हरियाणा राज्य पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की धारा-3 के प्रावधानों के तहत अस्तित्व में आया था. इस अधिनियम में पंजाब व हरियाणा और हिमाचल प्रदेश तथा चंडीगढ़ के संघीय क्षेत्रों में पंजाब के पुनर्गठन को प्रभावी बनाने के लिए उपाय किए गए थे. सतलुज-यमुना लिंक नहर (एस.वाई.एल.) के निर्माण द्वारा रावी और ब्यास नदियों के पानी में हिस्सा पाने का हरियाणा का अधिकार ऐतिहासिक, कानूनी, न्यायिक और संवैधानिक रूप से बहुत समय से स्थापित है. इस प्रतिष्ठित सदन में एस.वाई.एल. नहर को जल्द से जल्द पूरा करने का आग्रह करते हुए सर्वसम्मति से कम से कम सात बार प्रस्ताव पारित किए हैं.
कई अनुबंधों, समझौतों, ट्रिब्यूनल के निष्कर्षो और देश के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों में सभी ने पानी पर हरियाणा के दावे को बरकरार रखा है और एस.वाई.एल. नहर को पूरा करने का निर्देश दिया है. इन निर्देशों और समझौतों की अवज्ञा करते हुए इनके विरोध में, हरियाणा राज्य के सही दावों को अस्वीकार करने के लिए पंजाब द्वारा कानून बनाए गए. पंजाब से हरियाणा को देने का काम भी पूरा नहीं हो पाया है. यह सदन 1 अप्रैल, 2022 को पंजाब की विधानसभा में पारित प्रस्ताव पर गहन चिंता प्रकट करता है, जिसमें सिफारिश की गई है कि चंडीगढ़ को पंजाब में स्थानांतरित करने के मामले को केन्द्र सरकार के साथ उठाया जाए.
केन्द्र सरकार द्वारा हाल में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड में पूर्णकालिक सदस्यों की नियुक्ति पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की भावना के खिलाफ है जो नदी योजनाओं को, उत्तराधिकारी पंजाब व हरियाणा राज्यों की साझा संपत्ति मानता है. इन परिस्थितियों में, यह सदन केन्द्र सरकार से आग्रह करता है कि वह ऐसा कोई कदम न उठाए, जिससे मौजूदा संतुलन बिगड़ जाए और जब तक पंजाब के पुनर्गठन से उत्पन्न सभी मुद्दों का समाधान न हो जाए, तब तक सद्भाव बना रहे. यह सदन केन्द्र सरकार से यह आग्रह भी करता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना में सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण के लिए उचित उपाय करे.