न्यूरो लॉजिकल कॉम्प्लिकेशंस देखने को मिल रहे हैं वह दो प्रकार के हैं. जिनमें एक में मस्तिष्क के अंदर रक्त के थक्के जम जाने के होने के कारण हुई है. जिसके कारण याददाश्त की समस्या, बोलने में रुकावट और पैरालाइसिस की समस्या हो रही है.

दूसरे प्रकार में वह लोग शामिल हैं जो काफी समय तक आईसीयू के अंदर एडमिट रहे और साइक्लोजिकल स्ट्रेस से गुजरे. जिसके कारण याददाश्त कमजोर होने की समस्या सामने आ रही है. इस तरह के दर्जनभर से भी ज्यादा मरीज ओपीडी में आ रहे हैं. ब्रेन फॉगिंग की एक बड़ी वजह यह भी है कि जो मरीज लंबे समय तक अस्पताल में रहे हैं और ऑक्सीजन की कमी से जूझना पड़ा है, ऐसे में उनके मस्तिष्क को ऑक्सीजन की कमी के चलते काफी नुकसान पहुंचा है और उनमें भूलने की समस्या सहित दूसरी दिमागी बीमारियों के बढ़ने की ज्यादा आशंका है.

ये भी पढ़ें- सही उम्र में नहीं की बेबी प्लानिंग तो जन्म से ही बच्चा हो सकता है डाउन सिंड्रोम नाम के गंभीर बीमारी का शिकार

तीन से छह माह तक रह सकता है असर- कोविड-19 कारण याददाश्त खोने या कमजोर होने की परेशानी अब तक के अनुभव के अनुसार अस्थाई है. कोरोना से ठीक हुए लोगों में याददाश्त खोने की परेशानी बहुत सामान्य हो गई है. इस वजह से लोग पूरी नींद नहीं ले पाते. सोते वक्त अचानक नींद टूट जाती है और लोग बातें भूलने लगते हैं. यह समस्या डिमेंशिया की तरह ही होती है, लेकिन ज्यादातर लोगों में अस्थाई है. इससे पीड़ित व्यक्ति मस्तिष्क में फाग की तरह महसूस करने लगता है, जिससे यादें धुंधली पड़ने लगती हैं. यह कई मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद तीन से छह माह तक रह सकता है. बाद में यह धीरे-धीरे ठीक हो जाता है.

कोरोना से ठीक हुए लोगों में ब्रेन फागिंग व याददाश्त खोने की परेशानी का असल कारण अभी पता नहीं है, लेकिन कोरोना के गंभीर संक्रमण के कारण आक्सीजन की कमी होने से हाइपोक्सिया होता है. इस वजह से मस्तिष्क में भी आक्सीजन की कमी होती है. इससे मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है और कार्यक्षमता प्रभावित होती है. कुछ मरीजों के मस्तिष्क में ब्लड क्लाट की समस्या होती है. इसके साथ ही स्ट्रोक के मामले भी देखे गए हैं. इसके अलावा मस्तिष्क के अंदर सूजन (ब्रेन इंसेफेलाइटिस) के मामले भी देखे जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना संक्रमण की गंभीरता को कम करने वाले नए एंटीबॉडी की हुई पहचान

ब्रेन फॉगिंग से बचाव के उपाय- इससे बचाव का सबसे बड़ा उपाय यही है कि हम अपने मस्तिष्क को तनाव से दूर करें. नई प्रक्रिया अपने दिमाग के अंदर बनाएं और जो हो चुका है उसको भूल कर आगे बढ़ा जाए. शरीर को पूरी नींद दी जाए और सामाजिक गतिविधियों में खुद को सक्रिय रखें ताकि आपके मस्तिष्क की सक्रियता भी बढ़ती रहे. इसके लिए रोजाना कई प्रकार की एक्सरसाइज, योगा और हरी सब्जियों की संतुलित डाइट बेहद जरूरी है. जिन लोगों को ब्रेन स्ट्रोक हुआ है उन लोगों के लिए सबसे जरूरी है कि वह अपनी न्यूरो डॉक्टर से दवाइयां सुचारु रुप से चालू रखें.

