चंडीगढ़: कृषि और किसान कल्याण विभाग ने इस बिल को औचित्यहीन तथा केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि विधेयकों के विपरीत बताया है. इसके चलते विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की ओर से विधानसभा सचिवालय को भेजे गए पत्र में इसे कार्यवाही में शामिल ना करने की सूचना भेजी है.
कृषि और किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की ओर से विधानसभा सचिव को लिखे पत्र में कहा गया है कि प्रस्तावित निजी विधेयक में ये उल्लेख किया गया है कि केंद्रीय अधिनियमों से कई प्रकार की दुर्बलताएं और विकृतियां आएंगी जोकि कृषि और इससे जुड़े समुदायों के लिए हानिकारक होंगी.
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पत्र में स्पष्ट किया गया है कि उक्त केंद्रीय अधिनियमों पर सर्वोच्च न्यायालय की जांच जारी है. सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त रिट याचिका में अगले आदेश तक केंद्रीय अधिनियमों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई है. न्यायालय ने अंतरिम आदेश में दोनों पक्षों से समस्याओं का निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित समाधान करने का प्रयास करने को कहा है. न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को लागू रखने की बात भी कही गई है.
प्रस्तावित विधेयक का विवरण ये बताता है कि इसका उद्देश्य केंद्रीय अधिनियमों में संशोधन के माध्यम से राज्य अधिनियम में संशोधन का एक मामला है, जो अभी विचाराधीन है. संविधान के अनुच्छेद 254 और 246 के तहत लागू प्रावधान इस संबंध में बहुत स्पष्ट हैं इसलिए, इस विधेयक के माध्यम से प्रस्तावित संशोधन पर विचार करना कानूनी रूप से उचित नहीं होगा.
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निजी विधेयक में एमएसपी से नीचे की उपज को बेचने के लिए किसी भी किसान पर दबाव बनाने के लिए तीन साल तक की जेल और जुर्माना जैसी आपराधिक कार्रवाई जोड़ने का प्रस्ताव है. इस संबंध में, ये कहा गया है कि एमएसपी औसत गुणवत्ता (एफएक्यू) से जुड़ा हुआ है, लेकिन कई उदाहरण हैं जहां कृषि उपज अधिसूचित गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं है.
हालांकि, इस दंड के प्रावधान को शामिल किए जाने के कारण, खरीदार आपराधिक कार्रवाई की आशंका में उपज खरीदने के लिए अपनी अनिच्छा दिखा सकता है. ये अंततः किसान के पास बिना कृषि उपज के छोड़ दिया जाएगा. इससे किसान की आय और आजीविका प्रभावित होगी.
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