चंडीगढ़: तीन कृषि कानून के खिलाफ किसानों का आंदोलन (Farmers Protest Three Agricultural Laws) दिल्ली से लगती सीमाओं पर जारी है. किसानों के इस आंदोलन को एक साल पूरा होने को है, इसके बावजूद भी सरकार और किसानों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है. अब जैसे-जैसे वक्त आगे बढ़ रहा है. आंदोलन पर भी कई तरह के सवाल उठने लगे है. संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) में कई मुद्दों को लेकर मतभेद देखने को मिला है.
ऐसे में अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या संयुक्त किसान मोर्चा में फूट (Disputes in Samyukt Kisan Morcha) पड़ चुकी है? क्या किसान आंदोलन धीरे-धीरे अपना असर खोता जा रहा है? ये सवाल इसलिए क्योंकि बीते कुछ दिनों से किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं में टकराव देखने को मिला है. फिर चाहे बात राकेश टिकैत vs गुरनाम चढूनी (Rakesh Tikait vs Gurnam Chadhuni) हो या फिर योगेंद्र यादव को निलंबित करने की. सबसे पहले बात योगेंद्र यादव की.
संयुक्त किसान मोर्चा ने योगेंद्र यादव को 1 महीने के लिए निलंबित कर दिया है. इस दौरान ना तो योगेंद्र यादव संयुक्त किसान मोर्चा के किसी कार्यक्रम में शामिल हो पाएंगे और ना ही वो मोर्चे के किसी फैसले में शामिल होंगे. बता दें कि लखीमपुर हिंसा मामले में योगेंद्र यादव मृतक बीजेपी कार्यकर्ता के घर सांत्वना देने पहुंचे थे. इस बात से नाराज संयुक्त किसान मोर्चा ने योगेंद्र यादव को 1 महीने के लिए निलंबित कर दिया. योगेंद्र यादव को उनकी बात कहने का मौका ही नहीं दिया गया.
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बता दें कि योगेंद्र यादव ने करनाल में किसानों पर हुए लाठीचार्ज के मामले में अहम भूमिका निभाई थी. योगेंद्र संयुक्त किसान मोर्चा के मुख्य रणनीतिकारों में एक रहे हैं, अचानक से अब योगेंद्र यादव को निलंबित करने से संयुक्त किसान मोर्चा की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है. इधर गुरनाम चढूनी ने योगेंद्र यादव को बर्खास्त करने की मांग की है. चढूनी तो योगेंद्र यादव से इतना नाराज हैं कि वो मांग कर रहे हैं कि योगेंद्र यादव संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में आकर माफी मांगे.
दरअसल चढूनी और योगेंद्र यादव के बीच विवाद भी पुराना है. अब दोनों के बीच की खाई भी बढ़ती नजर आ रही है. क्योंकि पहले योगेंद्र यादव ने गुरनाम चढूनी को पॉलिटिकल बयान देने का आरोप लगाकर मोर्चा विरोध गतिविधियों की वजह से निलंबित कर दिया था. जानकार मान रहे हैं कि अब गुरनाम चढूनी को बदला लेने का मौका मिला है. 15 अक्टूबर को सिंघु बॉर्डर पर लखबीर सिंह की हत्या के मामले को लेकर योगेंद्र यादव ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.
उन्होंने इस मामले की निंदा करते हुए कड़ी कार्रवाई करने की बात कही थी. खबर ये भी सामने आ रही है कि इस घटना के बाद से ही किसान मोर्चा के लोग योगिंदर यादव से खफा थे. लखीमपुर खीरी में बीजेपी के मारे गए कार्यकर्ता के घर जाकर योगेंद्र यादव ने संयुक्त किसान मोर्चा को मौका दे दिया. इधर राकेश टिकैत और गुरनाम चढूनी दो ऐसे नाम हैं. जिनमें आंदोलन के पहले दिन से ही तलवारें खींची हुई दिखाई दी. खबर है कि दोनों नेता एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते.
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एक (गुरनाम चढूनी) को हरियाणा के किसानों का चौधरी बनना है तो दूसरा (राकेश टिकैत) पूरे संयुक्त किसान मोर्चा को अपने नेतृत्व में आगे बढ़ाना चाहता है. कई मौकों पर गुरनाम चढूनी राकेश टिकैत पर निशाना साधते दिखे हैं. उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन को बड़ा ना करने पाने को लेकर गुरनाम चढूनी राकेश टिकैत पर निशाना साध चुके हैं. करनाल के बसताड़ा टोल प्लाजा मामले में चढूनी ने किसान महापंचायत का आह्वान किया था. इस महापंचायत में राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव को नहीं आना था. हालांकि बाद में ये दोनों नेता भी महापंचायत में पहुंच गए थे. यहां पर भी राकेश टिकैत और चढूनी में दूरियां साफ तौर पर देखने को मिली थी. वहीं रोहतक में हुई महापंचायत में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था. जब बार-बार आग्रह करने के बाद राकेश टिकैत मंच पर आए थे. किसानों के नेतृत्व की जंग दोनों के बीच साफ दिखती है.