जंक फूड व तली चीजों का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. खानपान में ऐसी चीजें शामिल होनी चाहिए जिनमें एंटीआक्सीडेंट्स अधिक हों. इसके अलावा अल्कोहल के इस्तेमाल से बचना चाहिए. यह सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है. इसके अलावा जो लोग कोरोना की बीमारी से ठीक हो रहे हैं वह भी छुट्टी मिलने के बाद अपने आप को यह न समझें कि वह पूरी तरह से फिट हैं. वह अपने डॉक्टर को नियमित रूप से अपना चेकअप कराते रहें.


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फरीदाबाद: कोरोना से ठीक होने के बाद (post covid) अगर आप छोटी-छोटी बातों को भूल रहे हैं या फिर आपके लिए किसी बात को याद रखने में मुश्किल आ रही है, तो इसे ब्रेन फॉगिंग (brain fogging) कहते हैं. कोरोना से जंग जीतने के बाद अब ब्रेन फॉगिंग लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है. चिकित्सा जगत में न्यूरो से संबंधित बीमारियों को ब्रेन फॉगिंग का नाम दिया गया है. ब्रेन फॉगिंग की बात की जाए तो ज्यादा उम्र के लोग ही नहीं बल्कि युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं और खासतौर से वह लोग इसमें शामिल हैं जो कोरोना संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं.

इस बीमारी ने कोरोना संक्रमित मरीजों के मस्तिष्क पर भी असर डाला है. एक स्टडी के अनुसार यही वजह है कि कोरोना से ठीक हुए 30 फीसदी मरीजों में न्यूरो से संबंधित लक्षण देखे गए हैं. कोरोना के बाद कई लोगों में याददाश्त कम होने की समस्या भी देखी जा रही है. इसे भूलने की बीमारी से जोड़कर देखा जा रहा है. मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉ. तरुण शर्मा ने बताया कि कोरोना के प्रभावों को जानने के लिए अभी भी रिसर्च चल रही है.

कोरोना के बाद ब्रेन फॉगिंग याददाश्त पर डाल रहा बुरा असर, एक्सपर्ट से जानें इसके लक्षण और सावधानियां

ये हैं ब्रेन फॉगिंग के लक्षण- ब्रेन फॉगिंग में कई सारे प्रकार हैं, जिसमें किसी मरीज को याददाश्त से संबंधित समस्या आ रही है, किसी को बोलने में दिक्कत आती है या फिर कोई अपना ध्यान एक जगह नहीं रख पा रहा है. किसी मरीज को नींद नहीं आ रही है. किसी के काम करने की क्षमता कम हो गई है. ब्रेन फॉकिंग में न्यूरो से संबंधित बीमारियों जैसे सिरदर्द, स्वाद गंध का पता न चलना, ब्रेन स्ट्रोक, याददाश्त कमजोर होना, बोलने में परेशानी आदि बीमारियां शामिल हैं. ये सभी ब्रेन ब्रेन फॉगिंग का ही असर है. कोरोना के बाद में मस्तिष्क में जो न्यूरो लॉजिकल कॉम्प्लिकेशंस देखने को मिल रहे हैं वह दो प्रकार के हैं. जिनमें एक में मस्तिष्क के अंदर रक्त के थक्के जम जाने के होने के कारण हुई है. जिसके कारण याददाश्त की समस्या, बोलने में रुकावट और पैरालाइसिस की समस्या हो रही है.

