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दीपावली 2022: सिर्फ इतना सा है ग्रीन और सामान्य पटाखों में अंतर, जानिए - crackers on Deepawali

दीपावली 2022 को लेकर राज्य सरकार की ओर से हर बार पटाखों को लेकर हिदायत दी जाती है. इसके साथ ही ग्रीन पटाखों पर बल दिया जाता है. लेकिन ये जानना आपके लिए भी जरूरी है कि ग्रीन और सामान्य पटाखों में अंतर क्या होता है.

ग्रीन और सामान्य पटाखों में अंतर
ग्रीन और सामान्य पटाखों में अंतर
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Published : Oct 23, 2022, 7:53 AM IST

चंडीगढ़: दीपावली 2022 (Deepawali festival 2022) आते ही पटाखों को जलाने को लेकर तरह-तरह के दिशा निर्देश राज्य सरकारों की ओर से जारी कर दिए जाते हैं. इस बार भी सरकार की ओर से ग्रीन पटाखों को लेकर लोगों को दीपावली में जलाने की छूट दी गई है. लेकिन बहुत सारे लोगों में अभी भी ग्रीन पटाखे और सामान्य पटाखों लेकर कन्फ्यूजन बनी रहती है. तो इसलिए ग्रीन और सामान्य पटाखों में क्या अंतर है इसे जानना बेहद जरूरी (crackers on Deepawali) है. साथ ही ये भी जानना जरूरी है कि क्या ग्रीन पटाखे प्रदूषण को कम करते हैं या इसे जलाने से प्रदूषण नहीं फैलता है.



ग्रीन और सामान्य पटाखों में क्या अंतर होता है? (difference between green and normal crackers) डॉ. सुमन मोर का कहना है कि दीपावली के मौके पर लोग पटाखे जलाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं. उनके मुताबिक सामान्य पटाखों से हानिकारक केमिकल का रिसाव होता है और वे हवा में आ जाने से वातावरण को प्रदूषित करते हैं. साथ ही इसका हमारी सेहत पर भी असर पड़ता है. उनका कहना है कि उसके विकल्प के तौर पर ग्रीन क्रैकर्स को देखा जा रहा है, क्योंकि इसमें केमिकल की मात्रा भी कम होती है साथ ही इससे ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है. इससे पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचाता है.

ग्रीन और सामान्य पटाखों में अंतर

ग्रीन क्रैकर्स तीन तरह के होते हैं: उनके मुताबिक ग्रीन क्रैकर्स तीन तरह के होते हैं जिसमें स्वास, स्टार और सफल. डॉ. सुमन मोर का कहना है कि यह सभी पटाखे अपने तरीके से काम करते हैं. इनमें कम से कम 30% तक प्रदूषण कम होता (How to recognize green crackers) है. जिसे हम कहीं ना कहीं प्रदूषण के स्तर को कम करने में इनके जरिए सफल होते हैं. उन्होंने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि ग्रीन क्रैकर्स में किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं होता है. हालांकि इससे प्रदूषण के स्तर को कम करने में सहायता जरूर मिलती है.

यह भी पढ़ें-रोहतक में पराली जलाने पर होगी कार्रवाई, नंबरदार और किसानों पर लगेगा 15 हजार तक जुर्माना

प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा: डॉ. रविंद्र खैरवाल ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से ठंड बढ़ी है, जिससे एटमॉस्फेयर की बाउंड्री लेयर थोड़ा नीचे आई है. जबकि जो धुआं है वह अभी भी उसी स्तर पर हो रहा है. इसके साथ ही दीपावली के आसपास गाड़ियों की मूवमेंट भी ज्यादा हो जाती है, जिससे प्रतिदिन गाड़ी चलाने के किलोमीटर में वृद्धि हो जाती है. उससे होने वाले पॉल्यूशन की मात्रा भी बढ़ जाती है. उनका कहना है कि शहरों में बढ़ने वाले प्रदूषण में योगदान पहले उनके अपनी प्रदूषण का होता है. डॉ. रविंद्र खैरवाल का कहना है कि शहरों में प्रदूषण पूरे साल रहता है, लेकिन पराली और दीपावली अक्टूबर और नवंबर में होती है तो ज्यादातर लोग इसको प्रदूषण की वजह मानते हैं. उनका कहना है कि सरकार की ओर से भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, सरकार का लक्ष्य 2024 तक 30 से 40 फीसदी प्रमुख शहरों में पॉल्यूशन की मात्रा को कम करना है.



