चंडीगढ़: ईटीवी भारत हरियाणा की विशेष रिपोर्ट 'हरियाणा के मुख्यमंत्री' में हम बात कर रहे हैं भारत के उप पूर्व प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल की. 25 सितंबर 1914 को सिरसा के तेजाखेड़ा गांव में जन्मे इस 'लाल' को हरियाणा का निर्माता भी कहा जाता है. बताया जाता है कि ताऊ देवी लाल ने स्कूल से दसवीं की पढ़ाई छोड़कर साल 1929 से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था. चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया.
नमक खरीदने पर स्कूल से निकाल दिया गया
सन् 1930 में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द की तरफ से बनाई गई नमक की पुड़िया खरीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया खरीदने पर चौ. देवीलाल को हाई स्कूल से निकाल दिया गया. इसी घटना से प्रभावित होकर देवी लाल ने स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. देवी लाल ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन-आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया. इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं.
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ठेठ लठेत ही रहे देवी लाल
वैसे तो देवी लाल 1930 से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे, लेकिन उनका अंदाज ठेठ ग्रामीणों वाला ही रहा, उनके समर्थक उन्हें खेतिहर मजदूरों और गरीब गुरबों का मसीहा भी कहते थे. देश का अभिजात्य तबका उनको भदेस, दबंग और लठैत नेता की तरह ही देखता रहा. 1987 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव में देवीलाल ने 90 में से 85 सीटें हासिल कर कांग्रेस को महज पांच सीटों पर ला दिया था. उनकी इस कामयाबी के बाद ही ये रुपरेखा बनने लगी थी कि देवीलाल केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस विरोधी मोर्चे का चेहरा हो सकते हैं.
देवी लाल कैसे बन गए 'ताऊ' ?
देवी लाल को ताऊ के नाम से जाना जाता है. ये उपनाम मिलने की भी एक कहानी है. साल 1956 में तत्कालीन संयुक्त पंजाब में वह मुख्य संसदीय सचिव भी रहे. हरियाणा बनने से पहले संयुक्त पंजाब की विधानसभा में हरियाणा के पिछड़े क्षेत्रों में विकास के लिए संघर्ष किया. कहा ये भी जाता है कि इन्ही वजहों से 1966 में हरियाणा का अलग राज्य के रूप में गठन हुआ. गठन के बाद देवीलाल किसानों से मिलने गांव-गांव और चौपालों तक जाने लगे. गांव के एक-एक आदमी को नाम से याद रखते थे. लोगों से उनकी परेशानिया सुनते और समाधान बताते, गांव में चारपाई पर बैठकर हुक्का पीते-पीते, यही वजह थी कि उन्हें लोग ताऊ कहने लगे... और वो ताऊ देवी लाल के नाम से मशहूर हो गए.
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किंग मेकर ताऊ देवी लाल!
शायद भारत में ऐसा कोई नेता रहा है जो बहुमत से संसदीय दल का नेता मान लिए जाने के बाद भी अपनी जगह किसी दूसरे शख़्स को प्रधानमंत्री बना देता हो, लेकिन हरियाणा के चौधरी देवीलाल ने ये कर दिखाया था. पहली दिसंबर, 1989 को आम चुनाव के बाद नतीजे आने के बाद संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक हुई और उस बैठक में विश्वनाथ सिंह के प्रस्ताव और प्रस्ताव पर चंद्रशेखर के समर्थन से चौधरी देवीलाल को संसदीय दल का नेता मान लिया गया था. देवीलाल धन्यवाद देने के लिए खड़े ज़रूर हुए, लेकिन सहज भाव से उन्होंने कहा, 'मैं सबसे बुजुर्ग हूं, मुझे सब ताऊ कहते हैं, मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप को सौंपता हूं.' इस वाक्ये से सभी हैरान थे... और यही वजह है कि देवी लाल को देश का सबसे बड़ा किंग मेकर कहा जाने लगा.
1996 में की इनेलो की स्थापना
कुछ इस तरह ताऊ देवी लाल का प्रभाव जितना हरियाणा में था उतना ही देश की राजनीति में भी था. चौ. देवीलाल 1971 तक कांग्रेस पार्टी में रहे. इसके बाद 1977 में उन्होंने जनता पार्टी का दामन थाम लिया. यहां भी जब कुछ ठीक नहीं लगा, तो वे जनता दल में चले गए. 1988 से लेकर 1990 तक वे जनता दल के साथ रहे, लेकिन यहां भी वे ज्यादा दिन नहीं टिके. अगले छह साल तक देवीलाल ने समाजवादी जनता पार्टी को संभाला. 1996 में उन्होंने इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना कर दी.
...और बिखर गया ताऊ का कुनबा!
एक वो दौर भी था जब हरियाणा की सियासत में इस परिवार की तूती बोलती थी. इनेलो पार्टी के दम पर ही ओपी चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. आज 23 साल के बाद उनकी विरासत संभाल रहा चौटाला परिवार दो धड़ों में बंट गया है. इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथों में है तो भतीजे दुष्यंत चौटाला जेजेपी बनाकर चुनावी मैदान में हैं. दोनों चौधरी देवीलाल के नाम पर अपनी सियासी नैया पार लगाना चाहते हैं. ऐसे में अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए ताऊ चौधरी देवीलाल का कुनबा संघर्ष कर रहा है.