चंडीगढ़: ईटीवी भारत ने पराली के मुद्दे पर एनवायरनमेंट हेल्थ के प्रोफेसर रविंद्र खैवाल (Ravindra Khaiwal on Stubble Burning) से बातचीत की. प्रोफेसर खैवाल ने कहा कि इस साल अभी तक पराली को लेकर पंजाब और हरियाणा में हम पिछले सप्ताह की बात करें तो इसमें पराली जलाने की 5200 (पाकिस्तान का सीमावर्ता इलाका भी शमिल) के करीब घटनाएं दिखाई दे रही थीं. बीते 3 दिनों से पराली जलाने की घटना 500 से 700 दिखाई दे रही है. उन्होंने कहा कि पंजाब की सीमा से सटे पाकिस्तान के इलाके में भी पराली जलाने के मामले ज्यादा दिखाई दे रहे हैं.
भारत में पाकिस्तान की पराली का असर? दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ने के मामले में पाकिस्तान में जलने वाली पराली के सवाल पर प्रोफेसर खैवाल ने कहा कि यह अब हवा के दबाव पर निर्भर करता है. वर्तमान में पराली जलाने के कम मामले आ रहे हैं. पाकिस्तान में पराली इस वक्त जो जल रही है उसका स्थानीय स्तर पर तो प्रभाव पड़ सकता है लेकिन दिल्ली एनसीआर रीजन तक अभी उसकी पहुंच नहीं है. प्रोफेसर खैवाल के मुताबिक जब इसकी पीक आती है तो पराली जलाने के मामले 5000 से 7000 तक पहुंच जाते हैं. जब पराली जलाने के मामले दिन में दो हजार से ऊपर चले जाते हैं तो फिर उसका असर स्थानीय इलाकों में दिखने लगता है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से सटे पंजाब के जिलों में ज्यादा पराली जलाने के मामले दिखाई देते हैं. वही हरियाणा में चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाले हाईवे के आसपास के जिलों में पराली जलाने के मामले ज्यादा सामने आते हैं.
इस साल पराली जलाने के कितने मामले- उन्होंने कहा कि अगर हम पिछले 9 साल के आंकड़े को देखें तो इस हिसाब से अभी इस साल में 30 से 40 फीसदी पराली कम जली है. उन्होंने कहा कि लेकिन कुछ दिन पहले बारिश थी और अभी आने वाले दिनों में भी बारिश के आसार हैं. ऐसे में पराली जलाने का जो पीक समय है वो आगे पीछे होता रहता है. सामान्य तौर पर पराली जलाने का मुख्य समय अक्टूबर के आखिर और नवंबर के पहले हफ्ते में होता है. ऐसे में इस बार पराली जलाने का पूरा डाटा आने में अभी समय है.
चुनाव के समय बढ़ जाते हैं पराली जलाने के मामले- अभी तक के आंकड़ों का एनालिसिस किया है, उसको देखकर उन्हें लगता है कि जब देश में इलेक्शन होते हैं तो उस वक्त पराली जलाने के मामले में वृद्धि होती है. उन्होंने कहा कि इसकी क्या वजह है वह जांच का विषय है और उसे एनालाइज करना होगा. इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वे इस पर भी काम कर रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकार के प्रयासों का असर भी देखने को मिल रहा है. उम्मीद की जाती है कि आने वाले समय में पराली जलाने के मामले में और भी कमी आएगी.
सरकार के प्रयास कितने सफल- इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर खैवाल कहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से लगातार इस संबंध में कदम उठाए जा रहे हैं. उनके प्रयासों की बदौलत ही यह कमी दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र भी लगातार इस मुद्दे को लेकर बैठ कर करता रहता है और उनकी कोशिश है कि इस संबंध में जो संसाधन है वह जमीन तक पहुंचे। इसके साथ ही प्रयास किया है कि सर्दी के वक्त में जो प्रदूषण का स्तर बढ़ता है उसको कम किया जा सके।