चंडीगढ़: विश्व में ऐसी कई बीमारियां देखने को मिल रही है. जो पहले कभी नहीं देखी गई. वहीं इन बीमारियों के बारे में लोगों को पता ही नहीं है. वहीं भारत में इन दुर्लभ बीमारियों यानी रेयर डिजीज को लेकर लोगों में आज के समय में जागरूकता की कमी है. इसे देखते हुए हर साल 28 फरवरी को रेयर डिजीज डे के रूप में मनाया जाता है.
रेयर डिजीज के लक्ष्ण: इस दिन का उद्देश्य है लोगों को रेयर डिजीज के बारे में जागरूक करना. इस दुर्लभ रोग दिवस यानी रेयर डिजीज डे की थीम शेयर योर कलर तय की गई है. बता दें कि दुर्लभ रोगों की असल वजह वंशागत मानी जाती है. वहीं कुछ मामलों में देखा गया है कि बैक्टीरिया, वायरस, इंफेक्शन, एलर्जी इसके कारणों में से एक हैं. वहीं आधे से ज्यादा दुर्लभ रोग के मामले बच्चों में देखे जाते रहे हैं.
बच्चों को निशाना बनाता है रेयर डिजीज: वहीं अक्सर बच्चों में इसके अलग-अलग लक्षण देखे गए हैं. लेकिन कई बार लोगों में इसक बिमारी के लक्ष्ण नजर नहीं आते. यही कारण होता है कि इन रोगों का पता लगाने में देर हो जाती है और बाद में इलाज कराने में दिक्कत आती है. रेयर डिजीज व्यक्ति में अक्सर वंशागत तौर पर अधिक देखा जाता है. जैसे की एक ही परिवार में होने वाली बीमारियां आगे-आगे बच्चों तक फैली है. यानी जींस के द्वारा ये बीमारी परिवार के सदस्यों में हो सकती है. अगर उत्तर भारत की बात करें तो हरियाणा और जम्मू कश्मीर ऐसे राज्य है, जहां परिवारों में ही शादियां होती हैं और परिवार में किसी को जेनेटिक तौर पर हुई बीमारी आगे तक पहुंच जाती है.
क्या है रेयर डिजीज और इसकी पहचान क्या है: इसके बारे में चंडीगढ़ पीजीआई के प्रोफेसर से ईटीवी भारत ने बातचीत की. पीजीआई के प्रोफेसर नवीन सांख्यान पेडिअट्रिशन ने बताया कि रेयर डिजीज पूरा जीवन प्रभावित कर सकता है. ये रोग न केवल व्यक्ति की क्षमता को खत्म कर सकते हैं, बल्कि उसके लिए जानलेवा भी साबित हो सकते है. दुर्लभ रोगों के उदाहरण की बात की जाए तो सिस्टिक फाइब्रोसिस एक ऐसी बीमारी है, जो सांस या पाचन तंत्र को प्रभावित करती है. इससे अलग अन्य बीमारियों में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी आदि शामिल हैं.
बीमारी का नहीं अंत: उन्होंने बताया यह बीमारियां एक ही परिवार के वंश से होती हुई आगे तक फैलती है. वहीं इस बीमारी को पहचानना मुश्किल नहीं है. पर इस बीमारी को एक वंश तक ठीक करना जरूरी है. क्योंकि इस बीमारी का कोई अंत नहीं है. आज के समय में पीजीआई में इसका इलाज भी संभव किया जा रहा है. क्योंकि इन बीमारियों के इलाज में लंबा समय और रिसर्च चलती है. पीजीआई ने इन सभी पड़ावों को पार करते हुए आम व्यक्ति के लिए इलाज संभव बनाया है.
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चंडीगढ़ PGI में इलाज संभव: पीजीआई में रोज ही नए रेयर डिजीज के मरीज आते हैं. एक साल में कम से कम 500 के करीब लोग अपना इलाज पूरा करवा कर जाते हैं. क्योंकि इस इलाज में सालों तक का समय लग सकता है. तो कहीं तो इसे महीनों में ही ठीक करते हुए भेजा जाता है. लेकिन इस बीमारी को जड़ से खत्म करना थोड़ा मुश्किल है. वहीं दूसरी ओर इसका इलाज भी कुछ हजारों से शुरू होता हुआ करोड़ के आसपास तक चला जाता है. जिसके लिए सिर्फ धैर्य रखना ही जरूरी होता है.