चरखी दादरी: 70 के दशक में जनता पार्टी की ओर से भिवानी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए चरखी दादरी के गांव डालावास की चंद्रावती ने प्रदेश के कद्दावर नेता और पूर्व सीएम बंसीलाल को करारी शिकस्त देते हुए हरियाणा की पहली महिला सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया था.
चंद्रावती ने अपने जीवन में 14 चुनाव लड़े, संसदीय सचिव, विधायक, एमपी व राज्यपाल बनी लेकिन मुख्यमंत्री बनने की टीस उनके मन में बनी रही. हालांकि चंद्रावती का मानना है कि बीते दशकों के दौर में राजनीति स्वच्छ व स्पष्टवादिता थी. अब के दौर में राजनीति सिर्फ भ्रष्टाचार, वंशवाद व स्वार्थ की रह गई है.
हरियाणा बनने के बाद भिवानी जिला हिसार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था. भिवानी लोकसभा क्षेत्र बनने के बाद पहली सांसद बनने का गौरव पांडिचेरी की पूर्व उप राज्यपाल चंद्रावती को मिला. 1977 के इस लोकसभा चुनाव में चंद्रावती के सामने प्रदेश के कद्दावर नेता बंसीलाल थे लेकिन जनता ने चंद्रावती पर इस कदर विश्वास जताया कि उन्होंने बंसीलाल को बुरी तरह परास्त कर दिया. हालांकि अगले ही चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल ने इस हार का बदला ले लिया. बंसीलाल परिवार व उनके समर्थकों ने भिवानी लोकसभा क्षेत्र पर सर्वाधिक सात बार चुनाव जीतकर वर्चस्व बनाए रखा है.
आजादी के बाद से ही चंद्रावती महिला सशक्तीकरण की एक बड़ी मिसाल बनी हुई हैं. उस दौर में जब महिलाएं कई तरह की बंदिशें झेल रही थीं, उन्होंने न केवल घर की दहलीज को लांघ स्नातक से लेकर कानून तक की पढ़ाई की, बल्कि राजनीति में सक्रिय भूमिका भी निभाई.
बंसीलाल को एक लाख एक हजार वोट से हराया था
चुनाव आयोग के रिकार्ड के मुताबिक 1977 में चंद्रावती ने 2 लाख 89 हजार 135 वोट हासिल किए थे, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल को 1 लाख 27 हजार 893 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था. माना जा रहा है कि आपातकाल का फायदा चंद्रावती को मिला और वे बीएलडी की टिकट पर 67.62 प्रतिशत वोट लेकर जीतने में कामयाब रहीं. हालांकि सन 1980 के लोकसभा चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल ने 1 लाख 94 हजार 437 वोट हासिल कर जेएनपी के बलवंतराय तायल को हराने में कामयाबी हासिल की. इस चुनाव में चंद्रावती को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा.
हाई कोर्ट की पहली महिला अधिवक्ता थीं चंद्रावती
भिवानी की पहली सांसद चंद्रावती जिला ही नहीं, आस-पास के एरिया में पहली स्नातक योग्यता वाली महिला होने का गौरव हासिल किए हुए थीं. इसके साथ ही वह पंजाब व हरियाणा बार में पहली महिला अधिवक्ता भी थीं. 3 सितंबर 1928 को जन्मी चंद्रावती ने संगरूर से स्नातक की थी, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की.
नहीं किया आत्मसम्मान से समझौता
विशेष बातचीत में चंद्रावती ने बताया कि उन्होंने पहला चुनाव बाढड़ा से सन 1954 में लड़ा था और जीत हासिल की. उस समय हरियाणा का गठन नहीं हुआ था और पेप्सू में ज्ञान सिंह राणेवाला की सरकार थी. सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी होने की वजह से राणेवाला ने भाई को बुलाकर टिकट दे दी थी.
सन 1962 में बाढड़ा को दादरी में शामिल कर दिया गया था और एक बार फिर से जीती. सन 1977 में लोकसभा चुनाव भिवानी सीट से लड़ा था. इस चुनाव में जीतने के बाद केंद्र में मंत्री भी बनाने के लिए नाम फाइनल कर दिया गया था लेकिन उस समय हरियाणा के दिग्गज नेताओं ने विरोध कर दिया. बकौल चंद्रावती कुछ बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद कभी भी उन्होंने अपने आत्म सम्मान से कोई समझौता नहीं किया.
वे कहती हैं कि शुरू से ही मैंने सख्त जिंदगी जी और ईमानदारी से जनता की सेवा की. यहीं वजह रही कि आज भी कोई उन पर उंगली नहीं उठा सकता है. पूर्व उप राज्यपाल चंद्रावती बताती हैं कि पेंशन से ही परिवार का पालन पोषण किया और खुद के मकान को भी पिता हजारीलाल के नाम से ट्रस्ट बनाकर ट्रस्ट के नाम कर दिया है.
'तब नहीं था इतना भ्रष्टाचार'
चंद्रावती ने बताया कि आज की राजनीति और तब की राजनीति में बहुत ज्यादा अंतर महसूस कर रही हैं. उस समय राजनीति में इतना भ्रष्टाचार व्याप्त नहीं था. ईमानदार नेता का साफ पता चल जाता था, लेकिन आज हालात बहुत खराब हैं.