चंडीगढ़: हरियाणा में अनुसूचित जाति-पिछड़ा वर्ग के छात्रों को स्कॉलरशिप की आड़ में हुए करोड़ों के घोटाले की जड़ें गहराई तक फैली हैं. साल 1981 में एससी-बीसी छात्रों के लिए शुरू हुई पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप को लेकर पहले जहां तीन दशक से अधिक समय तक शिक्षण संस्थाओं ने जमकर फर्जीवाड़ा किया, वहीं पांच साल से ऑनलाइन सिस्टम के बावजूद यह खेल थमा नहीं है.
इस मामले में बुधवार को हाई कोर्ट में विजिलेंस ने स्टेटस रिपोर्ट दायर कर कहा कि यह घोटाला 16 जिलों तक फैला है और लगभग 40 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला है. हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
'30 से 40 प्रतिशत छात्र फर्जी'
हरियाणा में अनुसूचित जाति-पिछड़ा वर्ग के छात्रों को दी जाने वाली स्कॉलरशिप में सामने आए घोटाले में राज्य सतर्कता ब्यूरो की अभी तक की जांच में 30 से 40 फीसद छात्र फर्जी पाए जा चुके हैं, जबकि फर्जी संस्थानों की संख्या भी 25 से 30 फीसद के बीच है.
'घोटाले के लिए फर्जी संस्थान भी बने'
गोलमाल के खुलासे के बावजूद लाभार्थियों के आधार नंबर से छेड़छाड़ कर फर्जी खातों में पैसे हस्तांतरित कर पात्र छात्रों की राशि पर डाका पूरी तरह थमा नहीं है. हजारों छात्रों के आधार नंबर और खाता नंबर बदलकर अन्य खातों में पैसा जमा किया गया. घोटालेबाजों की तरफ से फर्जीवाड़ा करने के लिए फर्जी संस्थान तक बना रखे हैं.
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'सीबीआई जांच की मांग की गई'
गौरतलब है कि अनुसूचित जाति-पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना 1981 से चली आ रही है, लेकिन ऑनलाइन इसे 2016 में किया गया. विजिलेंस की तरफ से तीन सालों में दी गई पोस्टमैट्रिक स्कॉलरशिप की जांच की जा रही है. घोटाला सामने आने के बाद हरियाणा सरकार ने विजिलेंस जांच के आदेश दिए थे जिसमें जांच जारी है. इस मामले में सीबीआई जांच की मांग भी उठाई गई थी.