दूसरे प्रकार में वह लोग शामिल हैं जो काफी समय तक आईसीयू के अंदर एडमिट रहे और साइक्लोजिकल स्ट्रेस से गुजरे. जिसके कारण याददाश्त कमजोर होने की समस्या सामने आ रही है. इस तरह के दर्जनभर से भी ज्यादा मरीज ओपीडी में आ रहे हैं. ब्रेन फॉगिंग की एक बड़ी वजह यह भी है कि जो मरीज लंबे समय तक अस्पताल में रहे हैं और ऑक्सीजन की कमी से जूझना पड़ा है, ऐसे में उनके मस्तिष्क को ऑक्सीजन की कमी के चलते काफी नुकसान पहुंचा है और उनमें भूलने की समस्या सहित दूसरी दिमागी बीमारियों के बढ़ने की ज्यादा आशंका है.

ये भी पढ़ें- सही उम्र में नहीं की बेबी प्लानिंग तो जन्म से ही बच्चा हो सकता है डाउन सिंड्रोम नाम के गंभीर बीमारी का शिकार

तीन से छह माह तक रह सकता है असर- कोविड-19 कारण याददाश्त खोने या कमजोर होने की परेशानी अब तक के अनुभव के अनुसार अस्थाई है. कोरोना से ठीक हुए लोगों में याददाश्त खोने की परेशानी बहुत सामान्य हो गई है. इस वजह से लोग पूरी नींद नहीं ले पाते. सोते वक्त अचानक नींद टूट जाती है और लोग बातें भूलने लगते हैं. यह समस्या डिमेंशिया की तरह ही होती है, लेकिन ज्यादातर लोगों में अस्थाई है. इससे पीड़ित व्यक्ति मस्तिष्क में फाग की तरह महसूस करने लगता है, जिससे यादें धुंधली पड़ने लगती हैं. यह कई मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद तीन से छह माह तक रह सकता है. बाद में यह धीरे-धीरे ठीक हो जाता है.

कोरोना से ठीक हुए लोगों में ब्रेन फागिंग व याददाश्त खोने की परेशानी का असल कारण अभी पता नहीं है, लेकिन कोरोना के गंभीर संक्रमण के कारण आक्सीजन की कमी होने से हाइपोक्सिया होता है. इस वजह से मस्तिष्क में भी आक्सीजन की कमी होती है. इससे मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है और कार्यक्षमता प्रभावित होती है. कुछ मरीजों के मस्तिष्क में ब्लड क्लाट की समस्या होती है. इसके साथ ही स्ट्रोक के मामले भी देखे गए हैं. इसके अलावा मस्तिष्क के अंदर सूजन (ब्रेन इंसेफेलाइटिस) के मामले भी देखे जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना संक्रमण की गंभीरता को कम करने वाले नए एंटीबॉडी की हुई पहचान

ब्रेन फॉगिंग से बचाव के उपाय- इससे बचाव का सबसे बड़ा उपाय यही है कि हम अपने मस्तिष्क को तनाव से दूर करें. नई प्रक्रिया अपने दिमाग के अंदर बनाएं और जो हो चुका है उसको भूल कर आगे बढ़ा जाए. शरीर को पूरी नींद दी जाए और सामाजिक गतिविधियों में खुद को सक्रिय रखें ताकि आपके मस्तिष्क की सक्रियता भी बढ़ती रहे. इसके लिए रोजाना कई प्रकार की एक्सरसाइज, योगा और हरी सब्जियों की संतुलित डाइट बेहद जरूरी है. जिन लोगों को ब्रेन स्ट्रोक हुआ है उन लोगों के लिए सबसे जरूरी है कि वह अपनी न्यूरो डॉक्टर से दवाइयां सुचारु रुप से चालू रखें.

जंक फूड व तली चीजों का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. खानपान में ऐसी चीजें शामिल होनी चाहिए जिनमें एंटीआक्सीडेंट्स अधिक हों. इसके अलावा अल्कोहल के इस्तेमाल से बचना चाहिए. यह सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है. इसके अलावा जो लोग कोरोना की बीमारी से ठीक हो रहे हैं वह भी छुट्टी मिलने के बाद अपने आप को यह न समझें कि वह पूरी तरह से फिट हैं. वह अपने डॉक्टर को नियमित रूप से अपना चेकअप कराते रहें.


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