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पुराने दिनों को याद कर भावुक हुए देश के प्रथम वोटर मास्टर श्याम सरन नेगी, कही ये बात

श्याम सरन नेगी ने नम आंखों से कहा कि आज वो दिन लौटकर नहीं आ सकते और वैसी दुनियां भी नहीं मिल सकती. आज लोगों को हर सुविधा मिल रही है. लोगों के पास आपस में बात करने का समय नहीं है. लोग आधुनिकरण में इतने डूब गए हैं कि एक कदम चलना भी मुनासिब नहीं समझते, जिसके चलते लोगों को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

master shyam saran negi
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Published : Jan 26, 2020, 1:31 PM IST

चंडीगढ़/किन्नौर: देश के प्रथम मतदाता 103 वर्ष के मास्टर श्याम सरन नेगी अपने पुराने दिनों को याद करते हुए भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि ने पुराने समय में लोग बहुत कठिन परिस्थितियों में जिंदगी बसर करते थे. पढ़ाई के लिए पैसे नहीं होते थे तो खाने के लिए अन्न के दानों को तरसना पड़ता था. बिना मेहनत के एक वक्त की रोटी नसीब नहीं होती थी.

उन्होंने कहा कि आज के आधुनिक युग में अब लोगों को काफी सहूलियत मिल गई है. किसी काम को करना आसान हो गया है. पढ़ाई के लिए स्कूलों में पूरी सुविधाएं मिलती है. उन्होंने कहा कि उनके जमाने में किन्नौर में पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं होते थे. गिने चुने जगहों पर स्कूल थे लेकिन उच्च शिक्षा के लिए लोगों को गांव के अमीरों से ऋण लेकर बाहरी राज्यों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी.

पुराने दिनों को याद कर भावुक हुए देश के प्रथम वोटर मास्टर श्याम सरन नेगी, कही ये बात

श्याम सरन नेगी ने नम आंखों से कहा कि आज वो दिन लौटकर नहीं आ सकते और वैसी दुनियां भी नहीं मिल सकती. आज लोगों को हर सुविधा मिल रही है. लोगों के पास आपस में बात करने का समय नहीं है. लोग आधुनिकरण में इतने डूब गए हैं कि एक कदम चलना भी मुनासिब नहीं समझते, जिसके चलते लोगों को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है. पुराने समय में ऐसे बीमारियों का कोई नाम नहीं था. लोग अस्पताल के दरवाजे तक नहीं जाते थे लेकिन अब अस्पतालों में भीड़ लगी रहती है.

पढ़ें : 1950 से 2020 तक गणतंत्र दिवस पर आने वाले विदेशी अतिथियों की पूरी सूची

मास्टर श्याम सरन नेगी ने कहा कि आज लोग खेती नहीं करना चाहते, आराम की जिंदगी बसर करना चाहते हैं. बिना मेहनत के फल पाने की इच्छा वाले लोग हो चुके हैं. ऐसे में देश प्रगति नहीं कर सकता है. लोग खेती को भूलकर शहर की तरफ पलायन कर रहे हैं. गांवों की जमीन बंजर हो रही है. जब खेती में अनाज ही नहीं होगा तो देश का पेट कैसे पलेगा? आज के समय इस बात को कोई गौर करने वाला नहीं है.

चंडीगढ़/किन्नौर: देश के प्रथम मतदाता 103 वर्ष के मास्टर श्याम सरन नेगी अपने पुराने दिनों को याद करते हुए भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि ने पुराने समय में लोग बहुत कठिन परिस्थितियों में जिंदगी बसर करते थे. पढ़ाई के लिए पैसे नहीं होते थे तो खाने के लिए अन्न के दानों को तरसना पड़ता था. बिना मेहनत के एक वक्त की रोटी नसीब नहीं होती थी.

उन्होंने कहा कि आज के आधुनिक युग में अब लोगों को काफी सहूलियत मिल गई है. किसी काम को करना आसान हो गया है. पढ़ाई के लिए स्कूलों में पूरी सुविधाएं मिलती है. उन्होंने कहा कि उनके जमाने में किन्नौर में पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं होते थे. गिने चुने जगहों पर स्कूल थे लेकिन उच्च शिक्षा के लिए लोगों को गांव के अमीरों से ऋण लेकर बाहरी राज्यों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी.