प्रदूषण बढ़ने के कारण: डॉ. रविंद्र खैरवाल का कहना है कि प्रदूषण बढ़ने की तीन बड़े कारण होते हैं. चाहे वो किसी भी स्रोत से निकल रहा हो. पहला ज्योग्राफिकल कंडीशन, दूसरा एटमॉस्फेयर में होने वाली एक्टिविटी, तीसरा मौसम. उन्होंने कहा कि निश्चिततौर पर इसका भी असर होता है, क्योंकि मौसम का दबाव ठंड में बढ़ जाता है. ऐसे में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है. साथ ही जिस क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ रहा है उसकी ज्योग्राफिकल कंडीशन काफी हद तक निर्भर करती है. यानी मौसम और ज्योग्राफिकल कंडीशन मिलकर पॉल्यूशन के स्तर को निर्धारित करते हैं.

यह भी पढ़ें-दीपावली महोत्सव 2022 में छात्रों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर जीता सबका मन

सामान्य और ग्रीन पटाखों में पार्टिकल का इस्तेमाल: डॉ. रविंद्र खैरवाल ने बताया कि जो सामान्य पटाखे होते हैं उनमें टॉक्सिक मैटल इस्तेमाल होता है. इन पटाखों में कई तरह की प्रोडक्ट का इस्तेमाल होता है, जैसे-फ्यूल, बायडिंग मैटेरियल और बारूद. ग्रीन क्रेकर को बनाने में इन तीनों में बदलाव किया गया है. पटाखों के सेल साइज को भी छोटा कर दिया गया है. उसमें नॉन टॉक्सिक मैटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही रिसायकिल मैटेरियल को इस्तेमाल में लाया जाता है.

सीड क्रैकर का इस्तेमाल: डॉ. रविंद्र खैरवाल का कहना है कि बाजारों में अब सीड क्रैकर भी आ रहे हैं, जिसमें तरह-तरह की सीड इस्तेमाल किए जाते हैं. और जब हम उसका इस्तेमाल करते हैं तो वे जमीन में फैल जाते हैं जिससे एक तरह से वृक्षारोपण भी हो जाता है. इस तरह के क्रैकर से अलग-अलग तरह के पौधे भी उगाए जा सकते हैं. इससे हम दीपावली को इको फ्रेंडली बना सकते हैं.

चंडीगढ़: दीपावली 2022 (Deepawali festival 2022) आते ही पटाखों को जलाने को लेकर तरह-तरह के दिशा निर्देश राज्य सरकारों की ओर से जारी कर दिए जाते हैं. इस बार भी सरकार की ओर से ग्रीन पटाखों को लेकर लोगों को दीपावली में जलाने की छूट दी गई है. लेकिन बहुत सारे लोगों में अभी भी ग्रीन पटाखे और सामान्य पटाखों लेकर कन्फ्यूजन बनी रहती है. तो इसलिए ग्रीन और सामान्य पटाखों में क्या अंतर है इसे जानना बेहद जरूरी (crackers on Deepawali) है. साथ ही ये भी जानना जरूरी है कि क्या ग्रीन पटाखे प्रदूषण को कम करते हैं या इसे जलाने से प्रदूषण नहीं फैलता है.



ग्रीन और सामान्य पटाखों में क्या अंतर होता है? (difference between green and normal crackers) डॉ. सुमन मोर का कहना है कि दीपावली के मौके पर लोग पटाखे जलाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं. उनके मुताबिक सामान्य पटाखों से हानिकारक केमिकल का रिसाव होता है और वे हवा में आ जाने से वातावरण को प्रदूषित करते हैं. साथ ही इसका हमारी सेहत पर भी असर पड़ता है. उनका कहना है कि उसके विकल्प के तौर पर ग्रीन क्रैकर्स को देखा जा रहा है, क्योंकि इसमें केमिकल की मात्रा भी कम होती है साथ ही इससे ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है. इससे पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचाता है.

