चंडीगढ़: हरियाणा पंचायती राज चुनाव संपन्न (panchayat election results haryana) हो चुके हैं. हर राजनीतिक पार्टी इन चुनाव में खुद की जीत का दावा कर रही है. हालांकि इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ी. वहीं बीजेपी की तरफ से जिला इकाइयों पर सिंबल पर चुनाव (zilla parishad election in haryana) लड़ने का अधिकार छोड़ा गया था, जिनमें से कुछ जिलों में सिंबल पर पार्टी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे. वहीं आम आदमी पार्टी ने ये चुनाव सिंबल पर लड़ा था.
सबसे पहले बात सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की. इस चुनाव में बीजेपी 200 से अधिक भाजपा, समर्थकों और सहयोगियों के जीतने का दावा कर रही है. जिला परिषद् चुनाव में पार्टी का दावा है कि 22 उम्मीदवारों ने चुनाव चिन्ह पर जीत दर्ज की है. जबकि 151 भाजपा समर्थित प्रत्याशी जीत कर आए हैं. इतना ही नहीं 126 बीजेपी समर्थित निर्दलीय चुनाव जीतने वालों को लेकर भी बीजेपी का दावा है कि वो भी भाजपा के साथ हैं. पार्टी के विश्लेषण को देखें तो जिला परिषद के चुनावों में पार्टी 7 जिलों में सिंबल पर चुनाव लड़ी थी. दावा है कि 307 सीटों पर बिना चुनाव चीन के पार्टी लड़ी थी, जबकि जेजेपी के लिए बीजेपी ने 3 सीटें छोड़ी थी.
बीजेपी पार्टी के जिला परिषद चुनाव में 22 प्रत्याशी चुनाव चिन्ह पर जीते, जबकि आम आदमी पार्टी के 14 प्रत्याशी, इंडियन नेशनल लोक दल के 14 और बीएसपी के 6 प्रत्याशी चुनाव चिन्ह पर जीते हैं, लेकिन ये भी हकीकत है कि इन चुनावों में बीजेपी के सांसदों मंत्रियों और नेताओं के जो परिजन और करीबी चुनाव मैदान में थे. उनमें से कई बड़े चेहरे इन चुनावों में धराशाई हो गए हैं. जो कहीं ना कहीं पार्टी के लिए भी एक चिंता का विषय जरूर है. पार्टी इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि उसके नेताओं के कई करीबी इस चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर पाए.
इधर आम आदमी पार्टी (aam aadmi party performance in haryana) का दावा है कि उसके 15 प्रत्याशी जिला परिषद चुनाव में जीत दर्ज करने में कामयाब हुए हैं. इतना ही नहीं पार्टी दावा कर रही है कि 28 नवनिर्वाचित जिला परिषदों के सदस्य जो जीत कर आए हैं वो आम आदमी पार्टी से संपर्क साध रहे हैं, और उनके जल्दी आम आदमी पार्टी में शामिल होने की बात कह रहे हैं. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी का दावा है कि 2 जिलों में पार्टी चेयरमैन पदों के लिए उम्मीदवार उतारेगी. पार्टी दावा कर रही है कि ब्लॉक समिति के सदस्यों के तौर पर पार्टी के 214 सदस्य और समर्थक जीत कर आए हैं.
पार्टी का दावा है कि सरपंच पंच चुनाव के बाद जिला परिषद के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली है. वहीं चुनाव चिन्ह पर चुनाव ना लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी भी आंकड़ों की बाजीगरी में खुद को अव्वल बता रही है. पार्टी जहां जिला परिषद चुनाव में 411 में से बीजेपी को 22, आम आदमी पार्टी को 14, इनेलो को 13, बसपा को 6 सीटें मिलने की बात कर रही है, तो वहीं खुद के आंकड़े को कुछ इस तरीके से बता रही है कि निर्दलीय और कांग्रेस समर्थित 356 सदस्य पार्टी के चुनकर आए हैं. वहीं पार्टी के नेता इन चुनावों में खुद के लिए बहुत बड़ी जीत की बात कह रहे हैं.
पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा का दावा है कि जिला परिषद चुनाव नतीजों से साफ है कि जनता बड़े बहुमत से बीजेपी जेजेपी को नकारने का काम किया है. वे कहते हैं कि बीजेपी ने सिंबल पर लड़ा चुनाव फिर भी उसे केवल 5 प्रतिशत वोट ही मिला. यानी 95 प्रतिशत लोगों ने भाजपा को नकार दिया है. करीब 88 प्रतिशत मतदाताओं ने निर्दलीय उम्मीदवारों को वोट दिया. उसमें ज्यादातर कांग्रेस पार्टी के सदस्य या कार्यकर्ता हैं. हरियाणा के हर जिले के अंदर 200 से ज्यादा कांग्रेस कार्यकर्ता निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते हैं. वही सिंबल पर चुनाव न लड़ने को वे पार्टी की सफल रणनीति का हिस्सा बताते हैं.
पार्टियां पहले तो इन चुनावों में सिंबल पर उतरने से बचती हैं, लेकिन बाद में जीते हुए प्रत्याशियों पर वो सभी अपना अपना अधिकार समझते हैं. ऐसा पहली बार नहीं है, अक्सर होता है. पंचायत स्तर के चुनावों में पार्टियां चुनाव चिन्ह पर लड़ने से गुरेज करती हैं. अक्सर ये देखा जाता है कि जीतकर जो भी आते हैं, उनमें से ज्यादातर सरकार के साथ ही चलते हैं. इसकी वजह भी रहती है, क्योंकि उन्हें स्थानीय स्तर पर विकास कार्य करने होते हैं, और इन सभी संस्थाओं को जो फंडिंग होती है, वो सरकार द्वारा ही दी जाती है. इन चुनावों का कोई बड़ा असर सीधा विधानसभा चुनाव पर नहीं पड़ता है, लेकिन जो पार्टी चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरती है और उसके अगर उम्मीदवार जीतकर आते हैं तो निश्चित तौर पर ही उससे पार्टी का मनोबल जरूर भी बढ़ता है. -प्रोफेसर गुरमीत सिंह, राजनीतिक विशेषज्ञ
भले ही सभी दल अपनी- अपनी जीत के आंकड़े जिला परिषद और ब्लॉक समितियों के चुनाव को लेकर पेश कर रहे हों, लेकिन हकीकत तो यहीं है कि आम आदमी पार्टी के अलावा कोई भी दल प्रदेश में चुनाव चिन्ह पर लड़ने की ताकत नहीं दिखा पाया. हालांकि बीजेपी ने कुछ सीटों पर जरूर जिलों के पाले में गेंद डालकर सिंबल पर चुनाव लड़ा हो लेकिन पूरे राज्य में उसने भी इससे गुरेज ही किया, जबकि कांग्रेस पार्टी तो चुनाव चिन्ह पर लड़ने के लिए इन चुनाव मैदान में ही नहीं उतरी.