चरखी दादरी: जब भी देश की सरहदें खतरे में होती है तो हमारे जवान अपनी सरहदों की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देते हैं, ताकि देश में रहने वाले सभी लोग शांति पूर्वक रह सके. भले ही कारगिल युद्ध के शहीदों के आश्रितों को केंद्र व राज्य सरकारों और विभिन्न निजी प्रतिष्ठानों ने पर्याप्त मान सम्मान और आर्थिक सहायता, रोजगार के साधन मुहैया करवाएं हों, लेकिन आज भी इस युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुतियां देने वाले जवानों के परिवार इंसाफ के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
शहीद की विधवाओं और उनके आश्रितों का कहना है कि जो मान-सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिला है. सिर्फ शहीदी दिवस या अन्य शहीदों को लेकर होने वाले कार्यक्रमों में बुलाते हैं और भीड़ दिखाकर सहयोग देने का आश्वासन देकर भूल जाते हैं. वहीं शहीद हुए जवानों की पत्नियों को तो कुछ मिल गया, लेकिन माता-पिता पेंशन के लिए चक्कर काट रहे हैं. शहीदों को सम्मान दिलाने के लिए जहां कई सामाजिक संगठन आगे आए तो केंद्र व प्रदेश सरकार की ओर से भी शहीदों को सम्मान के साथ-साथ हक दिलाने के लिए हर बार वायदे किए गए, लेकिन ये वायदे ही बनकर रह गए. शहीद आश्रितों का कहना है कि उनको सरकार की ओर से दी जाने वाले सुविधाएं ही नहीं मिली हैं और वो सुविधा और सम्मान के लिए 20 वर्षों से भटक रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुध नहीं लेने को तैयार नहीं है.
दादरी जिले के ये जवाब शहीद हुए थे
कारगिल में युद्ध में शहीद होने वाले जवानों में गांव बलकरा के वीर चक्र विजेता रणधीर सिंह, मौड़ी के हवलदार राजबीर सिंह, रावलधी के हवलदार राजकुमार, चरखी से सिपाही सुरेश कुमार, महराना से फौजी कुलदीप सिंह, शामिल हैं. इन जवानों ने कारगिल युद्ध के दौरान अपना लोहा मनवाया और देश के लिए शहीद हुए.