ग्रीन और सामान्य पटाखों में अंतर

ग्रीन क्रैकर्स तीन तरह के होते हैं: उनके मुताबिक ग्रीन क्रैकर्स तीन तरह के होते हैं जिसमें स्वास, स्टार और सफल. डॉ. सुमन मोर का कहना है कि यह सभी पटाखे अपने तरीके से काम करते हैं. इनमें कम से कम 30% तक प्रदूषण कम होता (How to recognize green crackers) है. जिसे हम कहीं ना कहीं प्रदूषण के स्तर को कम करने में इनके जरिए सफल होते हैं. उन्होंने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि ग्रीन क्रैकर्स में किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं होता है. हालांकि इससे प्रदूषण के स्तर को कम करने में सहायता जरूर मिलती है.

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प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा: डॉ. रविंद्र खैरवाल ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से ठंड बढ़ी है, जिससे एटमॉस्फेयर की बाउंड्री लेयर थोड़ा नीचे आई है. जबकि जो धुआं है वह अभी भी उसी स्तर पर हो रहा है. इसके साथ ही दीपावली के आसपास गाड़ियों की मूवमेंट भी ज्यादा हो जाती है, जिससे प्रतिदिन गाड़ी चलाने के किलोमीटर में वृद्धि हो जाती है. उससे होने वाले पॉल्यूशन की मात्रा भी बढ़ जाती है. उनका कहना है कि शहरों में बढ़ने वाले प्रदूषण में योगदान पहले उनके अपनी प्रदूषण का होता है. डॉ. रविंद्र खैरवाल का कहना है कि शहरों में प्रदूषण पूरे साल रहता है, लेकिन पराली और दीपावली अक्टूबर और नवंबर में होती है तो ज्यादातर लोग इसको प्रदूषण की वजह मानते हैं. उनका कहना है कि सरकार की ओर से भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, सरकार का लक्ष्य 2024 तक 30 से 40 फीसदी प्रमुख शहरों में पॉल्यूशन की मात्रा को कम करना है.



प्रदूषण बढ़ने के कारण: डॉ. रविंद्र खैरवाल का कहना है कि प्रदूषण बढ़ने की तीन बड़े कारण होते हैं. चाहे वो किसी भी स्रोत से निकल रहा हो. पहला ज्योग्राफिकल कंडीशन, दूसरा एटमॉस्फेयर में होने वाली एक्टिविटी, तीसरा मौसम. उन्होंने कहा कि निश्चिततौर पर इसका भी असर होता है, क्योंकि मौसम का दबाव ठंड में बढ़ जाता है. ऐसे में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है. साथ ही जिस क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ रहा है उसकी ज्योग्राफिकल कंडीशन काफी हद तक निर्भर करती है. यानी मौसम और ज्योग्राफिकल कंडीशन मिलकर पॉल्यूशन के स्तर को निर्धारित करते हैं.

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सामान्य और ग्रीन पटाखों में पार्टिकल का इस्तेमाल: डॉ. रविंद्र खैरवाल ने बताया कि जो सामान्य पटाखे होते हैं उनमें टॉक्सिक मैटल इस्तेमाल होता है. इन पटाखों में कई तरह की प्रोडक्ट का इस्तेमाल होता है, जैसे-फ्यूल, बायडिंग मैटेरियल और बारूद. ग्रीन क्रेकर को बनाने में इन तीनों में बदलाव किया गया है. पटाखों के सेल साइज को भी छोटा कर दिया गया है. उसमें नॉन टॉक्सिक मैटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही रिसायकिल मैटेरियल को इस्तेमाल में लाया जाता है.

सीड क्रैकर का इस्तेमाल: डॉ. रविंद्र खैरवाल का कहना है कि बाजारों में अब सीड क्रैकर भी आ रहे हैं, जिसमें तरह-तरह की सीड इस्तेमाल किए जाते हैं. और जब हम उसका इस्तेमाल करते हैं तो वे जमीन में फैल जाते हैं जिससे एक तरह से वृक्षारोपण भी हो जाता है. इस तरह के क्रैकर से अलग-अलग तरह के पौधे भी उगाए जा सकते हैं. इससे हम दीपावली को इको फ्रेंडली बना सकते हैं.

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