चंडीगढ़: निकाय चुनाव में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को मिली इस हार के कई मायने और कई फैक्टर हैं. इस हार सबसे बड़ा कारण है किसान आंदोलन. पंजाब से शुरू होकर हरियाणा पहुंचा किसान आंदोलन हरियाणा सरकार के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आए. किसानों की आखिर गठबंधन सरकार के उम्मीदवारों को निकाय चुनाव में ले डूबी.
इस पूरे चुनाव में किसान आंदोलन की छाप साफ नजर आई है. वहीं बीजेपी से ज्यादा जेजेपी को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा है.
गौरतलब है कि इस साल नवंबर में, सत्तारूढ़ गठबंधन को उस समय भी झटका लगा था. जब सोनीपत में बरोदा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी उसे हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा था. कई राजनीतिक विशेषज्ञों ने बरोदा उपचुनाव की नतीजों को देखते हुए निकाय चुनाव में बीजेपी को झटका मिलने की आशंका जाहिर कर दी थी.
जब स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए प्रचार शुरू हुआ था तो बीजेपी और जेजेपी को अहसास हो गया था कि उनके लिए राह आसान नहीं है और अब चुनाव नतीजों से ये साबित हो गया है कि किसान आंदोलन ने उनके सियासी गठबंधन और सरकार का भविष्य कठिन कर दिया है.
किसान आंदोलन शुरू होने के बाद से ही हरियाणा में बीजेपी की मुसीबतें बढ़ गई थीं. पार्टी के कई सांसदों ने कहा था कि किसानों के इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए. साथ ही जेजेपी के अंदर भी किसानों के समर्थन में नहीं आने के कारण उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से नाराज होने की खबरें सामने आई थी.
निकाय चुनाव में बीजेपी को मिली इस हार का एक और सबसे बड़ा कारण है स्थानीय नेताओं की अनदेखी. पहले तो बरोदा विधानसभा के उउचुनाव में भाजपा ने कृषि मंत्री जेपी दलाल और सांसद संजय भाटिया को चुनाव का प्रभारी बनाया. जिसका नतीजा क्या हुआ सबने देखा.
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वहीं अब निकाय चुनाव के लिए भी बीजेपी ने स्थानीय नेताओं को तव्वजों नहीं दी. बीजेपी ने बरोदा उपचुनाव से कोई सबक नहीं लिया और निकाय निगम में वही गलती दोहरा दी. बरोदा में भी बाहरी नेताओं के चुनाव प्रभारी होने के कारण स्थानीय मुद्दें चुनाव से गायब थे. ऐसे ही निगम चुनाव में भी बाहरी नेताओं के कारण स्थानीय मुद्दें हावी नहीं रह पाए.
स्थानीय नेताओं की अनदेखी की बात खुद बीजेपी नेता ने कही है. बीजेपी प्रवक्ता संजय गुर्जर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि निकाय चुनाव में स्थानीय और छोटे नेताओं की अनदेखी की गई है जिसका नतीजा सामने है. बड़े नेताओं ने ढंग से प्रचार नहीं किया, और संगठन में भी तालमेल की कमी दिखी.
नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी को पंचकूला में जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ा. सोनीपत में बीजेपी को कांग्रेस के निखिल मदान से बड़ी हार मिली. अंबाला में छोटी मानी जाने वाली जनचेतना पार्टी शक्तिरानी शर्मा से उसे हार मिली. भारतीय जनता पार्टी को जो हार मिली है, उसे खुद बीजेपी के नेता भी नहीं पचा पा रहे हैं.
विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा कि हम हार की समीक्षा करेंगे, जहां-जहां पार्टी हारी है उसके कारणों का पता करेंगे कि ऐसा क्यों हुआ है.
वहीं मेयर पदों के अलावा तीनों पालिका चुनावों में चेयरपर्सन पदों पर भी बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा है. सांपला नगर पालिका के चेयरपर्सन पद के लिए निर्दलीय उम्मीदवार पूजा ने बाजी मारी है. पूजा ने बीजेपी प्रत्याशी सोनू को 4206 वोट से हराया है.
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वहीं अगर बात करें उकलाना नगर पालिका की तो वहां से चेयरपर्सन पद पर निर्दलीय उम्मीदवार सुशील साहू ने जीत हासिल की है. सुशील साहू ने जेजेपी-बीजेपी गठबंधन उम्मीदवार महेंद्र सोनी को हराया है.
इसके अलावा अगर बात करें धारूहेड़ा की तो यहां से निर्दलीय उम्मीदवार कंवर सिंह ने जीत हासिल की है. कंवर सिंह ने जेजेपी-बीजेपी गठबंधन उम्मीदवार को 3048 वोटों से हराया है.
पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा ने निकाय चुनाव के नतीजों पर कहा कि किसानों की अनदेखी कर रही सरकार नगर निगम चुनाव के परिणाम से सबक ले. बरोदा उपचुनाव के बाद नगर निगम चुनाव में भी सोनीपत की जनता ने प्रदेश की गठबंधन सरकार को अपना फैसला सुना दिया है.
चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी बयान दिया. उन्होंने जहां खुद को सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाला दल बताया तो साथ ही मतदाताओं का धन्यवाद किया.
सीएम खट्टर ने कहा कि बीजेपी ने सभी राजनीतिक दल से अधिक वोट हासिल की है. उन्होंने कहा कि मैं बीजेपी की नीतियों में विश्वास जताने वाले सभी सम्मानित मतदाताओं का हृदय से आभार प्रकट करता हूं. बीजेपी के सभी विजयी प्रत्याशियों व कार्यकर्ताओं को मैं बधाई देता हूं.
किसान आंदोलन ने पंजाब की ही तरह हरियाणा की सियासत को भी तगड़े ढंग से प्रभावित किया है. खट्टर सरकार डरी हुई है कि ना जाने कब सरकार गिए जाए. सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान अलग हो चुके हैं और जेजेपी के अंदर भी इस मामले में जबरदस्त उथल-पुथल मची हुई है, क्योंकि जेजेपी किसानों को अपना कोर वोटर मानती है. खैर पहले बरोदा उपचुनाव और अब नगर निकाय चुनाव में मिली हार बीजेपी-जेजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.
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