चंडीगढ़: खुद सीएम मनोहर लाल ने निजी बसों को हायर करने के लिए सरकार द्वारा बनाई गई इस किलोमीटर स्कीम के अंतर्गत बसों के टेंडर प्रक्रिया के दौरान हुए इस घोटाले को स्वीकार किया है.
विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा
वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सीधे सीएम को घेरते हुए ट्वीट किया था कि आदरणीय खट्टर जी, ये बताइये- जब सबने कहा कि 42 रु प्रति किलोमीटर से 510 बसों का टेंडर निजी कंपनियों को देना घोटाला है तो सरकार ने नहीं माना. अब जब हाई कोर्ट ने जांच कराई तो माना. फिर भी दोषियों पर FIR नहीं? जनता अब हिसाब लेगी'.
जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने सीएम और परिवहन मंत्री के इस घोटाले में शामिल होने की बात कहते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी. सरकार को घेरते हुए उन्होंने कहा कि इस मामले में परिवहन मंत्री और मुख्यमंत्री ने करोड़ों का घोटाला किया है इसलिए इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए. अगर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो जेजेपी का कर्मचारी मंत्रियों के घर का घेराव करेंगे और इस लड़ाई को अंत तक लड़ेंगे.
वहीं आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद ने भी सीधे तौर पर सीएम और परिवहन मंत्री को इस घोटाले में शामिल बताया है. उन्होंने कहा था कि बिना परिवहन मंत्री के शामिल हुए ये घोटाला नहीं हो सकता. ये सरकार भ्रष्ट है और खुद सीएम घोटालों का घूंघट लेकर घूम रहे हैं. कांग्रेस विधायक करण दलाल तो सीएम को जेल भेजने तक की बात कहने लगे. उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में अधिकारियों से लेकर खुद सीएम तक जिम्मेदार हैं. ये पूरा घोटाला मुख्यमंत्री की शह पर हुआ है क्योंकि मुख्यमंत्री ने ही किलोमीटर स्कीम को मंजूरी दी थी. हम सीएम को जेल भेजकर ही रहेंगे.
किलोमीटर स्कीम क्या है?
सरकार ने राज्य में बसों की कमी को देखते हुए ये योजना शुरू की थी. सरकार ने किलोमीटर स्कीम पर निजी बसों की सुविधा यात्रियों को देने का प्लान तैयार किया था. इस सिलसिले में हरियाणा रोडवेज मुख्यालय ने टेंडर भी आमंत्रित किया. सरकार के मुताबिक यह योजना ग्रामीण इलाकों में लोगों को बस सुविधा पहुंचाने के लिए बनाई गई थी. सरकार के निर्देशानुसार रोडवेज विभाग ने प्रति किलोमीटर के हिसाब से निजी बसें हायर करने का निर्णय लिया था जिसमें ड्राइवर निजी बस मालिकों के होंगे और कंडक्टर रोडवेज नियुक्त करेगा. वहीं रोडवेज यूनियनों ने सरकार की इस किलोमीटर स्कीम का पुरजोर विरोध किया था और 18 दिन के लिए पूरे प्रदेश में बसों का चक्का जाम किया था. हाई कोर्ट में मामला पहुंचा तो हाई कोर्ट के आश्नासन के बाद रोडवेज कर्माचारियों ने हड़ताल खत्म की थी.
ये घोटाला कैसे हुआ?
आरोप लगाया गया कि इस स्कीम को लेकर जो टेंडर जारी किए गए थे वो अधिकारियों ने मिलीभगत कर के अपने ही लोगों को दिलाए. टेंडर ऑनलाइन जारी किए गए थे जैसे ही अधिकारियों के खास लोगों ने ऑनलाइन बोली लगाई तुरंत टेंडर उन्हें जारी करके. वेबसाइट को स्लो करने के बाद बंद कर दिया गया. इसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये थी कि जिस विभाग में एक फाइल पर साइन करने में महीनों लगते थे वहां एक दिन में ही टेंडर की फाइल अधिकारी से लेकर सीएम तक द्वारा पास कर दी गई.
मामला पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में पहुंचा. घोटाले को लेकर विजिलेंस ने अपनी रिपोर्ट पेश की तो सरकार ने 510 बसों के टेंडर को रद्द करने का फैसला लिया. इस मामले में अभी तक कई छोटे अधिकारियों पर गाज गिर चुकी है लेकिन इंतजार इस बात का है कि ऊंचे औदे पर बैठे लोगों पर कब और किस तरह की कार्रवाई होती है.