चंडीगढ़: आज 12 मई है यानि फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्मदिन. इस दिन को हर वर्ष इंटरनेशनल नर्स डे के रूप में मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य नर्सिंग स्टाफ को उनके कार्य के लिए सम्मान देना होता है. आज के दिन हम चंडीगढ़ पीजीआई की ऐसी ही एक नर्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने अपने प्रोफेशन को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया. खुद डायबिटीज की मरीज होने के बावजूद वह कोविड काल में भी अपने मरीजों की सेवा में जुटी रहीं.
ईटीवी भारत ने इंटरनेशनल नर्स डे के मौके पर पीजीआई की सीनियर नर्स सुखचैन कौर से बातचीत की और बीते सालों में उनके अनुभव के बारे में जाना. पिछले 17 वर्षों से पीजीआई में काम कर रहीं नर्स सुखचैन कौर का मानना है कि उन्हें सबसे ज्यादा अच्छा तब लगता है, जब कोई गंभीर मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौटता है. नर्स सुखचैन कौर ने बताया कि उनके जीवन की सबसे बड़ी कमाई वही होती है, जब वही मरीज कभी दोबारा मिले और उन्हें उनके सेवा कार्य के लिए धन्यवाद दें. सुखचैन कौर ने बताया कि 17 साल की उम्र में वे नर्सिंग प्रोफेशन आई थीं.
बीएससी नर्सिंग करने के बाद उन्होंने खूब मेहनत की और 24 घंटे नर्सिंग के काम को दिए. वो समय बेहद रोमांच भरा था. इस दौरान उन्होंने खुशी और गम दोनों माहौल को करीब से देखा. उन्होंने बताया कि उनकी शादी 999 में हुई थी. तब नर्सिंग की जिम्मेदारी के साथ शादी और फिर एक बच्चे की जिम्मेदारी भी उन पर आ गई थी. अच्छी बात यह रही कि इस दौरान परिवार का भी भरपूर सहयोग मिला.
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उन्होंने बताया कि उन्होंने शुरुआत के 10 साल इमरजेंसी ऑपरेशन थिएटर में ड्यूटी दी. जहां उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला. इसके बाद उन्होंने अपने सीनियर्स को कहकर अपनी ड्यूटी आईसीयू में लगवा ली. जहां एक नर्स को बिना पलक झपके, गंभीर मरीजों की देखभाल करनी होती है. उन्होंने कहा कि आईसीयू में भर्ती मरीजों के साथ एक लगाव हो जाता था, लेकिन उन महीनों के दौरान इलाज करते-करते मरीजों के साथ एक परिवार जैसी समझ बन जाती थी.
प्रत्येक नर्सिंग स्टाफ की तरह उनके मन में भी यही रहता था कि मरीज जल्द से जल्द स्वस्थ होकर अपने घर लौटे. सुखचैन कौर ने बताया कि बीते इन 17 सालों में उन्होंने बहुत से मरीजों के साथ समय बिताया लेकिन कुछ ऐसे मरीज थे, जिन्होंने उन्हें स्वस्थ होने के बाद शुक्रिया कहा. उन्होंने बताया कि एक बार इमरजेंसी वार्ड के डॉ. सुमित सिंह ने उन्हें एक मरीज का लगातार 15 दिन तक ऑब्जर्वेशन करने का चैलेंज दिया था. उस मरीज की छाती में सिस्ट था.
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ऐसे में मरीज आदित्य के आस पास नर्स का रहना जरूरी होगा. चैंलेज लेते हुए हम चार नर्सों ने लगातार ड्यूटी करते हुए मरीज आदित्य का ख्याल रखा और उसे स्वस्थ कर घर भेजा. उन्होंने बताया कि 10 साल बाद कीमोथेरेपी में ड्यूटी के दौरान आदित्य अपने परिवार के साथ मुझे धन्यवाद देने पहुंचा. वहीं पीछे खड़े उसके माता-पिता ने भी आंखें भरते हुए मुझे धन्यवाद दिया. वह मेरी जिंदगी का सबसे अहम पल था.
उन्होंने एक और मरीज के बारे में बताते हुए कहा कि एक मरीज छह महीनों से कीमोथेरेपी करवा रही थीं, वे बहुत घबराई हुई थीं. हमारे हौसले से वह अपना इलाज करवा पाई. महिला के पति एक लेखक थे, उन्होंने मेरा काम देखते हुए मुझ पर किताब लिखने का वादा किया. बीते महीने ही वह महिला और उसके पति एक किताब के साथ उनके पास आए थे. उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया और किताब मेरे हाथ में थमाते हुए भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी.
उस समय मेरी आंखों में आंसू थे. क्योंकि कभी किसी ने इससे पहले मेरे काम की सराहना लिखित में नहीं की थी. उन्होंने बताया कि मुझे अपने काम से हमेशा ही लगाव रहा है. जब कोरोनाकाल जैसे गंभीर हालात थे तब भी उन्होंने 1 दिन भी आराम करने के बारे में नहीं सोचा. नर्स सुखचैन खुद डायबिटीज की मरीज हैं लेकिन इस बीमारी को उन्होंने कभी भी अपने काम में अड़चन नहीं डालने दी.
इंटरनेशनल नर्स डे का इतिहास: 1965 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स ने इंटरनेशनल नर्स डे को मनाना शुरू किया था. इस दिन यानी 12 मई को मॉर्डन नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. फ्लोरेंस एक समाज सुधारक और नर्स थीं. विश्व के सभी हेल्थ वर्कर में आधे से ज्यादा योगदान नर्सों का है. कोरोना काल के दौरान डॉक्टरों से अधिक नर्सिंग स्टाफ की भूमिका रही है. जिन्होंने अपनी जान को दांव पर रखते हुए मरीजों को ख्याल रखा. वहीं दुनिया भर में जहां डॉक्टर को हर कोई क्रेडिट देता रहता है लेकिन नर्सों को अक्सर वो सम्मान नहीं मिल पाता.