चंडीगढ़: प्रदेश के मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री मनोहर लाल ने अपनी सरकार का चौथा बजट पेश किया. अगले साल देश में लोकसभा चुनाव होने हैं, वहीं इसके बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हैं. ऐसे में जिस तरह के बजट की उम्मीद की जा रही थी. यह बजट बिल्कुल उसी को ध्यान में रखकर पेश किया गया लगता है. इस बजट के जरिए प्रदेश सरकार ने हर वर्ग को ध्यान में रखकर योजनाओं को आगे बढ़ाया है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 1 लाख 83 हजार 950 करोड़ रुपए का बजट पेश किया. जिसमें पिछले साल के मुकाबले 11.6 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है.
बड़ी बात यह है कि बजट में कोई भी नया कर नहीं लगाया गया है. यानी प्रदेश की जनता पर किसी भी तरह के नए कर का भार नहीं डाला गया है. लेकिन प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है. साल 2022 में जब बजट पेश किया गया, तो उस समय हरियाणा पर कर्ज करीब 2 लाख 56 हजार 265 करोड़ का दिखाया गया था. यह इस बार बढ़कर 2 लाख 85 हजार 885 करोड़ पहुंच गया है. यह किसी ना किसी रूप में एक चिंता का विषय जरूर है. भले ही मुख्यमंत्री इसे केंद्र के निर्धारित दायरे के अंदर बता रहे हो, लेकिन जिस तरीके से कर्ज बढ़ रहा है.
हरियाणा पर बढ़ते कर्ज को देखते हुए आर्थिक मामलों के जानकार बिमल अंजुम कहते हैं कि बजट में 35.96 प्रतिशत डिपेंडेंसी सरकार की लोन पर है. जबकि राज्य के पास 42 फीसदी से अधिक टैक्स रेवन्यू था. उनका कहना है कि अगर 35.96% रेवेन्यू डेफिसिट आ रहा है, तो यह सही नहीं है. उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह हुआ कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था सही नहीं चल रही है. जिस तरीके की सोशल वेलफेयर प्रोग्राम बजट में रखे गए हैं, उसको देखते हुए लगता है कि सरकार ने राजस्व से ज्यादा उन पर जोर दिया है. हालांकि वे कहते हैं कि जहां तक डेफिशियेंसी की बात है, तो वह केंद्र सरकार के निर्धारित पैमाने के अंदर है. लेकिन उनका कहना है कि इस बजट में कहीं ना कहीं सरकार ने इसको मैनिपुलेट करने की कोशिश की है.
ये कर्ज हरियाणा की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का सबब जरूर है. विपक्ष भी लगातार प्रदेश पर बढ़ते कर्ज को लेकर अपनी बात कहता रहा है. विपक्ष का कहना है कि प्रदेश पर इस बजट को देखते हुए आने वाले समय में 4 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज हो जाएगा. विपक्ष इसपर सरकार से श्वेत पत्र की मांग कर रहा है. वहीं सरकार द्वारा आज पेश किए गए बजट में जिस तरीके से प्रदेश पर कर्ज बढ़ा है.
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बिमल अंजुम का कहना है कि हरियाणा की अर्थव्यवस्था के हिसाब से 35.96 फ़ीसदी रेवेन्यू डेफिसिट का जो प्रावधान रखा गया है, वह हरियाणा की अर्थव्यवस्था के हिसाब से सही नहीं है. क्योंकि सरकार पर पहले से ही 2 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज था. उनके मुताबिक यह इन हालातों में तीन लाख करोड़ से ज्यादा हो जाएगा. क्योंकि इस पर सरकार को ब्याज का भुगतान भी करना होगा. अगर सरकार 20 से 22 फीसदी रेवेन्यू में से कर्ज का भुगतान करेगी, तो भविष्य में प्रदेश की गाड़ी ठीक नहीं चल पाएगी.
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उनका कहना है कि जो अभी हरियाणा सरकार पर कर्ज है, उसमें भी अलग-अलग ब्याज दर के कर्ज हैं. वे कहते हैं कि हम यह भी नहीं कह सकते कि कर्ज लेना नुकसानदायक है, लेकिन कर्ज लेना फेवरेबल भी नहीं है. उनका कहना है कि सरकार ने अपने बजट का 30 फीसदी से अधिक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करने का फैसला किया है. एक तरफ सरकार कहती है कि रेवड़ियां नही बांटनी है. जबकि इस बजट में सबसे बड़ा हिस्सा सोशल सेक्टर में दिया गया है. उनका कहना है कि जो बजट का कुल हिस्सा इंटरेस्ट का भुगतान करने में जाएगा. जो 30 फीसदी से अधिक है. अगर सरकार के रेवेन्यू में से इतना बड़ा हिस्सा इंटरेस्ट पेमेंट में जाएगा, तो वह अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए सही नहीं होगा.