पुराने दिनों को याद कर भावुक हुए देश के प्रथम वोटर मास्टर श्याम सरन नेगी, कही ये बात

श्याम सरन नेगी ने नम आंखों से कहा कि आज वो दिन लौटकर नहीं आ सकते और वैसी दुनियां भी नहीं मिल सकती. आज लोगों को हर सुविधा मिल रही है. लोगों के पास आपस में बात करने का समय नहीं है. लोग आधुनिकरण में इतने डूब गए हैं कि एक कदम चलना भी मुनासिब नहीं समझते, जिसके चलते लोगों को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है. पुराने समय में ऐसे बीमारियों का कोई नाम नहीं था. लोग अस्पताल के दरवाजे तक नहीं जाते थे लेकिन अब अस्पतालों में भीड़ लगी रहती है.

पढ़ें : 1950 से 2020 तक गणतंत्र दिवस पर आने वाले विदेशी अतिथियों की पूरी सूची

मास्टर श्याम सरन नेगी ने कहा कि आज लोग खेती नहीं करना चाहते, आराम की जिंदगी बसर करना चाहते हैं. बिना मेहनत के फल पाने की इच्छा वाले लोग हो चुके हैं. ऐसे में देश प्रगति नहीं कर सकता है. लोग खेती को भूलकर शहर की तरफ पलायन कर रहे हैं. गांवों की जमीन बंजर हो रही है. जब खेती में अनाज ही नहीं होगा तो देश का पेट कैसे पलेगा? आज के समय इस बात को कोई गौर करने वाला नहीं है.

Intro:किन्नौर न्यूज़।

देश के प्रथम मतदाता मास्टर श्याम सरन नेगी बोले,बहुत बदल गयी दुनियां,पहले थे कठिन दिन,आज की युवा पीढ़ी नही देख सकती ऐसी कठिन दुनियां।

किन्नौर-देश के प्रथम मतदाता 103 वर्ष के मास्टर श्याम सरन नेगी ने अपने ज़माने की दास्तान सामने रखी है पुराने समय में लोग बहुत कठिन परिस्थितियों में ज़िन्दगी बसर करते थे पढ़ाई के लिए पैसे नही थे तो खाने के लिए अन के दानों को तरसना पड़ता था बिना मेहनत के एक वक्त की रोटी नसीब नही होती थी।


उन्होंने कहा कि आज के आधुनिक युग में अब लोगो को काफी सहूलियत मिली है किसी भी काम को करना आसान हो गया है पढाई के लिए स्कूलों में पूरी सुविधाएं मिलती है आवजाही के लिए वाहनो की सुविधा खाने के लिए घर से अच्छी रोटी,और अच्छे कपड़े मिलते है टेक्नोलॉजी से भरपूर लोग है जिन्हें हर चीज मांगने पर घर तक पहुँचाया जाता है उन्होंने कहा कि उनके ज़माने में किन्नौर में पढ़ाई के लिए स्कूल नही होते थे गिने चुने जगहों पर स्कूल थे लेकिन उच्च शिक्षा के लिए लोगो को गाँव के अमीरों से ऋण लेकर बाहरी राज्यो में पढ़ाई करनी पड़ती थी इस दौरान भी पैदल चलकर जाना पड़ता था किन्नौर में सड़क सुविधाएँ नही थी वहीं खाने के लिए भी पीठ पर भोजा उठाकर साथ रूखी सुखी रोटियां ले जाना पड़ता था ऐसी कठिन परिस्थितियों से वक्त गुजरा है।


Body:नेगी ने नम आंखों से कहा कि आज वो दिन लौटकर नही आ सकते और वैसी दुनियां भी नही मिल सकती आज लोगो को हर सुविधा मिल रही है और अपनी संस्कृति खानपान व सबकुछ बदल रहा है आपस में बात करने तक का समय नही आधुनिकरण में इतने ड़ूब गए है कि एक कदम चलना मुनासिफ नही समझते जिसके चलते लोगो को अनेक बीमारियां घेर रही है उनके समय में न तो ऐसी बीमारियों का नाम था न लोग अस्पताल के दरवाजे तक जाते थे लेकिन अब अस्पतालों के दरवाजो पर भीड़ लगी रहती है लेकिन बीमारियों का खत्म होने का नाम नही।

Conclusion:नेगी ने कहा कि आज लोग खेती नही करना चाहते आराम की ज़िन्दगी बसर करना चाहते है बिना मेहनत के फल पाने की इच्छा वाले लोग हो चुके है ऐसे में देश उन्नत नही कर सकता है नेगी ने कहा कि आज लोग खेतो में अपने स्थानीय फसलो को उगाना नही चाहते है उत्तम खेती मध्यम व्यापार भूलकर शहरों की तरफ पलायन कर रहे है ओर गाँव की ज़मीन बंजर हो रही है जब खेतो में अनाज नही होगा तो देश का पेट कैसे पलेगा इस बात पर कोई गौर नही कर रहा है।

बाईट---मास्टर श्याम सरन नेगी
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